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बच्चे को दुर्लभ बीमारी, जान बचाने को लगाने पड़े साढे़ 17 करोड़ का इंजेक्शन

स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी नामक दुर्लभ बीमारी से ग्रसित इस बच्चे के माता पिता इतनी बड़ी रकम का इंतजाम नहीं कर पाए तो क्राउड फंडिंग से साढ़े करोड़ रुपये की व्यवस्था हुई. वहीं बाकी रकम इंजेक्शन बनाने वाली कंपनी ने दिया है.

बच्चे को दुर्लभ बीमारी, जान बचाने को लगाने पड़े साढे़ 17 करोड़ का इंजेक्शन
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सांकेतिक तस्वीर
स्टेट मिरर डेस्क
by: स्टेट मिरर डेस्क

Published on: 15 Sept 2024 4:56 PM

राजस्थान के सीकर में रहने वाले एक बच्चे की जान बचाने के लिए उसे साढ़े 17 करोड़ रुपये एक इंजेक्शन लगाया गया है. यह इंजेक्शन देश में नहीं मिला तो पहले अमेरिका में पूछताछ की गई और आखिर में आस्ट्रिया से मंगाया गया. इस बच्चे को स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी नामक दुर्लभ बीमारी है. दूनिया भर में इस बीमारी के केवल चार ही मरीज हैं. इनमें यह बच्चा भी शामिल है. हालांकि इंजेक्शन लग जाने के बाद अब बच्चे की जान को कोई खतरा नहीं है. डॉक्टरों के मुताबिक यह बच्चा सीकर के नीमकाथाना क्षेत्र में रहने वाला अर्जुन है. उसे इंजेक्शन लगाने की प्रक्रिया विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में करीब एक घंटे तक चली.

उसके परिजनों के मुताबिक अर्जुन को लगाए गए इंजेक्शन की कुल कीमत 17 करोड़ 50 लाख रुपए है. यह इंजेक्शन उसे मई महीने में ही लगना था, लेकिन इंजेक्शन महंगा होने की वजह से उसके पैसे की व्यवस्था नहीं हो पायी. आखिर में क्राउड फंडिंग किया गया. इसमें भी मुश्किल से साढ़े आठ करोड़ रुपये जमा हो पाए. इसके बाद भी करीब साढ़े आठ करोड़ रुपये अभी भी कम पड़ रहे थे. इसकी जानकारी होने पर इंजेक्शन बनाने वाली कंपनी ने सोशल लाइबिलिटी के तहत बाकी रकम का सहयोग किया है. इस प्रकार बड़ी मुश्किल से अब बच्चे के लिए इंजेक्शन की व्यवस्था हो पायी है.

क्राउड फंडिंग से हुई पैसे की व्यवस्था

कंपनी ने अर्जुन के परिजनों को जुलाई महीने में ही भरोसा दे दिया था कि बाकी रकम का रिम्बर्समेंट सीएसआर के तहत हो जाएगा, लेकिन उस समय अर्जुन की सभी जांचें नार्मल नहीं निकलीं. ऐसे में इंजेक्शन को होल्ड कर दिया गया. अब सितंबर महीने में फिर से जांच कराई गई और सभी जांचें नार्मल मिलने पर यह इंजेक्शन लगाया गया है. डॉक्टरों के मुताबिक 28 महीने के अंतराल पर अर्जुन को यह इंजेक्शन लगाया गया है. उन्होंने बताया कि इस बीमारी से ग्रसित बच्चे सही से बैठ भी नहीं पाते. हालांकि अब तक जिन तीन बच्चों को यह इंजेक्शन लगाया गया है, वह स्वस्थ हैं. डॉक्टर के मुताबिक इस बीमारी का इलाज जन्म के बाद 24 महीने के अंदर ही करना होता. इससे ज्यादा उम्र के बच्चों का इलाज मुश्किल होता है.

RAJASTHAN NEWS
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