जज बन गए लेकिन फैसला लिखना भूले, इलाहाबाद HC ने अमित वर्मा को 3 महीने की ट्रेनिंग पर भेजा
न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने याचिका पर गंभीरता से गौर किया. उन्होंने पाया कि फैसले में कई तकनीकी खामियां थीं और निर्णय लिखने का तरीका न्यायिक मानकों पर खरा नहीं उतरता था. यह केवल एक मामूली गलती नहीं थी. यह एक न्यायिक अधिकारी की मूल जिम्मेदारी में कमी थी.

कानपुर नगर की रहने वाली मुन्नी देवी ने जब अदालत का दरवाज़ा खटखटाया, तो शायद उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि उनका मामला एक बड़े बदलाव की वजह बन जाएगा. मामला किरायेदारी विवाद का था. फैसला दूसरे पक्ष के में फैसला सुनाया गया. ऐसे में मुन्नी देवी ने रिवीज्न पीटिशन डाली, जिसे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश अमित वर्मा ने खारिज कर दिया.
मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय पहुंचा. याचिकाकर्ता ने विवादित आदेश पर आपत्ति जताते हुए कहा कि अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने मामले की गंभीरता पर विचार किए बिना मात्र तीन लाइन में संशोधन आवेदन को मनमाने ढंग से खारिज कर दिया. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि आदेश में आवेदन खारिज करने का कारण नहीं बताया गया था.
कोर्ट ने कही ये बात
जहां न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने याचिका पर गंभीरता से गौर किया. उन्होंने पाया कि फैसले में कई तकनीकी खामियां थीं और निर्णय लिखने का तरीका न्यायिक मानकों पर खरा नहीं उतरता था. यह केवल एक मामूली गलती नहीं थी. यह एक न्यायिक अधिकारी की मूल जिम्मेदारी में कमी थी.
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कोर्ट ने 3 महीने की ट्रेनिंग का भेजा आदेश
22 अप्रैल को दिए गए अपने आदेश में उच्च न्यायालय ने विवादित आदेश की समीक्षा करने के बाद कहा कि 'इस अदालत की स्पष्ट राय है कि कानपुर नगर के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश अमित वर्मा को फैसले लिखने में कठिनाई है. इसलिए उन्हें लखनऊ स्थित न्यायिक प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान में कम से कम तीन महीने की ट्रेनिंग दिया जाना जरूरी है.'
पहले भी कर चुके हैं गलती
यह पहली बार नहीं है, जब अमित वर्मा ने फैसला लिखने में गलती की हो. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि वह पहले भी इस तरह की भूल कर चुके हैं.