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109 साल बाद बदलाव! BHU में पढ़ाई जाएगी मुगलों-खिलजी की बर्बरता और राजपूतों-मराठों की शौर्य गाथा

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के 109 साल के इतिहास में पहली बार मध्यकालीन भारत के सिलेबस में मुगलों और खिलजियों के अत्याचार, मंदिर विध्वंस और धर्मांतरण की घटनाएं शामिल की जा रही है. अब तक इन मुद्दों की अनदेखी होती थी, लेकिन नई शिक्षा नीति के तहत इतिहास के उपेक्षित पहलुओं को सिलेबस में जगह देने का निर्णय हुआ है.

109 साल बाद बदलाव! BHU में पढ़ाई जाएगी मुगलों-खिलजी की बर्बरता और राजपूतों-मराठों की शौर्य गाथा
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नवनीत कुमार
Curated By: नवनीत कुमार

Updated on: 9 Jun 2025 1:17 PM IST

काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के इतिहास विभाग में पहली बार ऐसे विषयों को सिलेबस में शामिल किया जा रहा है, जिन पर अब तक चुप्पी रही है. विश्वविद्यालय के 109 वर्षों के इतिहास में यह पहली बार है कि छात्रों को मध्यकालीन भारत के सिलेबस में खिलजी, तुगलक और मुगल शासनकाल के मंदिर विध्वंस, धर्मांतरण और अत्याचारों की जानकारी औपचारिक रूप से दी जाएगी. अब तक पाठ्यक्रम में इन पहलुओं को स्थान नहीं मिला था, लेकिन नई शिक्षा नीति के चलते बदलाव की प्रक्रिया शुरू हुई है.

BHU के बीए प्रथम वर्ष के मध्यकालीन इतिहास पाठ्यक्रम में पहले मुस्लिम शासकों के शासन पर अधिक बल था, जबकि राजपूत, मराठा और जाट शासकों की उपेक्षा की गई थी. अब इस संतुलन को ठीक किया जा रहा है. नए सिलेबस में वीरता, स्वाभिमान और प्रतिरोध की कहानियां जैसे मेवाड़ के राणा सांगा, शिवाजी और भरतपुर के जाट राजाओं को भी समुचित स्थान मिलेगा.

प्रोफेसर की चिट्ठी से उठी मांग

इतिहास के प्रोफेसर राजीव श्रीवास्तव ने विभागाध्यक्ष को पत्र लिखकर सिलेबस में संशोधन की मांग की थी. उन्होंने तर्क दिया कि इतिहास में एकतरफा चित्रण ने पीढ़ियों को एक सीमित दृष्टिकोण में ढाल दिया है. विभागाध्यक्ष प्रो. घनश्याम ने इस मांग को स्वीकार किया और अब यह प्रस्ताव स्टडी काउंसिल के पास भेजा गया है. सहमति मिलने पर यह बदलाव अगले सत्र से लागू हो जाएगा.

महिमामंडन से परे इतिहास पढ़ाना ज़रूरी

प्रोफेसर राजीव श्रीवास्तव का मानना है कि इतिहास के पाठ्यक्रम में मुगलों का आवश्यकता से अधिक महिमामंडन हुआ है, जबकि उनकी नीतियों और उनके द्वारा किए गए मंदिर विध्वंस और धर्मांतरण की घटनाएं एक कोने में छोड़ दी गईं. उन्होंने कहा, “अब समय आ गया है कि हम इतिहास की दूसरी सच्चाइयों को भी सामने लाएं ताकि विद्यार्थी संतुलित दृष्टिकोण से इतिहास को समझ सकें.”

'ग्रेट मुगल क्यों, ग्रेट मराठा क्यों नहीं?'

प्रोफेसर श्रीवास्तव इतिहास लेखन की वर्तमान परंपराओं पर भी सवाल उठाते हैं. वे पूछते हैं कि 'ग्रेट मुगलों' की उपाधि तो दी गई, लेकिन ग्रेट मराठा या ग्रेट राजपूत क्यों नहीं? उनका दावा है कि यदि इतिहास में प्रतिरोध और अन्याय के पहलुओं को शुरू से पढ़ाया गया होता, तो आज की पीढ़ी अधिक जागरूक और विवेकशील होती. उन्होंने इसे 'एकतरफा ऐतिहासिक शिक्षा' करार दिया.

शिक्षा नीति बनी बदलाव की धुरी

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP-2020) को इस बदलाव की प्रमुख वजह माना जा रहा है. इसके तहत स्थानीय और विविध ऐतिहासिक अनुभवों को सिलेबस में समाहित करने पर जोर दिया गया है. प्रोफेसर श्रीवास्तव ने कहा कि पहले भी बदलाव की कोशिश हुई थी, लेकिन समर्थन नहीं मिला. अब NEP ने शिक्षाविदों को एक वैधानिक आधार दिया है जिससे वे ऐतिहासिक असंतुलन को दूर कर सकें.

BHU होगा भारत का पहला विश्वविद्यालय

अगर BHU में यह बदलाव स्वीकृत हो जाता है तो यह भारत का पहला विश्वविद्यालय होगा जो औपचारिक रूप से मध्यकालीन भारत में धार्मिक उत्पीड़न और सांस्कृतिक विध्वंस के अध्याय को इतिहास की किताबों में दर्ज करेगा. इससे अन्य विश्वविद्यालयों को भी पाठ्यक्रम में ऐसे बदलाव लाने की प्रेरणा मिल सकती है.

स्टडी काउंसिल की मुहर का इंतजार

अब यह प्रस्ताव BHU की स्टडी काउंसिल के पास है. विभागाध्यक्ष की सहमति मिलने के बाद इसके पारित होने की संभावना मजबूत मानी जा रही है. प्रोफेसर श्रीवास्तव को उम्मीद है कि अगले शैक्षणिक सत्र से यह नया पाठ्यक्रम लागू हो जाएगा. उन्होंने कहा कि यह बदलाव न केवल ऐतिहासिक न्याय है बल्कि नई पीढ़ी के लिए जरूरी वैचारिक संतुलन भी लाएगा.

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