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मृतक के फ्रीज स्पर्म को उसके माता-पिता को दिए जाएं , सरोगेसी पर दिल्ली HC का फैसला

30 वर्षीय प्रीत इंदर सिंह को 22 जून, 2020 को नॉन-हॉजकिन लिंफोमा (कैंसर) का पता चला था. कीमोथेरेपी से पहले उन्होंने अपना सीमेन सैंपल क्रायोप्रिजर्वेशन के लिए दिया, क्योंकि कीमोथेरेपी से उनकी फर्टिलिटी प्रभावित हो सकती थी. दुर्भाग्यवश, 1 सितंबर 2020 को उनकी मृत्यु हो गई. इसके बाद, उनके माता-पिता ने उनके संरक्षित स्पर्म के सैंपल को हासिल करने के लिए अस्पताल से संपर्क किया, परंतु कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश न होने के वजह से अस्पताल ने इसे जारी करने से मना कर दिया.

मृतक के फ्रीज स्पर्म को उसके माता-पिता को दिए जाएं , सरोगेसी पर दिल्ली HC का फैसला
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( Image Source:  Photo Credit- Delhi HC website )

दिल्ली उच्च न्यायालय का एक ऐतिहासिक फैसला सामने आया, जिसमें एक युवा कैंसर रोगी के माता-पिता को अपने बेटे के स्पर्म के क्रायोप्रिजर्वेशन (जमाव) के उपयोग का अधिकार दिया गया. यह मामला भारतीय न्यायिक प्रणाली में "मरणोपरांत प्रजनन" (पोस्टमॉर्टम रिप्रोडक्शन) से जुड़ा है. इस निर्णय ने न केवल कानूनी, बल्कि नैतिक और सामाजिक मुद्दों को भी उजागर किया है.

30 वर्षीय प्रीत इंदर सिंह को 22 जून, 2020 को नॉन-हॉजकिन लिंफोमा (कैंसर) का पता चला था. कीमोथेरेपी से पहले उन्होंने अपना सीमेन सैंपल क्रायोप्रिजर्वेशन के लिए दिया, क्योंकि कीमोथेरेपी से उनकी फर्टिलिटी प्रभावित हो सकती थी. दुर्भाग्यवश, 1 सितंबर 2020 को उनकी मृत्यु हो गई. इसके बाद, उनके माता-पिता ने उनके संरक्षित स्पर्म के सैंपल को हासिल करने के लिए अस्पताल से संपर्क किया, परंतु कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश न होने के वजह से अस्पताल ने इसे जारी करने से मना कर दिया.

अदालत का फैसला

माता-पिता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया, और न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह की बैंच ने हिंदू सक्सेशन ऐक्ट का हवाला देते हुए निर्णय दिया कि मृतक के माता-पिता उनके "श्रेणी-1 कानूनी उत्तराधिकारी" हैं और इस प्रकार उन्हें स्पर्म के सैंपल को जारी करने का अधिकार है. अदालत ने यह भी माना कि रिप्रोडक्टिव मटेरियल (जैसे सीमेन या अंडा) को "संपत्ति" माना जा सकता है, जो मृतक की संपत्ति का हिस्सा है.

इस फैसले में पोसथूमस रिप्रोडक्शन के लिए सहमति की आवश्यकता पर जोर दिया गया। प्रीत इंदर सिंह ने स्वयं अपने सीमेन के सैंपल के संरक्षण के लिए सहमति दी थी, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि उनका उद्देश्य भविष्य में संतान उत्पन्न करना था। इस सहमति के आधार पर अदालत ने यह फैसला सुनाया कि पोसथूमस रिप्रोडक्शन पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है.

विदेशी न्यायिक उदाहरण

अदालत ने इज़राइल और जर्मनी के उदाहरणों का हवाला दिया, जहां पोसथूमस रिप्रोडक्शन और पोस्टमॉर्टम स्पर्म पुनर्प्राप्ति (PMSR) की अनुमति दी गई है. यह भी दर्शाया गया कि कैसे अन्य देशों में इस तरह के मामलों से निपटा जाता है और किस प्रकार की कानूनी शर्तें लागू होती हैं.

अदालत ने यह भी स्वीकार किया कि भारतीय समाज में दादा-दादी द्वारा पोते-पोतियों का पालन-पोषण असामान्य नहीं है. इस संदर्भ में, पीठ ने माना कि प्रीत इंदर के माता-पिता अपने मृत बेटे की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उसके स्पर्म के उपयोग से उत्पन्न बच्चे की देखभाल करने में पूरी तरह से सक्षम हैं.

यह फैसला भारत में पोसथूमस रिप्रोडक्शन के मुद्दों पर नई बहस को जन्म दे सकता है. साथ ही, यह फैसला उन परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण साबित हो सकता है, जो इस तरह के मामलों में कानूनी दुविधाओं का सामना कर रहे हैं.

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