राजस्थान में होली के अजब-गजब रंग, कहीं कपड़ा फाड़ तो कहीं 'मुर्दों की सवारी'
Rajasthan Holi 2025: देश के बाकी हिस्सों की तरह राजस्थान में भी होली मनाने की अलग-अलग परंपराएं हैं. यहां अलग-अलग शहरों में फूलों की होली से लेकर दूध-दही से भी होली खेली जाती है. इतना ही नहीं बरसाना की तरह लट्ठमार होली का आयोजन भी किया जाता है. इस अवसर पर रास्थान में विदेशी पर्यटकों की भीड़ देखने को मिलती है.

Holi 2025: देश भर में 14 मार्च को हिन्दुओं का पवित्र त्योहार होली मनाई जाएगी. अभी से ही होली के रंग देखने को मिल रहे हैं. मथुरा-वृंदावन में तो वसंत पंचमी से अलग-अलग तरह की होली खेली जा रही है. भारत में इस त्योहार को लेकर अलग-अलग परंपराएं और रीति-रिवाज हैं. कही चिता की राख से होली तो कहीं लड्डू और फूलों से होली खेलकर, मस्ती भरे इस पर्व को मनाया जाता है. वहीं राजस्थान में भी विभिन्न प्रकार से होली मनाई जाती है.
राजस्थान में होली के अनेक रंग देखने को मिलते हैं. यहां पर बरसाना की लट्ठमार होली भी खेली जाती है. सराबोर फूलों, मंदिर में दूध-दही के साथ होली खेली जाती है. इस अवसर पर पारंपरिक डांस भी किया जाता है और महिलाएं लोक गीत भी गाती हैं. आज हम आपको राजस्थान की मशहूर कुछ होली के बारे में बताएंगे.
कपड़ाफाड़ होली
अजमेर के पुष्कर में सालों से कपड़ाफाड़ होली खेली जाती है. इसमें विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं. गाने-बाजे और गुलाल से माहौल मस्ती भरा हो जाता है. इसमें पुरुषों की शर्ट फाड़ दी जाती है. थोड़ी ऊंचाई पर रस्सी बांधी जाती है और फटे हुए कपड़े फेंके जाते हैं. अगर कपड़ा रस्सी पर लटक जाता है तो सब खुश होते हैं.
लट्ठमार होली
भरतपुर में बरसाना की तरह की लट्ठमार होली खेली जाती है. पुरुष महिलाओं पर रंग फेंकते हैं और महिलाएं उन्हें लट्ठ से मारती हैं. इस दौरान सभी लोग हंसने लगते हैं.
जयपुर में फूलों की होली
जयपुर स्थित गोविंद देवजी मंदिर में फूलों की होली खेली जाती है. मंदिर को लाल और पीले फूलों से सजाया जाता है.
दूध-दही की होली
राजस्थान की दूध और दही की होली भी काफी मशहूर है. राजसमंद के नाथद्वारा में इस होली का आयोजन किया जाता है. कृष्ण स्वरूप श्रीनाथ जी मंदिर में दूध-दही में केसर मिलाकर भगवान को भोग लगाते हैं और भक्त भजन गाते हैं.
मुर्दे की सवारी
प्रदेश के भीलवाड़ा जिले में अजीबोगरीब परंपरा है. यहां पर होली के 7 दिन बाद शीतला सप्तमी पर लट्ठमार होली खेली जाती है. वहीं चित्तौड़गढ़ वालों की हवेली से मुर्दे की सवारी निकालने की परंपरा है. इसके लिए लकड़ी की सीढ़ी पर जिंदा इंसान को लेटाकर नकली अर्थी को पूरे इलाके में घुमाया जाता है. वहीं लोग अर्थी पर गुलाल डालते हैं.