‘I Love You’ बोलना अपराध नहीं, हाईकोर्ट ने दी आरोपी को राहत, जानें क्या है पूरा मामला
अब आई लव यू बोलना अपराध नहीं है. इसके लिए आप पर केस नहीं हो सकता है, क्योंकि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट कोर्ट ने एक आरोपी को बरी कर दिया और कहा कि 'आइ लव यू' कह देना यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता, जब तक उसमें यौन मंशा स्पष्ट न हो.

धमतरी जिले के कुरूद थाना क्षेत्र में एक युवक रोज़ाना एक नाबालिग छात्रा को देखकर “आई लव यू” कहता था. छात्रा ने स्कूल से लौटते समय इस बात की शिकायत की कि वह उसे पीछा करता है और कई बार परेशान कर चुका है. पुलिस ने शिकायत के आधार पर आईपीसी की धारा 354D (पीछा करना), 509 (शब्दों या इशारों से लज्जा भंग), पाक्सो एक्ट की धारा 8 और एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)(वीए) के तहत युवक के खिलाफ मामला दर्ज कर दिया.
इस पर कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया और कहा कि 'आइ लव यू' कह देना यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता, जब तक उसमें यौन मंशा स्पष्ट न हो.
ट्रायल कोर्ट में सामने आई जांच की कमियां
मामला जब ट्रायल कोर्ट में आया, तो अभियोजन पक्ष की कई कमजोरियां सामने आईं. पीड़िता की उम्र साबित करने के लिए कोर्ट में कोई सही दस्तावेज पेश नहीं किया गया. जो जन्म प्रमाण पत्र दिया गया था, उसकी पुष्टि के लिए कोई गवाह भी नहीं था. साथ ही, स्कूल के रिकॉर्ड या पहचान से जुड़ा कोई कागज भी नहीं दिखाया गया. सबसे अहम बात यह थी कि अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया कि युवक ने 'आई लव यू' कहते वक्त कोई यौन मंशा रखी थी या कोई गलत बात कही थी. इसलिए, ट्रायल कोर्ट ने युवक को सभी आरोपों से बरी कर दिया.
मंशा के बिना यौन उत्पीड़न नहीं
राज्य सरकार ने ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन जस्टिस संजय एस. अग्रवाल की बेंच ने यह अपील खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि यौन उत्पीड़न तभी माना जाएगा जब साफ तौर पर यौन मंशा साबित हो. कोर्ट ने साफ किया कि "आई लव यू" कहना सिर्फ एक इमोशनल बात है. जब तक इसमें कोई गंदी भाषा, अश्लील संकेत या गलत व्यवहार न हो, इसे यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता. अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया कि युवक ने ऐसा कोई यौन उद्देश्य लेकर कहा. न तो पीड़िता ने और न ही उसकी दोस्ती ने कोई अश्लील बात बताई. इसलिए कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही मानते हुए युवक को बरी कर दिया.
क्या हर बात को अपराध मान लेना सही?
यह फैसला सोशल मीडिया और समाज में एक बड़ी बहस का कारण बना. कई लोग इसे “न्याय की नई परिभाषा” और “सोच में बदलाव” बता रहे हैं, वहीं कुछ आलोचक इसे महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता में कमी के तौर पर देख रहे हैं. लेकिन यह निर्णय हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हर एक शब्द या भाव को अपराध के दायरे में लाना सही है? कोर्ट ने साफ किया कि बिना स्पष्ट मंशा और मजबूत सबूत के दोषसिद्धि अन्याय होगी.