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क्या है जैन धर्म में संथारा व्रत जिसने ली तीन साल की बच्ची की जान, सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद क्यों हुई ये परंपरा

मध्य प्रदेश से आस्था पर सवाल उठाते हुए एक घटना सामने आई है जहां एक माता पिता द्वारा तीन साल की बच्ची को जैन धर्म में संथारा व्रत से गुजरना पड़ा जिससे उसकी मौत हो गई. हालांकि बड़ा सवाल ये है कि सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित एक तीन साल की बच्ची को अन्न जल त्यागना पड़ा और जिससे उसकी मौत हो गई.

क्या है जैन धर्म में संथारा व्रत जिसने ली तीन साल की बच्ची की जान, सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद क्यों हुई ये परंपरा
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रूपाली राय
Edited By: रूपाली राय

Published on: 4 May 2025 10:26 AM

मध्य प्रदेश के इंदौर से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहां तीन साल की एक बच्ची, वियाना जैन, की मौत जैन धर्म की पारंपरिक संथारा व्रत के दौरान हो गई. यह व्रत जीवन के अंतिम चरण में आत्मिक शुद्धि और संसार से अलगाव की भावना के साथ मृत्यु तक अन्न-जल त्यागने की एक आध्यात्मिक परंपरा है. हालांकि परंपरा और माता पिता के खिलाफ यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर वह खुद अपनी तीन साल की बेटी जिसने न दुनिया देखी न उसे समझा आखिर उसे 'संथारा व्रत' के जैस अनुष्ठान के लिए मान सकते हैं.

बच्ची के माता-पिता पीयूष जैन और वर्षा जैन दोनों आईटी प्रोफेशनल हैं और इंदौर में रहते हैं. उनकी इकलौती बेटी वियाना को जनवरी 2025 में ब्रेन ट्यूमर का पता चला था. पीयूष जैन ने मीडिया को बताया कि सर्जरी के बाद बच्ची की हालत कुछ समय के लिए बेहतर हुई, लेकिन मार्च में उसकी तबीयत अचानक बिगड़ गई. उसे खाने और पानी निगलने में कठिनाई हो रही थी.

बच्ची अंत की ओर है

ऐसे में, परिवार 21 मार्च की रात को इंदौर में एक प्रख्यात जैन मुनि, राजेश मुनि महाराज के पास आशीर्वाद और मार्गदर्शन लेने पहुंचा. पीयूष जैन के अनुसार, मुनि महाराज ने बच्ची की स्थिति देख कर यह कहा कि अब उसका जीवन अंत की ओर है और उसे संथारा व्रत लेना चाहिए. माता-पिता ने कुछ देर विचार के बाद सहमति दे दी, और बच्ची को संथारा दिलाया गया.

'संथारा' लेनी वाली पहली सबसे कम उम्र की बच्ची

बच्ची को दुनिया की सबसे कम उम्र की 'संथारा लेने वाली' के रूप में दर्ज किया गया. वियाना की मौत से पहले, गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने उसे 'दुनिया की सबसे कम उम्र की संथारा लेने वाली व्यक्ति' के रूप में प्रमाण पत्र जारी किया था. इस रिकॉर्ड के लिए आवेदन भी कथित रूप से माता-पिता की ओर से किया गया था.

बेटी के दर्द से हर रोज टूट रही थी मां

वर्षा जैन ने इसे बहुत ही कठिन फैसला बताते हुए कहा है कि उनकी बेटी का दर्द असहनीय था जिससे वह हर रोज टूट रही थी. वियाना की मां वर्षा जैन ने एक मीडिया बयान में कहा, 'मैं यह नहीं बता सकती कि उसे संथारा के लिए तैयार करना हमारे लिए कितना कठिन था. लेकिन वह बहुत कष्ट में थी, उसकी हालत देखकर मैं रोज़ टूट रही थी. उन्होंने यह भी कहा, 'अब मैं चाहती हूं कि वह अपने अगले जन्म में कभी दुख न पाए, सिर्फ खुश रहे.'

संथारा: आस्था या आत्महत्या?

जैन धर्म में संथारा एक आध्यात्मिक परंपरा है, जिसमें मृत्यु को आत्मिक रूप से स्वीकार किया जाता है. इसका मकसद मोक्ष प्राप्ति और आत्मा की शुद्धि है. लेकिन इस परंपरा की कानूनी और नैतिक आलोचना भी होती रही है, खासकर तब जब इसे कमजोर या असहाय व्यक्तियों पर लागू किया जाए. 2015 में राजस्थान हाई कोर्ट ने इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत दंडनीय करार दिया था. लेकिन जैन समुदाय द्वारा जोरदार विरोध और याचिकाओं के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले पर रोक लगा दी थी, जिससे यह परंपरा फिलहाल वैधानिक संरक्षण में है.

अब उठ रहे हैं सवाल

इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या तीन साल की बच्ची, जो न उम्र से इतनी समझदार भी नहीं थी, न धर्म की गहराइयों को समझने में सक्षम थी– उसके लिए संथारा जैसे कठोर धार्मिक अनुष्ठान को चुनने का फैसला माता-पिता को लेने का अधिकार है?. बाल अधिकार कार्यकर्ता, मेडिकल और सामाजिक संगठनों ने इस घटना पर चिंता व्यक्त की है. कई एक्सपर्ट्स ने इसे मनोवैज्ञानिक रूप से असहनीय और कानूनी रूप से विवादास्पद बताया है. वहीं, पुलिस सूत्रों का कहना है कि वे मामले की कानूनी और नैतिक जांच कर रहे हैं, और यह देखा जाएगा कि क्या किसी प्रकार की बाल अधिकारों की अनदेखी या धार्मिक आस्था के नाम पर अतिरेक हुआ है.

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