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मैसूर पाक नहीं, अब कहिए 'मैसूर श्री', जयपुर की मिठाई में घुला देशभक्ति का स्वाद

भारत-पाक के बीच हुए हालिया तनाव ने बहुत सारी चीजों पर असर डाला. इनमें खाने की चीजें भी शामिल हैं. खासतौर पर मिठाईयां, जिनके नाम में पाक है. मैसूर पाक सबसे फेमस मिठाई है, लेकिन लोगों ने अब इसके नाम पर आपत्ति जताई. जहां जयपुर की एक शॉप ने अपनी सारी मिठाइयों में से पाक नाम हटाकर श्री कर दिया है.

मैसूर पाक नहीं, अब कहिए मैसूर श्री, जयपुर की मिठाई में घुला देशभक्ति का स्वाद
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( Image Source:  Freepik )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 23 May 2025 4:57 PM IST

भारत-पाक तनाव के बीच बहुत कुछ बदला. जहां सरकार ने नापाक पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए खड़े कदम उठाए. वहीं, लोगों ने भी देश को हर चीज से ऊपर रखा. इस बीच जयपुर शहर एक खास वजह से चर्चा में है. जहां देश भक्ति का स्वाद मिठाइयों में भी देखने को मिला.

दरअसल शहर की मशहूर मिठाई की दुकान त्यौहार स्वीट्स ने एक अनोखा कदम उठाया है. जहां उन्होंने अपनी मिठाइयों के नामों में से 'पाक' शब्द हटा दिया है. त्यौहार स्वीट्स में 125 से ज्यादा टाइप की मिठाइयां मिलती हैं. इस दुकान की मालकिन अंजलि जैन ने बताया कि उनका यह फैसला देश के लिए प्यार और सम्मान की भावना से जुड़ा है. उनका मानना है कि देशभक्ति सिर्फ सैनिकों की ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर नागरिक को इसमें हिस्सा लेना चाहिए.

अब कहिए मैसूर श्री

अब मैसूर पाक मैसूर श्री बन गया है. इस ही तरह मोती पाक, आम पाक और गोंड पाक जैसी मिठाइयों के भी नाम बदल दिए गए हैं. यहां तक कि जो मिठाइयां सोने और चांदी के वर्क से सजाई जाती थीं. जैसे स्वर्ण भस्म पाक और चांदी भस्म पाक. अब इन मिठाइयों को स्वर्ण श्री और चांदी श्री कहा जाएगा.

ग्राहकों की मांग पर उठाया गया कदम

इस बदलाव का कारण सिर्फ दुकान की पहल नहीं थी, बल्कि ग्राहकों की भावना भी इसमें शामिल थी. कई लोगों ने खुद आकर दुकान से कहा कि वो 'पाक' शब्द को मिठाई से हटाएं. त्यौहार स्वीट्स के इस कदम की तारीफ़ हो रही है. जयपुर की कई और मिठाई दुकानें भी अब इसी रास्ते पर चलने की तैयारी में हैं. यह बदलाव दिखाता है कि कैसे एक छोटी-सी पहल लोगों के दिलों को छू सकती है और समाज में एक सकारात्मक संदेश दे सकती है.

पाक का मतलब

पाक’ शब्द संस्कृत से लिया गया है और जिसका मतलब खाना पकाना होता है. भारत में मिठाइयों और पकवानों के नामों में सालों से इस्तेमाल होता आया है, लेकिन अब इसे हटाने का फैसला भाषा के अर्थ से ज़्यादा, आज की राजनीति और माहौल से जुड़ा हुआ है.

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