पंजाब में बढ़ रही बुजुर्गों की संख्या, 11.8% कम हुआ जन्म दर? जानें बच्चे पैदा क्यों नहीं करना चाहती हैं महिलाएं
पंजाब में पिछले एक दशक के दौरान प्रजनन दर में बड़ी गिरावट आई है. यह बदलाव सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे समाज की बदलती सोच, जीवनशैली और प्राथमिकताओं की गहरी कहानी जुड़ी हुई है. केंद्र सरकार की सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम स्टैटिस्टिकल रिपोर्ट ने इस बदलाव को सामने रखा है, जो आने वाले समय में पंजाब की सामाजिक और जनसंख्या संरचना की तस्वीर बदल सकता है.

पंजाब में हालिया आंकड़े बता रहे हैं कि बुजुर्गों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, वहीं प्रजनन दर में लगातार गिरावट देखी जा रही है. राज्य में अब लगभग 11.8% की कमी दर्ज की गई है, जो बच्चों के जन्म लेने की दर में कमी को दर्शाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि बदलती जीवनशैली, करियर की प्राथमिकता, आर्थिक दबाव और परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता ने महिलाओं को बच्चे पैदा करने से परहेज करने के लिए प्रेरित किया है.
महिलाओं में शिक्षा और पेशेवर जीवन में बढ़ती भागीदारी भी इस गिरावट का बड़ा कारण मानी जा रही है. साथ ही, स्वास्थ्य सुविधाओं और सामाजिक समर्थन की सीमित पहुंच ने भी परिवारों को छोटे परिवार बनाने के लिए प्रभावित किया है. इस बदलाव से न केवल प्रजनन दर प्रभावित हो रही है बल्कि राज्य की जनसांख्यिकीय संरचना में भी धीरे-धीरे बदलाव देखने को मिल रहा है.
बदलते पंजाब की तस्वीर
साल 2011-13 में पंजाब की कुल प्रजनन दर यानी Total Fertility Rate (TFR) 1.7 थी. लेकिन 2021-23 आते-आते यह घटकर 1.5 पर पहुंच गई. यह गिरावट लगभग 11.8% है और राष्ट्रीय औसत से भी कम है. कहने का मतलब यह है कि पूरे देश में औसत प्रजनन दर 2.0 है, जबकि पंजाब इससे नीचे खड़ा है.
शहर और गांव दोनों जगह एक जैसा हाल
ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों की स्थिति इस बदलाव की गवाही देती है. ग्रामीण पंजाब में TFR 2011-13 में 1.8 थी, जो अब घटकर 1.6 रह गई है. यानी 11.1% की कमी. शहरी पंजाब में यह 1.6 से घटकर 1.4 हो गई है. यह 12.5% की गिरावट है. ऐसे में पंजाब के गांव और शहर दोनों ही छोटे परिवार की संस्कृति की ओर बढ़ रहे हैं.
क्यों माना जाता है 2.1 को आदर्श दर?
जनसंख्या को स्थिर रखने के लिए विशेषज्ञ 2.1 की प्रजनन दर को आदर्श मानते हैं. यानी अगर औसतन हर महिला दो से अधिक बच्चे पैदा करे तो अगली पीढ़ी की संख्या संतुलित रहती है. लेकिन पंजाब इस आंकड़े से काफी पीछे है. यही वजह है कि भविष्य में यहां जनसंख्या घटने की संभावना भी जताई जा रही है. यह स्थिति वैसे ही है, जैसे कई विकसित देशों में देखी जाती है जहां जन्मदर कम होने से आबादी सिकुड़ रही है.
महिलाएं और बदलती प्राथमिकताएं
पंजाब की प्रजनन दर में आई कमी की सबसे बड़ी वजह महिलाओं की शिक्षा, नौकरी और स्वतंत्र सोच है. रिपोर्ट बताती है कि अब 15 से 59 साल की आयु वर्ग की महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है. साल 2013 में इस आयु वर्ग में महिलाओं का प्रतिशत 66.4 था, जो 2023 में बढ़कर 68.8 हो गया. वहीं 0-14 आयु वर्ग में महिलाओं की संख्या 22.1% से घटकर 19.1% रह गई. इसका सीधा मतलब है कि राज्य में शिक्षा प्राप्त और कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ रही है, और उसी के साथ परिवार नियोजन और जिम्मेदार पेरेंटिंग की सोच भी मजबूत हो रही है.
बुजुर्गों की बढ़ती संख्या
कम जन्मदर का सीधा असर बुजुर्गों की बढ़ती आबादी में झलक रहा है. 2013 में पंजाब की कुल जनसंख्या में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों का प्रतिशत 10.6 था, जो अब 11.6 हो गया है. महिलाओं में यह 11.5% से बढ़कर 12.1% हो गई, जबकि पुरुषों में 9.8% से बढ़कर 11.1%. यानी पंजाब धीरे-धीरे एजिंग सोसाइटी की ओर बढ़ रहा है, जहां बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है और बच्चों की संख्या कम होती जा रही है.
जीवनशैली और सोच का बदलाव
पंजाब में यह गिरावट सिर्फ सरकारी नीतियों की वजह से नहीं है, बल्कि लोगों की बदलती सोच से भी जुड़ी है. पहले माना जाता था कि ज्यादा बच्चे होंगे तो कमाई के साधन भी बढ़ेंगे. लेकिन अब यह सोच पूरी तरह बदल गई है. बच्चों की पढ़ाई और उनके भविष्य पर खर्च लगातार बढ़ रहा है. शहरीकरण और आधुनिक जीवनशैली ने माता-पिता की प्राथमिकताएं बदल दी हैं. परिवार छोटे रखकर बच्चों को बेहतर संसाधन देने की सोच हावी हो गई है.
भविष्य का संकेत
पंजाब का यह अनुभव भारत के लिए भी एक संकेत है. राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रजनन दर 2.4 से घटकर 2.0 हो चुकी है. आने वाले वर्षों में भारत की औसत दर भी पंजाब की तरह और नीचे जा सकती है. इसका मतलब है कि देश धीरे-धीरे उस स्थिति में जा रहा है, जिसे विकसित देशों ने पहले से झेला है—यानी कम जन्मदर और बढ़ती बुजुर्ग आबादी. पंजाब की घटती प्रजनन दर की कहानी दरअसल बदलती जिंदगी, आगे बढ़ती महिलाएं और छोटे परिवार की सोच का आईना है. यह बदलाव दिखाता है कि जब समाज की सोच बदलती है तो जनसांख्यिकीय तस्वीर भी उसी हिसाब से बदल जाती है.