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UP Cough Syrup Racket: जियो-टैगिंग से लेकर फोटोग्राफिक डॉक्यूमेंटेशन तक... दवा लाइसेंसिंग सिस्टम को लेकर FSDA की बड़ी तैयारी

उत्तर प्रदेश में उजागर हुए करीब ₹700 करोड़ के कोडीन-आधारित कफ सिरप रैकेट के बाद यूपी फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FSDA) ने दवा लाइसेंसिंग और थोक कारोबार से जुड़े नियमों को सख्त करने की पहल की है. FSDA ने राज्य और केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजकर थोक दवा प्रतिष्ठानों की जियो-टैगिंग, स्टोरेज क्षमता का सत्यापन, फोटोग्राफिक डॉक्यूमेंटेशन और तकनीकी स्टाफ की कड़ी जांच जैसे कदम सुझाए हैं.

UP Cough Syrup Racket: जियो-टैगिंग से लेकर फोटोग्राफिक डॉक्यूमेंटेशन तक... दवा लाइसेंसिंग सिस्टम को लेकर FSDA की बड़ी तैयारी
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 30 Dec 2025 9:43 AM IST

उत्तर प्रदेश में सामने आए ₹700 करोड़ के कोडीन-आधारित कफ सिरप (Codeine Based Cough Syrup – CBCS) रैकेट ने प्रशासन को झकझोर कर रख दिया है. गैर-चिकित्सीय इस्तेमाल और अंतरराष्ट्रीय तस्करी के इस संगठित नेटवर्क के खुलासे के बाद यूपी फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FSDA) ने दवा लाइसेंसिंग सिस्टम को और सख्त, पारदर्शी और तकनीक-आधारित बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं.

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FSDA ने इस मामले में राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों को विस्तृत प्रस्ताव भेजे हैं, ताकि थोक दवा कारोबार से जुड़े नियमों में बड़े बदलाव किए जा सकें.

थोक दवा लाइसेंसिंग पर कसने जा रही है नकेल

राज्य सरकार को भेजे गए प्रस्ताव में FSDA ने कई अहम सिफारिशें की हैं, जिनमें - थोक दवा प्रतिष्ठानों की जियो-टैगिंग, गोदामों की वास्तविक भंडारण क्षमता का सत्यापन, लाइसेंस प्रक्रिया में फोटोग्राफिक डॉक्यूमेंटेशन, तकनीकी स्टाफ के अनुभव प्रमाणपत्रों की ड्रग इंस्पेक्टरों द्वारा जांच, शामिल हैं. अधिकारियों का मानना है कि मौजूदा सिस्टम में मौजूद ढील और कागजी औपचारिकताओं का फायदा उठाकर एक समानांतर अवैध नेटवर्क खड़ा कर लिया गया.

केंद्र सरकार से भी मांगे गए सख्त दिशा-निर्देश

FSDA ने केंद्र सरकार को भी प्रस्ताव भेजकर CBCS के निर्माण, थोक आपूर्ति, वितरण और निगरानी के लिए स्पष्ट और अनिवार्य गाइडलाइंस जारी करने की मांग की है. विभाग का कहना है कि बिना केंद्रीय स्तर पर सख्ती के इस तरह के नेटवर्क को पूरी तरह तोड़ पाना मुश्किल है. FSDA की टीमों ने रांची, दिल्ली और लखनऊ में छापेमारी और रिकॉर्ड जांच के दौरान कई गंभीर खामियां पाईं. अधिकांश थोक विक्रेता स्टॉक रिसीव होने का कोई ठोस प्रमाण नहीं दे पाए. वहीं कई मामलों में लेन-देन सिर्फ कागजों में दिखाया गया. रिटेल मेडिकल स्टोर्स को बिक्री के वैध बिल तक मौजूद नहीं थे और जो बिक्री विवरण दिए गए, वे वास्तविक सप्लाई से मेल नहीं खाते. अधिकारियों के मुताबिक, दिल्ली और रांची के सुपर स्टॉकिस्टों के नाम पर बिलिंग कर यूपी में एक समानांतर वितरण नेटवर्क खड़ा किया गया.

असल जरूरत से कई गुना ज्यादा सप्लाई

जांच में सामने आया कि 2024-25 में यूपी में कफ सिरप की सप्लाई वास्तविक चिकित्सीय जरूरत से कई गुना ज्यादा थी.

  • एक प्रमुख कंपनी से 2.23 करोड़ बोतलें
  • दूसरी फार्मा कंपनी से 73 लाख से ज्यादा बोतलें
  • अन्य कंपनियों से करीब 25 लाख बोतलें

इनमें से किसी भी सप्लाई को वैध मेडिकल उपयोग के तौर पर सत्यापित नहीं किया जा सका.

कई राज्यों तक फैला नेटवर्क, विदेशों तक तस्करी

FSDA और पुलिस की संयुक्त जांच में यह नेटवर्क झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड तक फैला पाया गया. कफ सिरप को अन्य राज्यों और सीमा पार देशों में नशे के तौर पर भेजे जाने के सबूत भी मिले हैं. इसी के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पूरे मामले की गहन जांच के लिए SIT (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) का गठन किया है, जो अगले महीने अपनी रिपोर्ट सौंपेगी.

अब तक की कार्रवाई: FIR, गिरफ्तारियां और गैंगस्टर एक्ट

79 FIR दर्ज, 161 फर्म/ऑपरेटर आरोपी, 36 जिलों में कार्रवाई और 85 आरोपी गिरफ्तार. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी NDPS एक्ट के तहत की गई कार्रवाई को सही ठहराते हुए 22 मामलों में याचिकाएं खारिज कर दी हैं, साथ ही गिरफ्तारी पर रोक की मांग भी नामंजूर कर दी गई.

गैंगस्टर एक्ट के तहत संपत्ति जब्ती की तैयारी

दस्तावेजी और भौतिक साक्ष्यों के आधार पर जिलाधिकारियों को गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई और अवैध नशे से अर्जित संपत्तियों की जब्ती के निर्देश दिए गए हैं. FSDA कमिश्नर ने जिला-स्तरीय कई टीमें और मुख्यालय में मॉनिटरिंग यूनिट गठित की है. ये टीमें दूसरे राज्यों में जाकर गुप्त रूप से सबूत इकट्ठा कर रही हैं और हिमाचल, हरियाणा व उत्तराखंड की कफ सिरप निर्माण इकाइयों का भी ऑडिट किया गया है.

गौरतलब है कि फरवरी 2024 में राज्य सरकार ने पहली बार शिकायतों के आधार पर जांच के आदेश दिए थे कि कोडीन-आधारित दवाओं को अवैध रूप से जमा कर नशे के तौर पर बेचा जा रहा है. यह मामला सिर्फ कानून-व्यवस्था नहीं, बल्कि ड्रग रेगुलेशन सिस्टम की सबसे बड़ी परीक्षा बन चुका है.

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