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गैंगरेप के दोषी किशोर को वयस्‍कों की जेल में रहना होगा; कोर्ट ने बरकरार रखा सजा

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें प्रमुख जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु शामिल हैं, 24 वर्षीय गैंगरेप के आरोपी की रिहाई के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कोंडागांव के पाक्सो कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है.

गैंगरेप के दोषी किशोर को वयस्‍कों की जेल में रहना होगा; कोर्ट ने बरकरार रखा सजा
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सागर द्विवेदी
Edited By: सागर द्विवेदी

Updated on: 31 Oct 2024 4:30 PM IST

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें प्रमुख जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु शामिल हैं, 24 वर्षीय गैंगरेप के आरोपी की रिहाई के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कोंडागांव के पाक्सो कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है. बेंच ने अपने निर्णय में कहा कि ऐसे मामलों में नरम रुख अपनाने से दोषी किशोरों के लिए संभावनाएं खुल सकती हैं, जो समाज के लिए बेहद हानिकारक हो सकता है और कानून-व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ सकता है.

दोषी को वयस्कों के लिए बनाई गई जेल में स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया था, क्योंकि उसकी आयु 21 वर्ष की सीमा पार कर चुकी है. सामूहिक दुष्कर्म के आरोपी ने सुधारात्मक प्रगति रिपोर्ट के आधार पर रिहाई की मांग करते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.पाक्सो कोर्ट ने 2019 में उसे आईपीसी की धारा 375(डी) और पोक्सो अधिनियम के तहत दोषी ठहराते हुए 20 साल की जेल की सजा और एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था. जुर्माना न चुकाने पर एक साल की अतिरिक्त सजा का भी आदेश दिया गया था. जब पाक्सो कोर्ट ने उसे किशोर आश्रय गृह से सेंट्रल जेल में स्थानांतरित किया, तब उसने सुधारात्मक प्रगति के आधार पर रिहाई के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की.

क्या है पूरा मामला

याचिका कर्ता को पुलिस ने 19 जून 2017 को सामूहिक दुष्कर्म के आरोप में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (डी) और पाक्सो एक्ट 4, 6 और 17 के अंतर्गत पांच वयस्क सह- आरोपियों के साथ गिरफ्तार किया गया था. वहीं याचिकाकर्ता की जन्म की बात करें तो 4 अगस्त 1999 है और इस प्रकार याचिका कर्ता अपराध की तिथि को 18 साल से कम आयु का था.

लिहाजा, उसके साथ किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 के प्रावधानों के तहत व्यवहार किया गया, लेकिन अपराध की तिथि को 16 वर्ष से अधिक आयु होने और जघन्य अपराध करने का आरोप होने के कारण 2015 के अधिनियम की धारा 15(1) के तहत प्रारंभिक मूल्यांकन किया गया और अगस्त सितंबर 2017 में किशोर न्याय बोर्ड नारायणपुर ने याचिकाकर्ता के मुकदमे को अधिनियम 2015 की धारा 18(3) के तहत पाक्सो न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया.

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