बीजेपी के हुए कैलाश, LG से करीबी ने बनाया आप के गले की हड्डी; एक साल पहले शुरू हो गई थी पटकथा
दिल्ली सरकार में मंत्री रहे कैलाश गहलोत ने आम आदमी पार्टी से इस्तीफा देने के बाद बीजेपी ज्वाइन कर लिया है. उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी को छोड़ना आसान नहीं था. उन्होंने कहा कि मैंने कोई ईडी और सीबीआई के डर से आम आदमी पार्टी नहीं छोड़ी है.

दिल्ली सरकार में मंत्री रहे कैलाश गहलोत ने आम आदमी पार्टी से इस्तीफा देने के बाद बीजेपी ज्वाइन कर लिया है. उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी को छोड़ना आसान नहीं था. उन्होंने कहा कि मैंने कोई ईडी और सीबीआई के डर से आम आदमी पार्टी नहीं छोड़ी है.
कैलाश के इस्तीफे पर आम आदमी पार्टी ने कहा कि उनकी मर्जी है वो जहां भी जाएं. इसका साफ़ मतलब है कि आम आदमी पार्टी को भी गहलोत की जरूरत नहीं दिख रही थी. अब आम आदमी पार्टी में आतिशी को आगे बढ़ाने की वजह से अरविंद केजरीवाल और पार्टी के खिलाफ कई नेताओं में नाराजगी है.
माना जा रहा है कि इस नाराजगी की शुरुआत काफी पहले ही शुरू हो गई थी. कैलाश की जगह आतिशी को आगे बढ़ाना भी उनमें से एक है. इसके अलावा कैलाश की एलजी से नजदीकी भी आप को खटकने लगी थी. क्योंकि कैलाश के बिल को एलजी पास कर देते थे और दूसरे मंत्रियों के बिल लटक जाते थे. आइये जानते हैं कि आखिर कैसे हुई पाला बदलने की शुरुआत.
ख़राब रिश्ते की कब हुई शुरुआत?
बताया जाता है कि केजरीवाल के जेल जाने के बाद गहलोत का पार्टी से रिश्ता खराब होने लगा. फरवरी 2023 में मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के अपने कैबिनेट पदों से इस्तीफ़ा देने के बाद, वह दूसरे नंबर के नेता बन गए थे. उन्होंने दिल्ली कैबिनेट में कई विभागों का प्रबंधन किया और वित्त मंत्री के रूप में दिल्ली का बजट पेश किया. हालांकि, जून में कैबिनेट विस्तार हुआ और आतिशी को राजस्व, योजना और वित्त विभागों की अतिरिक्त जिम्मेदारी मिली, जो पहले गहलोत के अधिकार क्षेत्र में थे. कानून पोर्टफोलियो को भी उनके प्रभार से हटा दिया गया था. गहलोत इन चेंज से नाखुश थे.
आतिशी को मिला झंडा फहराने का मौका
कैलाश गहलोत की इस नाराजगी की शुरुआत काफी पहले ही हो गई थी. अरविंद केजरीवाल तब दिल्ली के मुख्यमंत्री हुआ करते थे और वह तिहाड़ जेल में बंद थे. उस समय 78वें स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराने के लिए एलजी ने कैलाश गहलोत को नियुक्त किया. इस निर्णय को आप ने औपचारिक रूप से स्वीकार तो कर लिया, लेकिन पार्टी सूत्रों ने संकेत दिया कि इस घटना से अविश्वास की भावना पैदा हुई है. तब केजरीवाल ने ध्वजारोहण की जिम्मेदारी के लिए मंत्री आतिशी को प्राथमिकता दी. गहलोत मंच पर उनके ठीक पीछे बैठे थे.
एलजी से करीबी बनी गले की हड्डी
दिल्ली सरकार और एलजी के बीच टकराव कोई नई बात नहीं है. पार्टी के अन्य पदाधिकारी का राज निवास के साथ रोजाना टकराव होता रहता था. वहीं गहलोत ने एलजी के साथ आधिकारिक कर्तव्यों का पालन करना जारी रखा. जैसे कि आधारशिला रखना, नई बसों का उद्घाटन करना और डीएमआरसी के कार्यक्रमों में भाग लेना. इसकी वजह से आप के वरिष्ठ पदाधिकारियों में बेचैनी पैदा हुई.
गहलोत खेमे ने एलजी के साथ उनके सौहार्दपूर्ण संबंधों का श्रेय उनके कामकाज के तरीके को दिया. उन्होंने कहा था कि राजनीतिक झगड़ों में समय बर्बाद करने के बजाय सौहार्दपूर्ण तरीके से काम करना चाहिए. गहलोत कैब एग्रीगेटर और प्रीमियम बस सेवा जैसी नीतियों को लागु करवाए, जबकि उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने अपनी परियोजनाओं के ठप होने की शिकायत की थी.
राम को छोड़ चले हनुमान
दो महीने पहले अरविंद केजरवाल जेल से आए और आतिशी ने सीएम पद की शपथ ली. उस समय गहलोत ने मंत्री पद की शपथ ली थी और खुद को केजरीवाल का हनुमान बताया था. उन्होंने कहा था कि 'अरविंद केजरीवाल का हनुमान' बनकर परिवहन और अन्य विभाग में उनके विजन और कामों को आगे बढ़ाऊंगा.
इस्तीफे से एक दिन पहले गहलोत ने महिलाओं द्वारा संचालित बस डिपो 'सखी' का उद्घाटन किया था. कार्यकाल के अंतिम दिन भी वह शांत रहे और अंत में इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर लिया.