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वैवाहिक जोड़ों के अंतरंग पलों की जांच करना कोर्ट का काम नहीं; इलाहाबाद HC ने सुनाया फैसला

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में दिए गए एक आदेश में कहा है कि एक विवाहित जोड़ा अपने रिश्ते की गोपनीयता में किस प्रकार आचरण करता है, इस पर निर्णय देना अदालत का काम नहीं है, जब तक कि इसमें अत्यधिक क्रूरता और अनैतिकता के कृत्य शामिल न हों.

वैवाहिक जोड़ों के अंतरंग पलों की जांच करना कोर्ट का काम नहीं; इलाहाबाद HC ने सुनाया फैसला
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सागर द्विवेदी
Edited By: सागर द्विवेदी

Updated on: 30 Oct 2024 1:10 PM IST

पति-पत्नी के बीच झगड़े-लड़ाई आम बात है, लेकिन कुछ कपल्स के मामले में यह स्थिति तलाक तक पहुँच जाती है, जिससे उन्हें कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ता है. हाल ही में, उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. जिसमें कोर्ट ने कहा है कि विवाह संबंध का न चल पाना तलाक का आधार नहीं हो सकता. इसके तहत, कोर्ट ने पति-पत्नी के बीच लंबे समय तक वैवाहिक संबंध न रहने के कारण फैमिली कोर्ट द्वारा मंजूर किए गए तलाक के आदेश को रद्द कर दिया.

इतना ही नहीं कोर्ट ने बिना किसी कारण मुकदमेबाजी में घसीटने के लिए विपक्षी पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगया है. इसी के साथ कोर्ट ने कहा कि विपक्षी ने परिवार अदालत फिरोजाबाद के आदेश के अनुपालन में 2,50,000 रुपए जमा किए हैं. हर्जाना राशि उसी से कटौती कर यदि गुजारा भत्ते का बकाया न हो तो शेष राशि विपक्षी को वापस की जाय.

जानें पूरा मामला

इसी कड़ी में कोर्ट ने कहा कि विवाह संबंध पर कोई फैसला नहीं दे सकती. यह फैसला न्यायमूर्ति सैमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने दिया है. 25 साल पहले यानी 1999 में दोनों की शादी हुई थी फिर करीब नौ महीने एक रहे लेकिन कोई बच्चा पैदा नहीं हुआ तो दोनों अलग हो गए. जिसके बाद पति ने तलाक में अर्जी दी. फैमिली कोर्ट ने 2015 में पति के पक्ष में अपना फैसला सुनाया. जिसके बाद हाई कोर्ट में अपील की चुनौती दी गई.

कोर्ट ने क्या कहा?

पत्नी की ओर वकील ने कहा कि विवाह विच्छेद के लिए पति की याचिका सुनवाई योग्य नहीं थी. विवाह की तारीख से एक साल के अंदर याचिका दायर कि गई थी. जिसके बाद हाईकोर्ट ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शादी के एक साल के अंदर तलाक की याचिका की इजाजत नहीं हैं.

कोर्ट ने कहना है कि पहले वर्ष के अंदर दोनों के बीच तलाक 'वास्तव में प्रावधान को पूरी तरह से पढ़ने पर यह पता चलता है कि हिंदू विवाह को भंग करने की कार्रवाई का कारण विवाह के पहले वर्ष के भीतर किसी भी पक्ष के लिए उत्पन्न नहीं हो सकता है, सिवाय ‘अत्यधिक कठिनाई’ या ‘अत्यधिक भ्रष्टता’ से जुड़े मामलों को छोड़कर. फिर भी, शादी के एक साल के भीतर याचिका दायर करने की अनुमति मांगने के लिए विशिष्ट आवेदन दायर करना होगा. तलाक के मामले में एक साल बाद फैसला देने से कानूनी बाधा अप्रासंगिक नहीं हो जाती. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने पाया है कि फैमिली कोर्ट ने पत्नी की आपत्ति पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला है.

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