सरकारी नौकरी बचाने के चक्कर में मां-बाप ने बेटे को जिंदा दफनाया! रोने की आवाज सुनकर ग्रामीणों ने बचाई जान
छिंदवाड़ा में सरकारी नौकरी बचाने के लिए एक माता-पिता ने अपने तीन दिन के बेटे को जंगल में ज़िंदा दफनाया. बच्चे की रोने की आवाज़ सुनकर ग्रामीणों ने तुरंत उसे बचाया और अस्पताल पहुँचाया. आरोपी दंपति पर अब हत्या के प्रयास का मामला दर्ज है. मध्य प्रदेश की दो-बच्चा नीति के तहत सरकारी कर्मचारियों को तीसरे बच्चे के बाद नौकरी से हटाया जा सकता है, यही डर इस सनसनीखेज कदम की वजह बना. घटना समाज, कानून और सरकारी नीतियों पर गंभीर सवाल खड़ा करती है.

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है, जहां सरकारी स्कूल के शिक्षक और उनकी पत्नी ने अपने तीन दिन के बेटे को जंगल में ज़िंदा दफना दिया. वजह सिर्फ इतनी थी कि चौथे बच्चे का जन्म होने पर पिता की सरकारी नौकरी छिन जाने का डर सता रहा था. लेकिन किस्मत से ग्रामीणों ने बच्चे की रोने की आवाज़ सुन ली और उसे समय रहते बाहर निकालकर अस्पताल पहुंचाया.
यह सनसनीखेज मामला धनोरा थाना क्षेत्र के नंदनवाड़ी गांव का है. दंपति के खिलाफ अब हत्या के प्रयास का केस दर्ज किया गया है. चौंकाने वाली बात यह है कि यह घटना उसी दिन सामने आई, जिस दिन एनसीआरबी की रिपोर्ट में बताया गया कि शिशु परित्याग (Infant Abandonment) के मामलों में मध्य प्रदेश लगातार चौथे साल सबसे ऊपर है.
जंगल में दबा मिला मासूम
धनोरा पुलिस के अनुसार 38 वर्षीय शिक्षक बाबलू डंडोलिया और उनकी 28 वर्षीय पत्नी राजकुमारी ने अपने तीन दिन के बेटे को पत्थरों के नीचे दफनाकर छोड़ दिया था. ग्रामीणों ने बच्चे की आवाज़ सुनकर तुरंत मिट्टी और पत्थर हटाए और नवजात को जीवित बचा लिया. बच्चे को तत्काल अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी हालत स्थिर बताई जा रही है.
क्यों दफनाया गया चौथा बच्चा?
धनोरा थाना प्रभारी लखनलाल अहिरवार ने बताया कि उन्होंने पुलिस को बताया कि तीसरे बच्चे को तो रिकॉर्ड से छुपा लिया गया था, लेकिन चौथे बच्चे के दर्ज होते ही बाबलू की नौकरी चली जाती. इसी डर से उन्होंने यह कदम उठाया. जानकारी के अनुसार, 23 सितंबर को राजकुमारी ने बेटे को जन्म दिया और 26 सितंबर को दंपति मोटरसाइकिल से उसे जंगल में ले जाकर दफना आए.
दो-बच्चा नीति का डर
मध्य प्रदेश की दो-बच्चा नीति के तहत सरकारी कर्मचारियों को तीसरे बच्चे के बाद नौकरी से हटाने या पदोन्नति न देने का प्रावधान है. यही नियम इस सनसनीखेज मामले की जड़ बन गया. आरोपी दंपति की पहले से ही 11 और 7 साल की दो बेटियां तथा 4 साल का एक बेटा है. शुरुआत में दंपति पर परित्याग (abandonment) का मामला दर्ज किया गया था, लेकिन बाद में सामने आए वीडियो में बच्चे को पत्थरों के नीचे दबा देखकर पुलिस ने हत्या के प्रयास की धाराएं भी जोड़ दीं. फिलहाल दोनों आरोपी दंपति गिरफ्तार हैं और पुलिस गहन जांच कर रही है.
सामाजिक सवाल
यह घटना सिर्फ कानून-व्यवस्था का मामला नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना और शिक्षा का भी मुद्दा है. सवाल यह है कि क्या सरकारी कर्मचारियों पर ऐसी नीतियां बनाते समय जागरूकता और सुरक्षा उपाय पर्याप्त हैं? क्या बच्चों को बोझ समझने की मानसिकता रोकने के लिए ज्यादा शैक्षिक और सामाजिक कार्यक्रम शुरू नहीं किए जाने चाहिए?