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भिंड के तहसीलदार ने 17 लाख लोगों को मार डाला! बना दिया पूरे शहर का डेथ सर्टिफिकेट

मध्य प्रदेश से एक ऐसी खबर आई है, जहां एक तहसीलदार ने भिंड जिले को ही मार दिया. जहां अब लोगों ने सवाल खड़े किए हैं. दरअसल यह मामला एक मृत पिता के डेथ सर्टिफिकेट से शुरू हुआ था, जिसमें यह गलत हुई है. वहीं, तहसीलदार ने अपनी गलती न मानते हुए लोक सेवा पर दोष मढ़ दिया.

भिंड के तहसीलदार ने 17 लाख लोगों को मार डाला! बना दिया पूरे शहर का डेथ सर्टिफिकेट
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हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 22 May 2025 12:20 PM IST

सोचिए क्या हो जब एक जिले के सारे लोग मर जाएं? आपको यह सुनकर अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह सच है. मध्य प्रदेश के भिंड जिले में एक ऐसा मामला सामने आया है, जहां 2022 के डेटा के मुताबिक 17 लाख लोग रहते हैं, जिनका डेथ सर्टिफिकेट बन चुका है. इसके चलते पूरे प्रशासनिक तंत्र की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर हो चुके हैं.

दरअसल तहसीलदार ने भिंड नाम से डेथ सर्टिफिकेट बनाया, जिसे देख सभी हैरान हैं. यह मामला चतुर्वेदी नगर के रहने वाले गोविंद के दिवंगत पिता रामहेत से जुड़ा है, जिनकी साल 2018 में मृत्यु हो गई थी. इस साल अप्रैल के महीने में जब उनके परिवार को मृत्यु प्रमाण पत्र की जरूरत पड़ी, तो उन्होंने अर्जी डाल दी.

सर्टिफिकेट ने उड़ाए होश

एप्लीकेशन देने के कुछ ही दिनों बाद 5 मई 2025 को जब तहसील ऑफिस से डेथ सर्टिफिकेट जारी हुआ, तो गोविंद और उनके परिवार की आंखें फटी की फटी रह गईं, क्योंकि प्रमाण पत्र में मृतक का नाम “भिंड”, पता “भिंड” और मृत्यु स्थान भी “भिंड” लिखा था. यानि इस बार मृतक कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि खुद पूरा जिला बन गया था.

तहसीलदार ने झाड़ा पल्ला

जब मीडिया ने इस मामले पर तहसीलदार माखनलाल शर्मा से सवाल किए, तो उन्होंने इसे केवल एक “टाइपिंग मिस्टेक” कहकर टालने की कोशिश की. उन्होंने सारा दोष लोक सेवा केंद्र पर डाल दिया. इसके चलते वहां के संचालक पर 25,000 हजार रुपये की पेनल्टी लगा दी.

तहसीलदार को पद से हटाया

लेकिन मामला यहीं नहीं रुका. सवाल ये भी उठा कि जब प्रमाण पत्र पर तहसीलदार के खुद के डिजिटल सिग्नेचर थे, तो क्या उन्होंने बिना देखे ही दस्तावेज़ पर दस्तखत कर दिए? यदि हां, तो यह लापरवाही सीधे-सीधे उन पर भी आती है. इस पूरे विवाद के बाद अपर कलेक्टर एल.के. पांडेय ने मामले की गंभीरता को समझते हुए तहसीलदार माखनलाल शर्मा को उनके पद से हटा दिया और उन्हें भू-अभिलेख विभाग में अटैच कर दिया.

कब सुधरेगी सिस्टम की हालत?

इस मामले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि सरकारी कागज़ातों में एक छोटी सी गलती भी आम आदमी के लिए कितनी बड़ी परेशानी बन सकती है। जब एक पूरे जिले का नाम ही मृतक के रूप में आ सकता है, तो आम जनता अपने प्रमाण-पत्रों की शुद्धता की उम्मीद कैसे करे?

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