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कांग्रेस का अड़ियल रवैया, भाजपा ने राजस्थान उपचुनाव में कैसे तैयार किया अपना घर?

Rajasthan by election: पड़ोसी राज्य हरियाणा में हार और दो क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन टूटने के बाद कांग्रेस की गति धीमी पड़ गई है. इसके दो शीर्ष नेता अशोक गहलोत और सचिन पायलट भी महाराष्ट्र चुनावों में व्यस्त बताए जा रहे हैं. इस बीच पार्टी की राजस्थान उपचुनाव को लेकर पिछड़ती दिख रही है.

कांग्रेस का अड़ियल रवैया, भाजपा ने राजस्थान उपचुनाव में कैसे तैयार किया अपना घर?
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Rajasthan by election
( Image Source:  ANI )
सचिन सिंह
Edited By: सचिन सिंह

Published on: 3 Nov 2024 2:48 PM

Rajasthan by election: राजस्थान में 13 नवंबर को होने वाले सात विधानसभा उपचुनावों में भाजपा का पलड़ा भारी है. हालांकि, उसके पास सात में से केवल एक सीट है. इसके उलटा कांग्रेस जो अच्छा प्रदर्शन करने के लिए तैयार दिख रही थी, वह दौड़ में पिछड़ती दिख रही है. यह पिछले साल के विधानसभा चुनावों के जैसा है, जिसमें पार्टी भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिए तैयार दिख रही थी, लेकिन चुनाव के करीब आते-आते ढीली पड़ गई, जिसे 200 में से केवल 69 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा, जबकि भाजपा को 115 सीटें मिली थी.

अक्टूबर में हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले कांग्रेस का राज्य में दबदबा था, जहां उपचुनाव की चार सीटों पर उसका कब्ज़ा था. इसके पूर्व सहयोगी भारत आदिवासी पार्टी (BAP) और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के पास एक-एक निर्वाचन क्षेत्र है. हालांकि, संसदीय चुनावों के बाद कांग्रेस ने जो गति पकड़ी थी. पार्टी ने एक दशक में पहली बार अपना खाता खोला और भाजपा ने अपनी 14 संसदीय सीटों में से 10 खो दी थी.

कांग्रेस के दोनों बड़े नेता महाराष्ट्र में हैं व्यस्त

कांग्रेस के दो बड़े नेता महाराष्ट्र में भी व्यस्त हैं. पार्टी ने तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत को मुंबई और कोंकण संभाग के लिए AICC का वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किया है, जबकि सचिन पायलट को मराठवाड़ा संभाग के लिए AICC का वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है. चूंकि वे अभी राजस्थान उपचुनावों में सक्रिय नहीं हैं, इसलिए पार्टी नेताओं का कहना है कि त्योहारों की छुट्टी के बाद सोमवार से ज़्यादातर गतिविधियां शुरू होंगी.

चुनौतियों के बावजूद कांग्रेस नेताओं को अभी भी चारों सीटें बरकरार रखने की उम्मीद है. कांग्रेस के एक नेता ने कहा, 'कांग्रेस के पास इनमें से चार सीटें थीं और हम चारों पर जीत हासिल करेंगे. भाजपा सत्ताधारी पार्टी होने के कारण ज्यादा शोर मचा रही है, जबकि हम चुपचाप ज़मीन पर काम कर रहे हैं.'

गठबंधन तोड़ना नुकसान का बन सकता है कारण

कांग्रेस का बीएपी और आरएलपी के साथ गठबंधन भी टूट गया. बीएपी के साथ ऐसा मुख्य रूप से उसकी महत्वाकांक्षाओं के कारण हुआ क्योंकि वह अपनी चौरासी सीट से ज़्यादा चाहती थी और कांग्रेस भी अपने पूर्व सहयोगी के बढ़ते ग्राफ़ से चिंतित थी. आरएलपी के साथ ऐसा आंशिक रूप से पार्टी प्रमुख हनुमान बेनीवाल के अस्थिर स्वभाव के कारण हुआ. वह राज्य कांग्रेस प्रमुख गोविंद सिंह डोटासरा पर निशाना साधते रहे थे और दोनों के बीच अंतर-जातीय संघर्ष भी देखने को मिला.

कांग्रेस के एक नेता ने कहा, 'लोकसभा चुनाव में गठबंधन भाजपा को हराने के लिए किया गया था. लेकिन इन सभी निर्वाचन क्षेत्रों में हमारी स्थानीय इकाइयां हैं. आरएलपी या बीएपी के साथ गठबंधन करने से हमारे स्थानीय नेतृत्व पर असर पड़ता.'

बागियों पर काबू पाने में बीजेपी कामयाब

भाजपा ने इस बीच अपने बागियों को काबू में कर लिया तो कांग्रेस ने दुर्ग सिंह को खो दिया. उन्होंने 2023 में भी निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा था. देवली उनियारा में नरेश मीना निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं, जहां कांग्रेस ने फिर से टिकट देने से इनकार कर दिया. बीएपी, आरएलपी और अन्य के समर्थन का दावा कर रहे हैं, जबकि पूर्व कांग्रेस मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने झुंझुनू से चुनाव लड़ा है. हालांकि, झुंझुनू गुढ़ा की पारंपरिक उदयपुरवाटी सीट नहीं है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भाजपा ने संसदीय चुनावों से सबक सीखा है. विधानसभा चुनावों की तुलना में वह इन सीटों पर बेहतर तरीके से नियंत्रण कर पाई है. उसने जय आहूजा (रामगढ़), बबलू चौधरी (झुंझुनू) और नरेंद्र मीना (सलूंबर) के बागियों को नियंत्रित किया है. साथ ही खींवसर में अपनी संभावनाओं को मजबूत करने के लिए दुर्ग सिंह को शामिल किया है. 2008 में इसके गठन के बाद से बेनीवाल परिवार इस सीट पर जीतता आ रहा है.

सत्ता में होने का बीजेपी को होगा फायदा

इसके अलावा भाजपा को सत्तारूढ़ पार्टी होने 4 लाख सरकारी नौकरियों के वादे, पेपर लीक पर नकेल कसने और अगले कई महीनों के लिए भर्ती कैलेंडर जारी करने, पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) - जिसमें दौसा, रामगढ़ और देवली उनियारा शामिल हैं और प्रस्तावित दिसंबर निवेश शिखर सम्मेलन से लाभ हो सकता है.

कई सीटों में पिछड़ रही है कांग्रेस

आहूजा के इस दौड़ से बाहर होने से रामगढ़ में कांग्रेस के लिए यह एक कठिन काम बन गया है. वहां, 2023 में वोटों के विभाजन से जुबैर खान को फायदा हुआ था. 2018 में भी जुबैर खान की पत्नी शफिया जुबैर ने सिंह को हराया था क्योंकि भाजपा के जगत सिंह की बगावत के कारण वोटों का विभाजन हुआ था, उन्होंने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था.

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