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क्या है छत्तीसगढ़ की ‘आना कुड़मा’ परंपरा? जहां रोज होती है आत्माओं की पूजा, हर शुभ काम से पहले ली जाती है इजाजत

यहां आत्माएं केवल पूजनीय नहीं, बल्कि समाज का हिस्सा हैं. शादी, नई फसल, घर का निर्माण, या कोई भी शुभ कार्य हो सबसे पहले आत्माओं को आमंत्रित किया जाता है. विवाह से पहले वर-वधू को तब तक आशीर्वाद नहीं मिलता.

क्या है छत्तीसगढ़ की ‘आना कुड़मा’ परंपरा? जहां रोज होती है आत्माओं की पूजा, हर शुभ काम से पहले ली जाती है इजाजत
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( Image Source:  Create By Meta AI )
रूपाली राय
Edited By: रूपाली राय

Published on: 24 July 2025 12:51 PM

बचपन में सुनी गई भूत-प्रेतों की कहानियां अक्सर दिल को डर और रोमांच से भर देती थी. दादी-नानी की गोद में बैठकर, अंधेरी रातों में सुनी गई इन किस्सों ने शायद हमें यह यकीन भी दिला दिया था कि इस दुनिया में इंसानों के अलावा कुछ और भी है कुछ अदृश्य, रहस्यमयी, और कभी-कभी डरावना भी, पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बात करें तो ये महज कल्पनाएं हैं मानसिक भ्रम है. मगर भारत में बसा एक राज्य इस धारणा को न केवल नकारता है, बल्कि आत्माओं की उपस्थिति को एक पवित्र सत्य मानता है. हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ की खासतौर पर वहां के रहस्यमयी और घने जंगलों वाले इलाके अबूझमाड़ की, जहां आत्माएं सिर्फ स्वीकार की जाती हैं, बल्कि पूजनीय भी हैं.

अबूझमाड़ के आदिवासी समुदाय आत्माओं को नकारात्मक नहीं, बल्कि सकारात्मक शक्तियां मानते हैं. उनका यह दृढ़ विश्वास है कि ये आत्माएं कोई भटकती हुई छाया नहीं हैं, बल्कि उनके पूर्वजों की दिव्य उपस्थिति हैं, जो उनके बीच आज भी मौजूद हैं उन्हें रास्ता दिखाती हैं, मार्गदर्शन करती हैं और बुराइयों से बचाती हैं. इस अनोखी मान्यता के चलते यहां आत्माओं के लिए विशेष घर बनाए जाते हैं जिन्हें 'आना कुड़मा' कहा जाता है. इन ‘आना कुड़मा’ में न कोई डर है, न कोई तंत्र-मंत्र. यह आत्माओं का स्थायी वास है पवित्र, शांत और श्रद्धा से भरा हुआ. यहां हर दिन आत्माओं की पूजा होती है, जैसे वे परिवार के ही सदस्य हों। लेकिन फर्क बस इतना है कि वे इस दुनिया से जा चुके हैं, पर उनका आशीर्वाद आज भी जीवित है.

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पितृपक्ष नहीं, रोजाना श्रद्धा

भारत में जहां आमतौर पर पूर्वजों को याद करने के लिए साल में एक बार पितृपक्ष या श्राद्ध मनाया जाता है, वहीं अबूझमाड़ के गांवों में ऐसी कोई सीमा नहीं. यहां पूर्वजों की आत्माओं को रोजाना पूजा जाता है, उनके लिए भोजन रखा जाता है, और उनके साथ बातचीत की परंपरा निभाई जाती है. आदिवासी समाज मानता है कि उनके पूर्वज कभी गए ही नहीं, वे हमेशा उनके साथ हैं.

हर शुभ कार्य में शामिल होती हैं आत्माएं

यहां आत्माएं केवल पूजनीय नहीं, बल्कि समाज का हिस्सा हैं. शादी, नई फसल, घर का निर्माण, या कोई भी शुभ कार्य हो सबसे पहले आत्माओं को आमंत्रित किया जाता है. विवाह से पहले वर-वधू को तब तक आशीर्वाद नहीं मिलता, जब तक आत्माओं से विधिवत अनुमति न ली जाए. नई फसल के पहले अन्न का पहला भाग इन्हीं को अर्पित किया जाता है. ऐसा न करने पर माना जाता है कि गांव पर कोई संकट आ सकता है. 'आना कुड़मा' को लेकर एक विशेष परंपरा यह भी है कि इसमें केवल पुरुषों को प्रवेश की अनुमति होती है. महिलाएं या युवतियां अंदर नहीं जा सकती. हालांकि, विवाह जैसे अवसरों पर वे बाहर से आत्माओं को प्रणाम करती हैं और श्रद्धा प्रकट करती हैं. यह नियम समय की परंपरा का हिस्सा है और समुदाय में गहराई से व्याप्त है.

आत्माएं या अलौकिक सुरक्षा गार्ड

पूर्व अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष देवलाल दुग्गा कहते हैं कि इन आत्माओं को 'अलौकिक सुरक्षा गार्ड' की तरह देखा जाता है. उनके अनुसार, “आत्मा में ही परमात्मा का वास होता है. ये आत्माएं गांव की शांति और सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लिए रहती हैं. उनका मानना है कि यह विश्वास न केवल धार्मिक है, बल्कि सामाजिक अनुशासन और नैतिक मूल्यों का आधार भी है.

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