फिक्स सैलरी, तीन महीने की ट्रेनिंग, रहना खाना मुफ्त; UP पुलिस ने चोरों के गैंग का किया पर्दाफाश
उत्तर प्रदेश गोरखपुर रेलवे स्टेशन पुलिस ने मोबाइल चोरी करने वाली एक गैंग का पर्दाफाश किया है. गैंग के पास से पुलिस को 10 लाख रुपये की कीमत वाले 44 मोबाइल फोन मिले हैं. वहीं गैंग का लीडर अपने लोगों को हर महीने 15 हजार रुपये की सैलरी देता था. इतना ही नहीं उन्हें रहने खाने और ट्रैवल करने के लिए भी पैसे दिया करता है.

गोरखपुर रेलवे पुलिस ने मोबाइल फोन चोरी करने वाले एक गैंग का पर्दाफाश किया है. गिरफ्तार हुए अपराियों की पहचान झारखंड के 35 साल के मनोज मंडल, 19 साल के करण कुमार, 15 साल का नाबालिग भी शामिल है. जानकारी के अनुसार मनोज ही इस गैंग को चलाता था और नाबालिगों को काम पर रखता था. उन्हें सैलरी देता था. चोरी करने के दौरान ट्रैवल का पैसा देता था. इतना ही नहीं फ्री में खाने पीने को देता था.
वहीं शुक्रवार रात को इस गैंग को गोरखपुर रेलवे स्टेशन के पास में गिरफ्तार किया है. पुलिस ने इनके पास से 10 लाख रुपये कीमत वाले 44 मोबाइल फोनन बरामद किए हैं.
पहले ही दर्ज हैं चार मामले
पुलिस की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार मनोज के खिलाफ पहले से ही चार मामले दर्ज है. इसी गैंग में शामिल करण उसके खिलाफ दो मामले पहले दर्ज किए जा चुके हैं. इस बीच नाबालिग के क्रीमिनल बैकग्राउंड की जांच की जा रही है. अब तक कोई जानकारी सामने नहीं आई. इस मामले पर गोरखपुर जीआरपी एसपी संदीप कुमार मीना ने कहा कि मनोज ने खुलासा किया कि वो अपनी गैंग के दो सदस्यों को हर महीने 15 हजार रुपये सैलरी देता था. इतना ही नहीं ट्रैवल के लिए मुफ्त भेजन और रहने की भी जगह देता था.
वहीं एसपी संदीप कुमार मीना ने बताया कि ये गैंग मोबाइल फोन चुराने में काफी माहिर था. रेलवे स्टेशन से फोन की चोरी करके दूसरे गैंग को सौंपे जाते थे. इसके बाद दूसरा गैंग इन्हीं फोन को सीमा पार बांग्लादेश और नेपाल में भेज देता था. इसके कारण चोरी किए गए फोन को ट्रैक करना नामुंकिन सा होता था. इसी कारण फोन चोरी करने वाले गैंग का पता लगाने में मुश्किल होती थी.
एक हफ्ते की मेहनत और चोरों की गैंग गिरफ्तार
अधिकारी ने कहा कि इस गैंग को पकड़ने के लिए एक हफ्ते तक काम किया. इस दौरान 200 से भी ज्यादा सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए, चोरों की हर हरकत पर नजर रखी गई. इस तरह गैंग का पर्दाफाश किया. इस 10 लाख रुपये की कीमत वाले 44 फोन के साथ अपराधियों के पास से बंदूक और चाकू भी पुलिस ने बरामद किए हैं.
गांव से खोजता था लोग
एसपी ने कहा कि अपने गैंग को चलाने के लिए मनोज अपने गांव ऐसे युवकों की खोज करता था जिन्हें पैसों की जरूरत होती थी और पढे़े लिखे होते थे. गैंग में शामिल होने वाले अच्छे कपड़े पहनते और अच्छी हिन्दी में बात करना जानते.ताकी ट्रेन या फिर बस में सफर करते समय किसी को उनपर शक न जाए. वहीं चोरी करने के दौरान अगर कोई व्यक्ति आवाज उठाता था तो उसे इन हथियारों की मदद से डराया जाता था और उन्हें धमकाने का काम किया जाता था.
गैंग में शामिल होने के लिए मिलती थी ट्रेनिंग
अधिकारी ने कहा कि किसी नए व्यक्ति को गैंग में शामिल करने के लिए पहले तीन महीने की ट्रेनिंग दी जाती थी. उन्हें छोटी चोरियां करने को कहा जाता था. इस तरह इन छोटे काम को जो पूरा कर लेता था उसे गैंग में शामिल किया जाता था. इसके लिए गैंग में शामिल लोगों को सैलरी, खाना पीना और ट्रैवल के लिए पैसे दिए जाते थे. ये लोग पहले गोरखपुर और संत कबीर नगर, महाराजगंज और कुशीनगर सहित आस-पास के जिलों में रेकी करते थे और बाजारों और रेलवे स्टेशनों को निशाना बनाते थे.