सरकारी स्कूल की इमारत बनी कब्र! झालावाड़ में छत गिरने से 7 बच्चों की मौत, दर्जनों मलबे में दबे
राजस्थान के झालावाड़ में एक सरकारी स्कूल की छत गिरने से 7 मासूम बच्चों की मौत हो गई और 30 से ज्यादा घायल हो गए. स्कूल की इमारत जर्जर थी लेकिन समय रहते मरम्मत नहीं की गई. हादसे के वक्त बच्चे प्रार्थना सभा में शामिल थे. रेस्क्यू जारी है, परिजन और ग्रामीण स्तब्ध हैं. ये हादसा प्रशासन की गंभीर लापरवाही का आईना है.

राजस्थान के झालावाड़ जिले में शुक्रवार की सुबह एक सरकारी स्कूल में हुए भीषण हादसे ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है. पीपलोदी गांव के सरकारी स्कूल में प्रार्थना सभा के दौरान अचानक छत ढह गई. इस हादसे में 7 मासूम बच्चों की जान चली गई जबकि 30 से अधिक गंभीर रूप से घायल हुए हैं. घटनास्थल पर उस वक्त लगभग 60 बच्चे मौजूद थे, जो मलबे के नीचे दब गए.
ग्रामीणों के मुताबिक स्कूल की इमारत काफी समय से जर्जर अवस्था में थी लेकिन प्रशासन ने कभी इसकी मरम्मत की सुध नहीं ली. यह हादसा ऐसे समय हुआ जब बच्चे रोज़ाना की तरह प्रार्थना कर रहे थे. अचानक पूरी छत उनके सिर पर गिर गई और स्कूल का अहाता चीखों से गूंज उठा.
रेस्क्यू में जुटे ग्रामीण और शिक्षक
हादसे की जानकारी मिलते ही ग्रामीण, शिक्षक और आसपास के लोग मौके पर पहुंचे. सभी ने मिलकर बच्चों को मलबे से निकालने की कोशिश शुरू की. कुछ ही देर में प्रशासन और पुलिस की टीम भी पहुंच गई. जेसीबी और अन्य मशीनों की मदद से मलबा हटाया जा रहा है. अभी तक 8 बच्चों को सुरक्षित निकाला गया है.
अस्पतालों में चल रहा इलाज
घायल बच्चों को मनोहरथाना के सरकारी अस्पताल ले जाया गया. डॉक्टर कौशल लोढ़ा ने बताया कि अस्पताल में अब तक 35 घायल बच्चों को लाया गया है, जिनमें 11 की हालत गंभीर है. इन्हें झालावाड़ के ज़िला अस्पताल रेफर कर दिया गया है. अस्पतालों के बाहर परिजन अपने बच्चों की खबर पाने को व्याकुल हैं.
पूर्व सीएम ने जताया दुख
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने झालावाड़ के मनोहरथाना में हुए स्कूल भवन हादसे पर दुख जताया है. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि एक सरकारी स्कूल की इमारत ढहने की खबरें आ रही हैं, जिसमें कई बच्चों और शिक्षकों को नुकसान पहुंचा है. उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की है कि जनहानि न्यूनतम हो और जो घायल हैं वे जल्द स्वस्थ हों.
कैसे हुआ हादसा?
हादसा उस वक्त हुआ जब पीपलोदी गांव के सरकारी स्कूल में बच्चे रोज़ की तरह प्रार्थना सभा में जुटे हुए थे. बताया गया कि स्कूल की इमारत वर्षों पुरानी और जर्जर हालत में थी. शुक्रवार सुबह अचानक छत भरभराकर गिर पड़ी, जिससे करीब 50 से 60 बच्चे मलबे में दब गए. न तो मरम्मत कराई गई थी, न ही किसी ने खतरे की आशंका को गंभीरता से लिया, जो इस त्रासदी की सबसे बड़ी वजह बनी.
प्रशासन मौके पर मौजूद
कलेक्टर और अन्य आला अफसर घटनास्थल पर पहुंच गए हैं. प्रशासन रेस्क्यू ऑपरेशन में कोई कसर नहीं छोड़ रहा. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर इतनी जर्जर इमारत में बच्चों की जान को खतरे में क्यों डाला गया? क्या यह लापरवाही प्रशासनिक अपराध नहीं?
लापरवाही पर उठे सवाल
जैसे ही खबर फैली, विपक्षी दलों ने सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाया. सोशल मीडिया पर सवाल उठने लगे कि क्या यह हादसा था या सरकारी उदासीनता का नतीजा? अब ज़रूरत है कि जांच हो, दोषियों पर कार्रवाई हो और सभी जर्जर स्कूल इमारतों की तुरंत समीक्षा की जाए ताकि फिर कोई मासूम मलबे में दफ़न न हो.