उत्तराखंड में शिक्षकों का गुस्सा, पीएम मोदी को भेजे खून से लिखे खत, जानें क्या है पूरा मामला
उत्तराखंड में प्रिंसिपल भर्ती को लेकर शिक्षक अपने गुस्से और हताशा को अनोखे तरीके से सामने ला रहे हैं. शिक्षक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजा, जिसे उन्होंने अपने खून से लिखा, ताकि सरकार और प्रशासन उनकी लंबित मांगों की ओर ध्यान दें.

उत्तराखंड में स्कूल प्रिंसिपल की विभागीय सीधी भर्ती को लेकर शिक्षकों का विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है. इस बार उनका विरोध और भी अनोखा रूप ले चुका है. शिक्षक अब अपने खून से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिख रहे हैं.
उनका कहना है कि प्रदेश में प्रधानाचार्य भर्ती में नाइंसाफी हो रही है और इसे तुरंत निरस्त किया जाना चाहिए.यह कदम राज्य के शिक्षा जगत में लंबे समय से चली आ रही समस्याओं और इंतजार की निराशा का प्रतीक बन गया है.
भर्ती पर विवाद और हाईकोर्ट की सुनवाई
राज्य में स्कूल प्रिंसिपल की भर्ती को लेकर मामला अदालत तक पहुंच चुका है. उत्तराखंड हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 25 सितंबर को होगी. राज्य के शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष राम सिंह चौहान ने बताया कि हाईकोर्ट में वरिष्ठता मामले की सुनवाई के बाद ही आगे की रणनीति तय की जाएगी. हाईकोर्ट के निर्देश पर माध्यमिक शिक्षा निदेशालय ने प्रवक्ता और एलटी शिक्षकों की तीन सीनियरिटी लिस्ट तैयार की हैं, जिन्हें 24 सितंबर तक कोर्ट में सौंप दिया जाएगा.
क्या है भर्ती प्रक्रिया?
उत्तराखंड में कुल 1385 सरकारी इंटर कॉलेजों में प्रिंसिपल के खाली पद हैं. इनमें से 50 प्रतिशत पदों पर भर्ती के लिए पहले ही लोक सेवा आयोग ने विज्ञप्ति जारी कर दी है. पिछले साल शिक्षकों के विरोध के कारण यह भर्ती स्थगित कर दी गई थी. इस बार भर्ती में एलटी शिक्षकों को भी शामिल किया गया है.
शिक्षकों की आपत्ति
शिक्षक इस भर्ती प्रक्रिया के खिलाफ हैं. उनका कहना है कि प्रधानाचार्य के सभी पदों को सिर्फ प्रमोशन के जरिए ही भरा जाना चाहिए, ताकि वरिष्ठ और अनुभवी शिक्षक ही इन पदों पर आ सकें. उनका यह भी आरोप है कि भर्ती में सीधी भर्ती शामिल करने से नाइंसाफी हो रही है और इससे अनुभवी शिक्षकों के हक पर चोट पहुंच रही है.
अनोखा विरोध और संदेश
शिक्षकों का यह विरोध न सिर्फ तेज है बल्कि अनोखा भी है. खून से खत लिखना एक ऐसा कदम है, जो उनकी नाराजगी और गहरी पीड़ा को दिखाता है. शिक्षक यह मैसेज देना चाहते हैं कि वे अपने अधिकारों और शिक्षा के हितों के लिए हर संभव तरीका अपनाने को तैयार हैं.
इस पूरे विवाद में साफ है कि उत्तराखंड के शिक्षक अपने एक्सपीरियंस और सीनियरिटी को महत्व देने की मांग कर रहे हैं. वहीं सरकार और लोक सेवा आयोग की कोशिश है कि खाली पदों को भरने के लिए भर्ती प्रक्रिया पूरी हो, जिससे पढ़ाई पर असर न पड़े. अब यह हाईकोर्ट की सुनवाई और अदालत के फैसले पर निर्भर करेगा कि इस विवाद का समाधान कैसे होता है.