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अंधविश्वास की जलती सलाखें, मां ने तांत्रिक के कहने पर नौ महीने के बच्चे को लोहे से दागा! फिर जो हुआ...

राजस्थान के भीलवाड़ा जिले से अंधविश्वास का चौंकाने वाला मामला सामने आया, जहां एक मां ने तांत्रिक के कहने पर अपने नौ महीने के बच्चे को गर्म लोहे की सलाखों से दाग दिया. बच्चे की हालत बिगड़ने पर परिवार ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया. फिलहाल बच्चे की तबीयत अब ठीक है.

अंधविश्वास की जलती सलाखें, मां ने तांत्रिक के कहने पर नौ महीने के बच्चे को लोहे से दागा! फिर जो हुआ...
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( Image Source:  Sora_ AI )
सागर द्विवेदी
By: सागर द्विवेदी

Published on: 7 Nov 2025 1:07 PM

राजस्थान के भीलवाड़ा जिले से एक ऐसी घटना सामने आई है जिसने इंसानियत को झकझोर दिया है. विज्ञान और आधुनिकता के दौर में भी अंधविश्वास की जंजीरों में जकड़े कुछ लोग अब भी मासूम ज़िंदगियों से खेल रहे हैं. नौ महीने के एक मासूम बच्चे को निमोनिया के इलाज के नाम पर गर्म सलाखों से दागा गया. वो भी उसकी मां की आंखों के सामने.

यह घटना जितनी दर्दनाक है, उतनी ही सोचने पर मजबूर कर देने वाली भी है कि आखिर क्यों आज भी लोग डॉक्टर के बजाय झाड़-फूंक और टोने-टोटके का सहारा लेते हैं. उस मासूम की चीखें शायद अब भी गांव की हवा में गूंज रही होंगी.

अंधविश्वास की आग में झुलसा मासूम

भीलवाड़ा जिले के एक छोटे से गांव में नौ महीने के बच्चे (गोविंद) की तबीयत कुछ दिनों से खराब थी. उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. बच्चे की मां कोयली देवी बागरिया, जो अशिक्षा और अंधविश्वास के घेरे में फंसी हुई थी, इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाने के बजाय एक स्थानीय ‘झाड़-फूंक करने वाले’ के पास पहुंची.

उस व्यक्ति ने 'इलाज' के नाम पर गर्म सलाखें लीं और बच्चे के नाजुक सीने पर क्रॉस (X) का निशान बना दिया. कुछ ही पलों में बच्चे की चीखें आसमान को चीर गईं. उसकी नन्ही सांसें लड़खड़ा गईं, और हालत बिगड़ती चली गई.

अस्पताल पहुंचते-पहुंचते नाजुक हुई हालत

जब परिवार को होश आया कि मामला गंभीर है, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. आनन-फानन में बच्चे को मातृ एवं शिशु महात्मा गांधी जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे PICU (बच्चों का ICU वॉर्ड) में भर्ती किया गया. डॉक्टरों ने तुरंत इलाज शुरू किया और बताया कि, “बच्चे की हालत अब स्थिर है, लेकिन उसे कुछ दिन निगरानी में रखना होगा.” अगर समय पर अस्पताल नहीं लाया गया होता, तो बच्चा शायद अब इस दुनिया में नहीं होता.

मां का दर्द और मासूमियत भरा बयान

कोयली देवी ने जब मीडिया से बात की तो उसकी आंखें नम थीं. उसने कांपती आवाज़ में कहा कि “मेरा बेटा गोविंद नौ महीने का है. कुछ दिनों से उसकी तबीयत खराब थी. उसे सांस लेने में थोड़ी तकलीफ हो रही थी. जिसके इलाज के लिए मैं उसे एक व्यक्ति के पास ले गई. उसने कहा गर्म सलाखों से निशान बनाना ठीक रहेगा. जब बच्चा ठीक नहीं हुआ, तो हम अस्पताल आ गए.” उसके शब्दों में न पछतावा कम था, न दर्द. बस एक मां का टूटता यकीन और अपनी गलती का एहसास झलक रहा था.

डॉक्टरों की अपील- 'अंधविश्वास नहीं, डॉक्टर पर भरोसा करें'

अस्पताल के डॉक्टरों ने बच्चे का इलाज करते हुए साफ कहा कि “ऐसे मामले ग्रामीण क्षेत्रों में आम होते जा रहे हैं. लोग किसी की बातों में आकर बच्चों पर ये अमानवीय उपचार करते हैं, जिससे उनकी जान तक जा सकती है.” डॉक्टरों ने जनता से अपील की. “कृपया बीमारी के किसी भी लक्षण पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. झाड़-फूंक, तंत्र-मंत्र या गर्म सलाखों जैसे खतरनाक तरीकों से बचें.”

जब विज्ञान के युग में अंधविश्वास की जड़ें गहरी हैं

यह घटना सिर्फ एक परिवार की कहानी नहीं है- यह उन सैकड़ों गांवों का आईना है, जहां आज भी अंधविश्वास शिक्षा और जागरूकता पर भारी पड़ रहा है. इस एक दर्दनाक घटना ने यह सवाल फिर से खड़ा कर दिया है. क्या हम सचमुच 21वीं सदी में जी रहे हैं? या अब भी अंधविश्वास की अंधेरी गलियों में भटक रहे हैं?

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