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रेप पीड़िता की तरह आरोपी की पहचान गुप्त क्यों नहीं रखी जाती? MP हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी कि जब तक आरोप सिद्द न हो जाए तब तक रेप पीडि़ता की तरह आरोपी की पहचान को भी सार्वजनिक न किया जाए. इस पर कोर्ट ने राज्य सरकार ने सवाल किया कि पीड़िता की तरह आरोपी की पहचान गुप्त क्यों नहीं रखी जाती है. इसका जवाब देने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया है.

रेप पीड़िता की तरह आरोपी की पहचान गुप्त क्यों नहीं रखी जाती? MP हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब
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( Image Source:  META AI )
निशा श्रीवास्तव
Edited By: निशा श्रीवास्तव

Updated on: 28 Nov 2025 1:30 PM IST

MP High Court: देश में महिलाओं के साथ बलात्कार के मामले बढ़ते जा रहे हैं. ऐसे केस की जांच के दौरान रेप पीड़िता की असली पहचान छुपाई जाती है और उसका दूसरा नाम रखा दिया जाता है. वहीं आरोपी की पहचान नहीं छुपाई जाती. ऐसे ही एक मामले की सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि जब पीड़िता की असली पहचान छुपाई जाती है तो आरोपी की क्यों नहीं.

हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत व जस्टिस विवेक जैन की युगल बेंच ने यह अहम टिप्पणी की है. सुनवाई के दौरान आरोपी ने दलील दी थी कि जिसपर कोर्ट ने सुनवाई की. आरोपी ने कहा था कि उसकी पीड़िता के साथ पहले से जान-पहचान है. इसलिए उसके खिलाफ एफआईआर रद्द की जाए.

क्या है मामला?

यह मामला मुरैना जिले के रामपुर थाना क्षेत्र का है. एक शादीशुदा महिला ने रघुराज गुर्जर पर बलात्कार का आरोप लगाया. महिला ने उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई. फिर यह मामला कोर्ट में पहुंच गया. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने पूछा गया कि आरोपी की पहचान क्यों नहीं छिपाई जाती है. इसका जवाब देने के लिए सरकार को 4 सप्ताह का समय दिया गया है. अगर सरकार ने तय समय पर जवाब दिया तो 15 हजार रुपये का जुर्माना चुकाना पड़ सकता है. यह राशि हाई कोर्ट विधिक सहायता कमेटी में जमा किया जाएगा.

नाम गुप्त रखने की अपील

जबलपुर के निवासी डॉ. पी.जी. नाजपांडे और डॉ. एम.ए. खान ने हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की है. उनकी वकील अजय रायजादा ने सुनवाई के दौरान तर्क दिया कि आपराधिक न्याय प्रणाली में जहां दुष्कर्म पीड़िता की पहचान गोपनीय रखने का प्रावधान है, वहीं आरोपी का नाम सार्वजनिक कर दिया जाता है. यह एक तरह का लैंगिक भेदभाव है, जो भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत है.

अजय रायजादा ने यह भी कहा कि कानून के अनुसार जब तक किसी पर अपराध साबित नहीं हो जाता, तब तक वह निर्दोष माना जाता है. ऐसे में विशेष रूप से दुष्कर्म जैसे गंभीर आरोपों में आरोपी का नाम सामने आने से उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा और छवि खराब होती है. उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि जब तक मुकदमे की कार्यवाही पूरी नहीं हो जाती, तब तक दुष्कर्म के आरोपी का नाम भी गोपनीय रखा जाए.

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