दिल्ली चुनाव त्रिकोणीय या फिर आप बनाम बीजेपी! कांग्रेस में शांति का किसे होगा फायदा?
Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव देश का सबसे हॉट टॉपिक बन चुका है. इस बार आप को कड़ी टक्कर मिल रही है. ऐसे में देखने ये होगा कि इस त्रिकोणीय लड़ाई में कौन सी पार्टी ठंड पड़ रही है और इसका फायदा किस पार्टी को सीधे तौर पर मिलेगा.

Delhi Assembly Election 2025: दिल्ली विधानसभा को लेकर राजधानी की सियासी गलियारों में गहमागहमी है. त्रिकोणीय लड़ाई माने जा रहे इस दिल्ली इलेक्शन की सूरत अब बदलती दिख रही है. स्थानीय कांग्रेस नेता सक्रिय हैं, लेकिन राष्ट्रीय हस्तियां गायब हैं. हाईकमान से लेकर दिग्गज नेताओं ने चुप्पी साध रखी है, जैसे कांग्रेस इस दौरा में है ही नहीं!
राहुल गांधी ने सिर्फ़ एक रैली को संबोधित किया और उसके बाद से कांग्रेस का प्रचार अभियान स्थानीय नेतृत्व पर ही छोड़ दिया गया है. इस बीच 23 जनवरी को राहुल गांधी की रैली को रद्द कर दिया गया था, जिसे लेकर कांग्रेस ने दावा किया है कि राहुल गांधी अस्वस्थ हैं, जबकि भाजपा ने आप-कांग्रेस गठजोड़ का आरोप लगाया है. ऐसे सवाल है कि क्या राहुल गांधी दिल्ली की रणभूमि छोड़ चुके हैं?
कांग्रेस खेमे में क्यों है सुस्त?
पिछले दो विधानसभा चुनाव में खाता भी नहीं खोल पाई कांग्रेस इस बार भी सुस्त नजर आ रही है. पार्टी ने शुरूआत में ताकत झोंकने की पूरी कोशिश की, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे पार्टी का अभियान शांत होता दिख रहा है. संदीप दीक्षित, देवेंद्र यादव, अनिल चौधरी, रोहित चौधरी जैसे कुछ नेता तो ताल ठोककर लड़ रहे हैं, बचे उम्मीदवारों में शांति दिख रही है और सक्रिय नेताओं को भी हाईकमान का सहारा नहीं मिल रहा. ऐसे में कई सवाल हैं कि क्या पार्टी सच में किसी की 'B' टीम बनकर मैदान में है या फिर सियासी मजबूरी में ऐसा करने पर मजबूर है.
कांग्रेस की शांति का किसे मिलेगा फायदा?
कांग्रेस की सुस्ती का किसे फायदा होगा, ये एक बड़ा सवाल बनकर उभर रहा है. चूंकि, दिल्ली में कांग्रेस के मुख्य वोटर्स अल्पसंख्यक और दलित हैं, जिन पर पिछले दो चुनावों से 'आप' का कब्जा रहा है. तस्वीरें कई बार इशारा करती है कि इसका एक बार फिर से फायदा केजरीवाल की पार्टी को हो सकती है. हालांकि इस बार दलित वोटर्स पर बीजेपी की भी नजर है, जिसके लिए वह कड़ी मशक्कत में लगी है.
आप 2020 में अपने वोट शेयर में 54% की गिरावट के बावजूद 45 से अधिक सीटों और 45% वोट शेयर के साथ फिर से चुनाव जीत जाती है. कांग्रेस, AAP से अपना खोया हुआ वोट शेयर वापस पा लेती है तो यह अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी को महत्वपूर्ण सीटों पर मदद करता है, जिससे 2013 जैसा परिणाम सामने आता है जिसमें किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता. हालांकि, इस परिणाम की उम्मीद काफी कम है.
2020 में तीनों में से बीजेपी ही एकमात्र पार्टी थी जिसने वोट शेयर में बढ़ोतरी दर्ज की. उनका लक्ष्य 2025 में इस उपलब्धि को दोहराना है. बीजेपी के पास सिर्फ अपने वोट प्रतिशत को बढ़ा कर सत्ता की रास्ता को साफ करना होगा, लेकिन कांग्रेस की चुप्पी कहीं न कहीं बीजेपी के लक्ष्य में बाधा बन रही है. कांग्रेस के पारंपरिक वोट का मालिक फिलहाल आप है, जिसे सेंध लगाने में अगर बीजेपी कामयाब होती है, तो शायद चुनाव के परिणाम की तस्वीर बदल सकती है.