निर्भया की तरह ही हैं गहरे जख्म... 11 साल की मूक-बधिर से रेप, प्राइवेट पार्ट में लगे 11 टांके; चार महीने बाद भी लड़ रही जंग
लड़की को मेरठ के मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था. डॉक्टरों ने बताया कि उसके गुप्तांगों और शरीर पर 11 गहरे घाव थे. चोटें इतनी गंभीर थीं कि डॉक्टरों को उसकी आंत बाहर निकालकर पेट पर एक अस्थायी छेद बनाना पड़ा. अब बच्ची का मल त्याग इसी रास्ते से होता है.

उत्तर प्रदेश के रामपुर ज़िले के एक छोटे से गांव में, 11 साल की एक मासूम बच्ची की ज़िंदगी चार महीने पहले अचानक अंधेरे में डूब गई. वह लड़की, जो जन्म से ही बोल और सुन नहीं सकती थी, मानसिक रूप से भी थोड़ी कमजोर थी. परिवार की नन्ही कली, जो खेतों में खेला करती थी, उस दिन 15 अप्रैल की शाम को घर से खेत की ओर गई और फिर वापस नहीं लौटी. परिवार ने रात ढलने तक उसकी खोजबीन की.
बेचैन मां और भाई गांव की गलियों से लेकर खेत-खलिहानों तक दौड़ते रहे और फिर जो मिला, उसने सबकी सांसें थमा दी वो बच्ची बेहोश, लहूलुहान हालत में खेत में पड़ी थी. उसका चेहरा खरोंचों से भरा था, कपड़े खून से सने थे और शरीर पर ज़ख्मों की लंबी कहानी लिखी हुई थी. बोल न पाने की वजह से वो कुछ कह न सकी, लेकिन अस्पताल की रिपोर्ट ने उसकी चुप्पी को तोड़ दिया वह क्रूरतापूर्वक बलात्कार का शिकार हुई थी.
दान सिंह की दरिंदगी और पुलिस की तेज़ कार्रवाई
सीसीटीवी फुटेज में एक स्थानीय युवक, दान सिंह यादव (28), बच्ची को ले जाते हुए दिखा. पुलिस ने उसे उसी वक्त पकड़ लिया. उसके खिलाफ पॉक्सो के तहत मामला दर्ज हुआ और चार महीने के भीतर 11 अगस्त को रामपुर की विशेष अदालत ने उसे उम्रकैद और 6 लाख रुपये के जुर्माने की सज़ा सुनाई. लेकिन परिवार की नज़र में यह न्याय अधूरा है. बच्ची के चाचा कहते हैं उस दरिंदे ने हमारी बच्ची की ज़िंदगी बर्बाद कर दी. उम्रकैद का मतलब है कि वो ज़िंदा रहेगा. जब हमारी बेटी की मासूमियत छीन ली गई है, तो उसे जीने का अधिकार क्यों मिले? उसे फांसी मिलनी चाहिए.'
बेटी की हालत हर पल दर्द से जंग
लड़की को मेरठ के मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था. डॉक्टरों ने बताया कि उसके गुप्तांगों और शरीर पर 11 गहरे घाव थे. चोटें इतनी गंभीर थीं कि डॉक्टरों को उसकी आंत बाहर निकालकर पेट पर एक अस्थायी छेद बनाना पड़ा. अब बच्ची का मल त्याग इसी रास्ते से होता है. उसे हर दिन कोलोस्टॉमी बैग चाहिए, जिसकी कीमत 270 रुपये प्रति बैग है. कई बार दिन में दो बैग की ज़रूरत पड़ती है. मगर गरीबी से टूटा परिवार यह खर्च नहीं उठा पाता. मजबूरन मां हर बार एक कपड़ा बांध देती हैं और रुई से साफ़ करती हैं. वह मां जो अपनी बेटी को हर रोज दर्द में देखती है उन्हें एक पल की चैन की नींद नहीं आई. वो कहती हैं- वो दर्द से कराहते हुए पेट और कमर की ओर इशारा करती है. मैं पूरी रात उस पर नज़र रखती हूं कि कहीं वो खुद को चोट न पहुंचा ले. अब हमारी ज़िंदगी बस उसके ज़ख्मों के इर्द-गिर्द घूमती है.'
परिवार का टूटा सहारा
बच्ची का पिता खुद मानसिक रूप से थोड़ा कमजोर है. मां खेतों में मजदूरी करती हैं, लेकिन काम कभी मिलता है, कभी नहीं. अब पूरा घर 24 साल के बड़े भाई पर टिका है. वह पहले हिमाचल की एक फैक्ट्री में काम करता था, पर बहन की हालत देखकर नौकरी छोड़कर घर लौट आया. पिछले चार महीने उसने पुलिस-कोर्ट के चक्कर काटे, अब फिर से काम तलाश रहा है इस बार घर के पास, ताकि बहन और परिवार को छोड़कर न जाना पड़े. बड़ी बहन अब डर के साये में जीती है. उसने घर से निकलना लगभग बंद कर दिया है. परिवार कहता है, 'अब हमारी बेटियां घर से बाहर नहीं निकलती इस अपराध ने हमारी शांति छीन ली है.' गांव वाले अब इस परिवार को दया और शक की नज़र से देखते हैं. मां कहती हैं, 'हम अलग-थलग हो गए हैं. लोग उसे अलग नज़रिए से देखते हैं. हमारी ज़िंदगी जैसे अस्पताल के वार्ड में फंस गई है न खुशी है, न हंसी.
आगे की उम्मीद और लंबी लड़ाई
डॉक्टरों का कहना है कि बच्ची को आने वाले महीनों या सालों तक इलाज और कई सर्जरी की ज़रूरत होगी. फिर भी यह कहना मुश्किल है कि वह पूरी तरह ठीक हो पाएगी या नहीं. परिवार अब अदालत से मिले 6 लाख रुपये जुर्माने के मुआवज़े पर टिकी उम्मीद लगाए बैठा है. उनका कहना है कि अगर ये पैसे मिल गए, तो शायद बच्ची के इलाज और बैग की लागत पूरी हो सके. लेकिन मां जानती हैं- पैसे भी उसे उसकी पुरानी ज़िंदगी नहीं लौटा सकते.'