हिम्मत हो तो ऐसी! पुल टूटा तो क्या, गर्भवती को पीठ पर लादकर ले गई बहन, सड़क किनारे जन्मा बच्चा- Video Viral
छत्तीसगढ़ के जशपुर में एक गर्भवती आदिवासी महिला को पीठ पर लादकर 1.5 KM अस्पताल पहुंचाना पड़ा, क्योंकि पुल टूटा था और एम्बुलेंस नहीं पहुंच सकी. यह घटना अमृतकाल में स्वास्थ्य सेवाओं और आधारभूत ढांचे की गंभीर नाकामी को उजागर करती है.

21वीं सदी के इस विकास के युग में क्या यह स्वीकार्य है कि कोई अपनी जान हथेली पर लेकर अस्पताल पहुंचे? क्या हमारा विकास सचमुच हर गांव तक पहुंचा है, या यह कहानी उन अनदेखे हिस्सों की दर्दनाक हकीकत है?
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के एक दूरदराज़ आदिवासी गांव में एक गर्भवती महिला अपने बच्चे के जन्म की खुशी लेकर निकली. साथ थीं दो महिला साथी, जो उसकी मदद के लिए तैयार थीं. अस्पताल महज डेढ़ किलोमीटर दूर था. इतनी नज़दीक कि कोई सोच भी न सके कि रास्ता इतना खतरनाक होगा.
टूटा पुल, टूटी उम्मीदें
गांव से मुख्य सड़क तक पहुंचने वाला पुल महीनों से टूटा हुआ था. पक्की सड़क का कोई निशान नहीं था और मोबाइल नेटवर्क की अनुपस्थिति ने मदद का कोई जरिया भी छीन लिया था. तेज बहते पानी ने रास्ते को और भी खतरनाक बना दिया. क्या यही है 21वीं सदी का विकास, जहां एक छोटे से गांव में सुरक्षित रास्ता तक नहीं?
पीठ पर उठाई गर्भवती महिला
प्रसव पीड़ा तेजी से बढ़ रही थी. महिला तड़प रही थी, लेकिन कोई इंतजार नहीं कर सकता था. तब एक महिला ने तुरंत गर्भवती महिला को अपनी पीठ पर उठाया और तेज बहाव वाली नदी को पार कराया. हिम्मत और मानवता की यह कहानी खुद में एक चमत्कार थी.
बचपन सड़क के किनारे हुआ जन्म
अस्पताल से सिर्फ डेढ़ किलोमीटर दूर, किन्तु टूटा पुल और खराब रास्ते ने उस सफर को जानलेवा बना दिया. सड़क के किनारे ही, दो महिलाओं की मदद से महिला ने अपने बच्चे को जन्म दिया. एक नई ज़िंदगी, जो मुश्किलों और संघर्षों की गवाही बन गई.
सवाल जो अनसुने रह गए
क्या हम इस टूटी इंफ्रास्ट्रक्चर को सुधारेंगे, ताकि भविष्य में कोई और मां अपनी बच्ची को सड़क के किनारे जन्म न दे? इस घटना ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है कि असली विकास केवल आंकड़ों में नहीं, बल्कि हर इंसान की जिंदगी को सुरक्षित बनाने में है.