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क्या है हिंगोट युद्ध? इंदौर में 200 साल पुरानी परंपरा निभाने के चलते हुआ हादसा, अब तक 35 लोग घायल

Indore News: इंदौर जिले के गौतमपुरा में 21 अक्टूबर को आयोजित हिंगोट युद्ध में 35 लोग घायल हो गए. यह वार्षिक परंपरा दीपावली के अगले दिन मनाई जाती है. आग के गोले और भीड़ के कारण कई लोग घायल हो गए. सुरक्षा कारणों से इस पर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन स्थानीय लोग इसे अपनी सांस्कृतिक धरोहर मानते हुए जारी रखते हैं.

क्या है हिंगोट युद्ध? इंदौर में 200 साल पुरानी परंपरा निभाने के चलते हुआ हादसा, अब तक 35 लोग घायल
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( Image Source:  @ians_india )

Indore News: भारत में हर धर्म के लोग रहते हैं. यहां पर अलग-अलग रीति-रिवाज और पुरानी परंपराओं का आज भी पालन किया जाता है. ऐसे ही मध्य प्रदेश में भी सालों से हिंगोट युद्ध का आयोजन किया जाता है, लेकिन इस बार यह भयानक हादसे में बदल गया.

NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक, इंदौर जिले के गौतमपुरा में 21 अक्टूबर को हिंगोट युद्ध का आयोजन हुआ. आग के गोले और भीड़ के कारण कई लोग घायल हो गए. सुरक्षा कारणों से इस वर्ष युद्ध आधे घंटे पहले समाप्त कर दिया गया. इसमें 35 लोग घायल हो गए. आज हम आपको इस अनोखी परंपरा के बारे में बताने वाले हैं.

क्या है हिंगोट युद्ध?

हिंगोट युद्ध एक प्राचीन और अनूठी परंपरा है. यह इंदौर जिले के गौतमपुरा कस्बे में दीपावली के अगले दिन आयोजित होती है. इसमें दो दल तुर्रा और कलंगी एक-दूसरे पर जलते हुए हिंगोट (बारूद से भरे फल) फेंकते हैं. यह युद्ध न केवल साहस और वीरता का प्रतीक है, बल्कि भाईचारे और सामूहिकता का संदेश भी देता है.

बता दें कि हिंगोट एक जंगली फल होता है, जिसका खोल कठोर होता है. इसे सुखाकर अंदर का गूदा निकाल लिया जाता है और फिर उसमें बारूद, कोयला, गंधक और लोहे की कणिकाएं भरकर रॉकेट जैसी डंडी बांधी जाती है.

कैसे होता है खेल?

हिंगोट युद्ध के दौरान योद्धा इन हिंगोटों को अपने झोले में लेकर मैदान में उतरते हैं, जहां ढोल-नगाड़ों के बीच जलते हुए हिंगोट एक-दूसरे पर फेंके जाते हैं. यह परंपरा मुगल काल से जुड़ी मानी जाती है, जब मराठा योद्धाओं ने सीमाओं की रक्षा के लिए हिंगोट का उपयोग किया था. समय के साथ यह अभ्यास युद्ध से एक सांस्कृतिक उत्सव में बदल गया, जो आज भी स्थानीय लोगों के लिए गर्व और पहचान का प्रतीक है.

यह परंपरा रोमांचक और ऐतिहासिक है, लेकिन इसमें हर साल कई लोग घायल होते हैं. सुरक्षा कारणों से इस पर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन स्थानीय लोग इसे अपनी सांस्कृतिक धरोहर मानते हुए जारी रखते हैं. इस बार खेल मातम में बदल गया. हालांकि प्रशासन ने सुरक्षा बढ़ाने के लिए फेंसिंग, डॉक्टर-एंबुलेंस आदि व्यवस्था की है, लेकिन आंग के गोलों को फेंकना सच में खतरनाक है.

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