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वर्जिनिटी सर्टिफिकेट लाओ नहीं TC ले जाओ! मुरादाबाद के मदरसे में छात्रा के एडमिशन को लेकर मचा हंगामा, पीड़ित पिता ने बताई पूरी कहानी

मुरादाबाद के एक मदरसे में छात्रा के एडमिशन को लेकर बड़ी बहस और हंगामा खड़ा हो गया है. मदरसे ने छात्रा से वर्जिनिटी सर्टिफिकेट मांगा, जिसे देने से पिता ने मना कर दिया. इसके बाद छात्रा को एडमिशन देने की बजाय उसे टीसी दे दी गई.

वर्जिनिटी सर्टिफिकेट लाओ नहीं TC ले जाओ! मुरादाबाद के मदरसे में छात्रा के एडमिशन को लेकर मचा हंगामा, पीड़ित पिता ने बताई पूरी कहानी
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( Image Source:  Meta AI: Representative Image )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 24 Oct 2025 6:02 PM IST

मुरादाबाद के पाकबड़ा थाना क्षेत्र से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया. सोचिए, अगर कोई संस्था जो बच्चों को शिक्षा देने का दावा करती है, वहीं एक नाबालिग छात्रा से वर्जिनिटी सर्टिफिकेट मांग ले, तो समाज किस दिशा में जा रहा है?

यह कहानी है चंडीगढ़ के रहने वाले कपल के नाबालिग बेटी की. जहां साल 2024 में उन्होंने अपनी बेटी का सातवीं क्लास में दाखिला मुरादाबाद के लोधीपुर स्थित एक मदरसे में कराया था. एडमिशन के नाम पर 35 हजार रुपये फीस ली गई. अब जब वह अपनी बच्ची का आठवीं कक्षा में में एडमिशन कराने गए, तो मदरसे ने बच्ची का वर्जिनिटी सर्टिफिकेट मांगा. इतना ही नहीं, इनकार करने पर हाथों में टीसी थमा दी.

पहले वर्जिनिटी रिपोर्ट लाओ, तभी एडमिशन मिलेगा

इस मामले में पिता ने एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह अपनी आपबीती बता रहे हैं. दरअसल जुलाई 2025 में बच्ची कुछ दिनों के लिए अपने घर गई. जब 21 अगस्त को मां ने उसे मदरसे में दोबारा छोड़ने की कोशिश की, तो प्रिंसिपल और एडमिशन इंचार्ज ने अचानक एंट्री देने से मना कर दिया. कारण? उन्होंने कहा कि पहले मेडिकल करवाकर वर्जिनिटी सर्टिफिकेट लेकर आओ. इस पर जब मां ने विरोध किया, तो मदरसे के कर्मचारियों ने गलत भाषा का इस्तेमाल किया और कहा कि अब बच्ची को कभी नहीं लिया जाएगा. आखिर में उन्हें टीसी पकड़ा दी गई, यानी बच्चे का नाम काट दिया गया.

प्रशासन से इंसाफ की मांग

इस अपमान के बाद ठगे से पिता ने पुलिस में शिकायत की. उन्होंने बताया कि बेटी के साथ न सिर्फ मानसिक उत्पीड़न हुआ बल्कि फीस भी वापस नहीं की गई. अब पाकबड़ा थाना पुलिस पूरे मामले की जांच कर रही है. जो तथ्य सामने आएंगे, उनके आधार पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी. वहीं, मदरसे की तरफ से इस मामले को बेबुनियाद बताया गया है.

क्या ऐसी शर्तें जायज़ हैं?

सवाल यही उठता है कि क्या किसी शिक्षण संस्था को इतनी अमानवीय शर्तें रखने का हक है? क्या बच्चियों की गरिमा यूं ही सवालों के कटघरे में खड़ी की जाती रहेगी? और क्या ऐसे मामलों में जांच के नाम पर बस औपचारिकताएं पूरी होंगी, या इस बार कोई उदाहरण बनेगा?

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