Begin typing your search...

इन चार जातिसूचक शब्दों पर राजस्थान HC ने सुना दिया ये बड़ा फैसला, नहीं लगेगा SC- ST एक्ट

राजस्थान हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला लिया है, जिसमें वह चार लोगों की याचिका पर सुनवाई कर रहा था. जनवरी 2011 का एक मामला जिसमें आरोप लगाया गया कि चार लोगों ने टीम के कार्य में बाधा डालने की कोशिश की और अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया. कोर्ट ने इस मामले की गहराई से जांच की. न्यायालय ने कहा कि आरोपियों द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्दों को जातिसूचक नहीं माना जा सकता.

इन चार जातिसूचक शब्दों पर राजस्थान HC ने सुना दिया ये बड़ा फैसला, नहीं लगेगा SC- ST एक्ट
X
( Image Source:  shutterstock )

जातिसूचक शब्द को लेकर आए दिन किसी न किसी तरह के विवाद होते रहते है. राजस्थान हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला देते हुए यह कहा है कि 'भंगी', 'नीच', 'भिखारी', और 'मंगनी' जैसे शब्द जातिसूचक नहीं माने जा सकते और इन शब्दों के इस्तेमाल पर एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत मामला नहीं बनता. यह फैसला चार लोगों की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिन पर जातिसूचक टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था.

यह मामला जनवरी 2011 का है, जब जैसलमेर में पब्लिक लैंड पर कथित अतिक्रमण को हटाने के लिए अधिकारियों की एक टीम गई थी. आरोप लगाया गया कि चार लोगों ने टीम के कार्य में बाधा डालने की कोशिश की और अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया. इसके बाद इन पर आईपीसी की धारा 353, 332 और 34 तथा एससी/एसटी ऐक्ट की धारा 3 (1) (X) के तहत केस दर्ज किया गया.

कोर्ट का विश्लेषण: क्या शब्द वास्तव में जातिसूचक थे?

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने इस मामले की गहराई से जांच की. न्यायालय ने कहा कि आरोपियों द्वारा इस्तेमाल किए गए शब्दों को जातिसूचक नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने यह भी कहा- इन शब्दों के उपयोग का मकसद अधिकारियों को उनकी जाति के आधार पर अपमानित करना नहीं था, ऐसा कोई सबूत नहीं है कि आरोपी अधिकारियों की जाति के बारे में जानते थे, आरोपियों की नीयत अपमानजनक नहीं थी, बल्कि विवाद का कारण अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई थी.

याचिकाकर्ताओं की दलील: आरोप निराधार होने का दावा

आरोपियों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर करते हुए दलील दी- उन्हें अधिकारियों की जाति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, घटना सार्वजनिक स्थान पर नहीं हुई थी,

पुलिस की प्रारंभिक जांच में भी आरोपों को निराधार बताया गया था.

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन शब्दों को जातिसूचक मानकर एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला नहीं चल सकता. हालांकि, अधिकारियों के कार्य में बाधा डालने और अपमानजनक शब्दों के इस्तेमाल के आरोपों पर केस चलाने के लिए पर्याप्त आधार मौजूद हैं.

यह फैसला न केवल इस मामले के आरोपियों के लिए राहत लेकर आया, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि एससी/एसटी एक्ट का उपयोग केवल गंभीर और प्रमाणित मामलों में ही किया जाना चाहिए. साथ ही, शब्दों के उपयोग को उनके संदर्भ और नीयत के आधार पर परखा जाना चाहिए.

अगला लेख