शादी कोई बाधा नहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला, अनुकंपा के आधार पर बेटियों को नौकरी से नहीं कर सकते बाहर
शादी के बाद महिलाओं के अपने परिवार से सारे हक छिन लिए जाते हैं. इसमें नौकरी से लेकर जमीन तक शामिल है. सिर्फ यह कहकर कि अब उसका तालुक्क ससुराल से है. अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में कहा कि अनुकंपा के आधार पर बेटियों को नौकरी से नहीं कर सकते बाहर हैं.

इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि शादीशुदा बेटी को अनुकंपा नियुक्ति के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है. यह फैसला उस सोच को चुनौती देता है, जिसमें केवल अविवाहित बेटियों को ही इस अधिकार का पात्र माना जाता रहा है.
अदालत ने यह कहते हुए उस परंपरागत सोच को चुनौती दी, जिसमें केवल अविवाहित बेटियों को ही अनुकंपा नियुक्ति का पात्र माना जाता रहा है. यह मामला उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की चंदा देवी से जुड़ा है, जिन्होंने अपने पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति की मांग की थी
क्या है पूरा मामला?
चंदा देवी के पिता सम्पूर्णानंद पांडे, देवरिया के पूर्व माध्यमिक विद्यालय गजहड़वा में सहायक शिक्षक थे. उनकी मौत के बाद चंदा देवी ने अनुकंपा के आधार पर नौकरी की मांग की. उन्होंने अपने आवेदन में कहा कि उनके पति बेरोजगार हैं और वह आर्थिक रूप से अपने माता-पिता पर निर्भर थीं. हालांकि, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (DBEO), देवरिया ने दिसंबर 2016 में उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि चूंकि चंदा देवी शादीशुदा हैं, इसलिए उन्हें इस लाभ के लिए पात्र नहीं माना जा सकता है.
एकल न्यायाधीश और डिवीजन बेंच के बीच मतभेद
इस फैसले को चंदा देवी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल पीठ में चुनौती दी. कोर्ट ने पहले उनके इस तर्क को माना कि विवाहित बेटी को इस अधिकार से बाहर नहीं किया जा सकता, लेकिन फिर भी यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि वह अपने पति की बेरोजगारी और माता-पिता पर निर्भरता का प्रमाण नहीं दे सकीं.
कोर्ट की टिप्पणी और आदेश
डिवीजन बेंच ने अपने आदेश में कहा कि केवल विवाहित होने के कारण किसी बेटी को सहानुभूति नियुक्ति के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने DBEO को निर्देश दिया कि सभी पहलुओं की निष्पक्ष जांच कर आठ सप्ताह के भीतर चंदा देवी के दावे पर दोबारा विचार करें.
शादीशुदा बेटियों के लिए अहम फैसला
यह फैसला समाज में विवाहित बेटियों के अधिकारों की मान्यता की दिशा में एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है. कोर्ट का यह कहना कि शादीशुदा बेटी को केवल वैवाहिक स्थिति के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति से वंचित नहीं किया जा सकता, सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है.