Begin typing your search...

सोनभद्र में ग्राउंड वाटर बना मुसीबत! पानी पीने से ग्रामीणों को क्यों हो रही 'Fluorosis' बीमारी?

Sonbhadra Ground Water: सोनभद्र के ग्राउंड वाटर पीने से गांव में लोग फ्लोरोसिस बीमारी का सामना कर रहे. लगभग 2 लाख लोगों के 120 बस्तियों के ग्राउंड वाटर में ज्यादा फ्लोराइड पाया गया है. विजय कुमार शर्मा ने बताया कि वह एक दशक से कंकालीय फ्लोरोसिस से पीड़ित हैं और बैठने में परेशानी होती है. मैं फ्लोरोसिस के इलाज के लिए वाराणसी और लखनऊ गया, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया.

सोनभद्र में ग्राउंड वाटर बना मुसीबत! पानी पीने से ग्रामीणों को क्यों हो रही Fluorosis बीमारी?
X
( Image Source:  canava )
निशा श्रीवास्तव
Edited By: निशा श्रीवास्तव

Published on: 3 April 2025 12:57 PM

Sonbhadra Ground Water: उत्तर प्रदेश का सोनभद्र के एक गांव में लोग फ्लोरोसिस बीमारी का सामना कर रहे हैं. यहां पर ग्रेनाइट के भंडार, एक आग्नेय चट्टान में जल में फ्लोराइड को बहा दिया है, जिससे यह समस्या खड़ी हो गई है. लोगों का कहना है कि ग्राउंड वाटर पीने से उनकी सेहत खराब हो रही है. राज्य जल प्राधिकरण, जल निगम मार्च में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें कई बड़े खुलासे किए गए.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सोनभद्र में जल निगम के कार्यकारी इंजीनियर महेंद्र सिंह बताया कि रिपोर्ट में जिले भर में लगभग 2 लाख लोगों के 120 बस्तियों के ग्राउंड वाटर में ज्यादा फ्लोराइड की मौजूदगी की पुष्टि की गई है. इसलिए ग्राउंड वाटर पीने से स्थानीय लोगों को सेहत संबंधी समस्या से जूझ रहे हैं.

क्या हो रही परेशानी?

अधिकारियों ने बताया कि 12 गांवों में फ्लोराइड का स्तर 1-1.5 मिलीग्राम/लीटर की सेफ्टी लेवल से ज्यादा पहुंच गया है, जबकि कुछ गांवों में 2 मिलीग्राम/लीटर या उससे भी अधिक रिकॉर्ड किया गया है. वहां का ग्राउंड वाटर पीना लोगों के स्वास्थ्य के लिए जोखिम भरा है. सोनभद्र के कुछ हिस्सों में ग्राउंड वाटर में अत्यधिक आयरन और आर्सेनिक भी पाया गया है, जिससे पानी की गुणवत्ता और भी खराब हो गई है.

क्या बोले ग्रामीण?

  • पडारच गांव के 64 वर्षीय विजय कुमार शर्मा ने बताया कि वह एक दशक से कंकालीय फ्लोरोसिस से पीड़ित हैं और बैठने में परेशानी होती है. मैं फ्लोरोसिस के इलाज के लिए वाराणसी और लखनऊ गया, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया. उन्होंने कहा कि डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि उनके बोरवेल के पानी से उनकी हालत खराब हो गई है, जिसे उन्होंने 2002 में पास के एक कुएं से पानी पीने के बाद लगवाया था.
  • कृष्ण मुरारी शर्मा (32) ने बताया कि वह लाठी के बिना नहीं चल सकते हैं. हमारे पास पाइपलाइन थी, लेकिन पानी नहीं था. शिकायत के बाद 7 मार्च डीएम ने इलाके का दौरा किया. इसके बाद रोजाना 30 मिनट पानी मिलना शुरू हो गया है. चूंकि पानी की आपूर्ति का कोई निश्चित समय नहीं है, इसलिए हम नल पर नजर रखने के लिए शिफ्ट करते हैं.
  • सोनभद्र के डीएम राहुल यादव ने कहा, स्थानीय लोगों को पीने के लिए टैंकर के पानी का उपयोग करने के लिए कहा गया है. वहीं सिंचाई और सफाई जैसे अन्य कार्यों के लिए हमने उन्हें ग्राउंड वाटर का उपयोग जारी रखने के लिए कहा है.
  • 45 वर्षीय राम कुमार ने बताया कि उन्हें फ्लोरोसिस है और वे बिना छड़ी के चलने में कठिनाई महसूस करते हैं. गांव के सभी बच्चों के दांत पीले हैं. मुझे नहीं पता कि भविष्य में उन्हें किस तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ेगा.
  • पडारच गांव की तरह ही उत्तर प्रदेश-झारखंड सीमा के पास कोन ब्लॉक में कुडवा गांव है. वहां के कई लोग भी लगातार मांसपेशियों में दर्द की शिकायत है.
  • कन्हाई सिंह (50) ने दावा किया कि गांव के 10,000 निवासियों में से लगभग 40% फ्लोरोसिस से पीड़ित हैं. हमें रोजाना 30 मिनट पानी मिल रहा है, लेकिन यह काफी नहीं है. मुझे डर है कि सरकार की पाइपलाइन परियोजना अधूरी रह जाएगी, जिससे हमें एक बार फिर ग्राउंड वाटर पर निर्भर रहना पड़ेगा.

सरकार का रुख

प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि 2013 से ही पडारच गांव में पीने योग्य पानी की आपूर्ति के लिए कदम उठाए गए हैं. उन्होंने कहा कि नदियों, झीलों और तालाबों से उपचारित सतही पानी की आपूर्ति करने की योजना भी बनाई गई थी. मशीनों में समय के साथ खराबी आ गई.

तकनीकी विशेषज्ञता की कमी के कारण उन्हें ठीक नहीं किया जा सका, जिसके कारण संयंत्र बंद हो गए. हालांकि पडारच गांव में पाइपलाइन बिछाई गई थी, लेकिन पानी की आपूर्ति कभी शुरू नहीं हुई. अभी कई तरह की प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे ग्रामीणों की समस्या का समाधान हो जाए.

UP NEWS
अगला लेख