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लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए, पर नफरती चिंटुओं तुम सब पाताल में ही रहो

किसी महिला की आस्था, पहचान या पहनावे के साथ सार्वजनिक रूप से छेड़छाड़ न केवल असंवेदनशील है, बल्कि देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचाती है. अगर हिजाब पर आपत्ति है तो उस पर सभ्य, स्पष्ट और संवैधानिक तरीके से खुली बहस या बैन की बात होनी चाहिए. सशक्तिकरण की बात करने वालों से ऐसे व्यवहार की उम्मीद नहीं की जा सकती.

लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए, पर नफरती चिंटुओं तुम सब पाताल में ही रहो
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पीयूष शर्मा
By: पीयूष शर्मा

Updated on: 19 Dec 2025 8:22 PM IST

Nitish Kumar hijab controversy: हम करें तो लीला और वो करें तो कैरेक्टर ढीला. मामला गंभीर है... उस राज्य में, जहां अभी ताजा-ताजा चुनाव हुए हैं, पर मुख्यमंत्री थोड़े पुराने हैं. ओल्ड हैं तो गोल्ड होंगे ही... पर अब वो कुछ समय से बोल्ड भी हो गए हैं. मसला मर्जी का था. एक की थी जबरन हिजाब खींचने की और दूसरे की थी उसे पहनने की. पहनने वाली के लिए ये शालीनता-सम्मान का प्रतीक है और खींचने वाले के लिए यह महज़ मौज-मस्ती जैसा लगता है (कम से कम वीडियो में तो यही झलकता है). हंगामा मचा हुआ है. सिर्फ़ भारत में ही नहीं, बल्कि उन देशों में भी जिनसे हम कूटनीतिक दोस्ती के पुल बना रहे हैं.

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अंधा धुंध (Fog) वाले माहौल में टोंट का दौर जारी है. भारत की आबादी का 15 फीसद हिस्सा हैं वो. करीब 22 करोड़ मुसलमान रहते हैं यहां…कहकर अरब देशों के मीडिया संस्थान छीछालेदर पर उतारू हैं. कोई इसे गरिमा पर अटैक बता रहा है तो कोई कमजोरों पर अपनी सीनाजोरी दिखा रहा है. कोई साथ है तो कोई बाद में. किसी का ताप बढ़ रहा है तो किसी का मान. कोई कहता है 'जहन्नुम में जाओ' तो कोई कहता है 'जन्नत में'. पर किसी की व्यक्तिगत आस्था, पहचान और संस्कृति के प्रतीक के साथ छेड़छाड़ क्यों?

'कुछ तो रहा होगा वरना यूं ही कोई बेवफा नहीं होता'

हिजाब खींचना, अगर ग़लत नहीं होता या चुभता नहीं तो क्या माननीय नीतीश कुमार के पीछे खड़े होम मिनिस्टर का हाथ यूं ही बढ़ गया, उन्हें रोकने के लिए? कुछ तो रहा होगा वरना यूं ही कोई बेवफा नहीं होता. जबकि बाक़ी वहां खड़े कुछ माननीय इस पर अपनी हास्य स्वीकृति देने में जुटे हुए थे... और अब उनके सिपहसालार उनकी इस हरकत का महिमामंडन करने में जुट गए हैं. क्यों? अगर ये सही था तो सम्राट चौधरी का हाथ, नीतीश कुमार को रोकने के लिए नहीं बढ़ता. सही को सही और गलत को गलत कहने में इतना संकोच आखिर क्यों?

अब क्यों चुप साधि रहा बलवाना?

विपक्षी क्रांति करने में लगे हुए हैं तो पक्ष शांति. अब वही पार्टी बचाव करने में जुट गई है, जिसने आज से तीन साल पहले पैगम्बर साहब के खिलाफ एक टिप्पणी करने पर अपनी एक नेत्री को बाहर का रास्ता दिखा दिया था. घर के बाहर डेंट हुई इमेज को जब पेंट करने में उसने तब कोई कसर नहीं छोड़ी थी तो अब क्यों चुप साधि रहा बलवाना? महिलाओं के भरोसे सत्ता का स्वाद चखने वालों का सार्वजानिक रूप से यह व्यवहार जायज नहीं. अगर किसी के पहनावे से आपत्ति है तो इसे बैन कर देना चाहिए. जैसा नॉर्वे, नीदरलैंड्स, फ्रांस और ऑस्ट्रिया जैसे कुछ देशों ने किया है.

कपड़ों पर क्या ऐसी तकरार होनी चाहिए?

भले ही बाबा साहब आंबेडकर यह कह गए हों कि भारत की सड़कों पर हिजाब पहने किसी को देखना सहज नहीं है, यह भयावह है... पर क्या सार्वजनिक तौर पर किसी के साथ ऐसी हरकत करना जायज है? नीतीश कुमार को व्यक्तिगत तौर से जानने वालों का यह मानना है कि उनकी तरफ से सार्वजनिक रूप से किया गया ऐसा व्यवहार उनकी पॉलिटिक्स से कोसों दूर है. बेशक उनकी नीयत पर कोई शक नहीं है पर कपड़ों पर क्या ऐसी तकरार होनी चाहिए? उन्होंने निःसंदेह महिलाओं के लिए बहुत सी योजनाएं शुरू कीं पर पहनावे पर ऐसा आचरण क्यों?

शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन फुलाने का मौका मत दीजिए

अगर कोई बात कहनी थी या समझाइश देनी थी, तो क्या उसे रखने के और भी सभ्य व शालीन तरीके नहीं हो सकते थे? ऐसे हज़ारों रास्ते थे- सद्भाव और गरिमा के साथ. अगर सच में सशक्तिकरण की मंशा है, तो राज्य स्तर पर इसे बैन करने पर खुलकर और ईमानदार चर्चा होनी चाहिए. डेनमार्क भी शैक्षणिक संस्थानों में इसे प्रतिबंधित करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, लेकिन फिलहाल जो धर्म की रोटियां सेंकने का सिलसिला चल पड़ा है, उसे यहीं रुकना चाहिए. नफरत फैलाने वाले चिंटुओं को पाताल में ही पड़े रहने दीजिए. उन्हें शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन फुलाने का मौका मत दीजिए.

किसी भी लिहाज से संस्कारी नहीं

बैन लगाने और हटाने का खेल तो चलता ही रहेगा. आयुष की वह छात्रा कॉलेज में भी हिजाब पहनती थी या नहीं, इस बहस में उलझने से बचना चाहिए. वह किसी से बात करती थी या नहीं, इस पर बौद्धिक जुगाली करना भी निरर्थक है. वह नौकरी ठुकराए या जॉइन करे, इस पर किसी को मंडराने की ज़रूरत नहीं. मुद्दा बस इतना है कि लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए. इस देश, इस समाज से पर्दा प्रथा जड़ से ख़त्म होनी चाहिए पर माननीय का ये बर्ताव किसी भी लिहाज से संस्कारी तो नहीं कहा जा सकता.

बिहारनीतीश कुमारस्टेट मिरर स्पेशल
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