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EXPLAINER: शिल्पी जैन-गौतम सिंह के कातिल को कोई नहीं पकड़ सका, मगर सत्ता के भूखे लोग 'लाशों' की कहानी आज भी कर रहे कैश!

26 साल पुराने पटना के सबसे रहस्यमय केस शिल्पी जैन और गौतम सिंह हत्याकांड की सच्चाई आज भी फाइलों में दबी पड़ी है. 3 जुलाई 1999 की वह रात जब बिहार की राजधानी पटना में एमएलसी साधू यादव की गैराज से दो अर्धनग्न लाशें बरामद हुईं, उस दिन से लेकर आज तक यह केस रहस्य बना हुआ है. अब 26 साल बाद यह हत्याकांड फिर से सुर्खियों में है जब जनसुराज पार्टी के प्रशांत किशोर ने इस केस को फिर उछालते हुए मौजूदा उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर पुराने नाम “राकेश कुमार” के ज़रिए गंभीर सवाल उठाए हैं. बिहार की राजनीति में तूफान ला देने वाले इस कांड ने एक बार फिर सत्ता, अपराध और जांच एजेंसियों की मिलीभगत पर गहरे सवाल खड़े किए हैं.

EXPLAINER: शिल्पी जैन-गौतम सिंह के कातिल को कोई नहीं पकड़ सका, मगर सत्ता के भूखे लोग लाशों की कहानी आज भी कर रहे कैश!
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संजीव चौहान
By: संजीव चौहान

Updated on: 5 Oct 2025 12:25 PM IST

जबसे जनसुराज पार्टी वाले प्रशांत किशोर ने शिल्पी जैन और गौतम सिंह हत्याकांड का मरा हुआ सांप, बिहार के मौजूदा उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के गले में फेंका है. तभी से बिहार के राजनीतिक गलियारों में कोहराम मचा है. प्रशांत किशोर के इस गजब के 'तुक्के' ने तो भारतीय जनता पार्टी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हालत ही खराब कर डाली है. उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को तो जैसे मानो “काठ” ही मार गया हो. प्रशांत किशोर की इस गजब की गुगली ने तो सम्राट चौधरी की बोलती ही बंद कर दी है. आखिर क्या है बिहार का बदनाम शिल्पी जैन और गौतम सिंह हत्याकांड? जिसे 26 साल बाद भी बिहार की राजनीति के सिंहासन पर बैठने को लालायित नेता मौका देखते ही ‘भुनाने या कैश’ करने से बाज नहीं आते हैं. कौन थी शिल्पी और कौन थे उनके साथ संदिग्ध हालात में लालू यादव के साले और राबड़ी देवी के भाई साधू यादव की गैराज में कार में संदिग्ध हालातों मरे पड़े मिले शिल्पी जैन-गौतम सिंह? स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ने इस खास कड़ी में इन्हीं तमाम सवालों के जवाब का समावेश करने की ईमानदार कोशिश की है.

आज बेबाक बात करते हैं 26-27 साल पुराने बिहार की राजधानी पटना में हुए शिल्पी जैन और गौतम सिंह डबल मर्डर की. पाठकों के जेहन में सवाल कौंध सकता है कि आखिर तीन दशक पुराने (करीब 26 साल पहले के) डबल-मर्डर का जिक्र अब तीन दशक बाद क्यों? इतने साल बाद जिक्र इसलिए क्योंकि कालांतर के इसी लोमहर्षक दोहरे और आज तक अनसुलझे पड़े हत्याकांड के गड़े मुर्दे उखाड़ कर ही तो बिहार में सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने की ललक में व्याकुल, जनसुराज पार्टी वाले प्रशांत किशोर ने सूबे की सल्तनत के मौजूद डिप्टी सीएम यानी उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी उर्फ राकेश कुमार की नींद उड़ा दी है. और राज्य की मौजूदा हुकूमत के चूलें हिला डालीं हैं.

क्यों नहीं सुलझा केस?

आम जन की आम भाषा में समझने की कोशिश करते हैं कि इन दिनों बिहार की राजनीति में तूफान ला खड़ा करने वाले तीन दशक पुराने शिल्पी जैन और गौतम सिंह दोहरे हत्याकांड का चेहरा, आखिर तीस साल पहले कैसा था और आज क्यों उसी डबल मर्डर को लेकर बिहार के राजनीतिक गलियारों में कोहराम मचा हुआ है. कैसे आज 26 साल बाद भी इस 26 साल पुराने अनसुलझे दोहरे हत्याकांड का बिहार की राजनीति में अब बेशर्मी के साथ इस्तेमाल करके, मौकापरस्त वे नेता लाशों की राजनीतिक पर अपनी रोटियां सेंक रहे हैं, जो इस दोहरे हत्याकांड को 2025 में भी सुलझवा नहीं सके.

कौन थे शिल्पी जैन और गौतम सिंह?

पहले जान लेते हैं कि शिल्पी जैन और गौतम सिंह कौन थे जिनके मरने के बाद भी उनकी उस दर्दनाक मौत को आज 26 साल बाद भी बिहार की राजनीति के धुरंधर बेशर्म होकर अपने अपने हिसाब से 'कैश' करने पर आमादा हैं या फिर कहूं कि, 'गड़े-मुर्दे' उखाड़ कर लाशों के ऊपर बैठकर राजनीतिक करने में यह लोग जरा भी शर्म नहीं खा रहे हैं. शिल्पी जैन पटना के नामी कपड़ा व्यापारी उज्जवल कुमार जैन की होनहार बेटी थी. अपनी संदिग्ध मौत से एक साल पहले ही यानी सन् 1998 में शिल्पी जैन ने मिस पटना का सेहरा अपने सिर बंधवाया था. वह पटना वीमेंस कॉलेज की होनहार छात्रा रही थीं. पटना कॉलेज से पासआउट होने के बाद शिल्पी जैन ने कम्प्यूटर कोचिंग ज्वाइन कर लिया था. ताकि जब तक नौकरी का कहीं कोई स्थाई जुगाड़ न बने तो खाली समय का सदुपयोग करके, कम से कम कम्प्यूटर ज्ञान को ही हासिल कर लिया जाए.

राजद से जुड़े थे गौतम

अब से 26 साल पहले शिल्पी जैन के साथ ही संदिग्ध हालातों में कार के भीतर मरे पाए गए गौतम सिंह पटना में ही अकेले रहते थे. उनके पिता बीएन सिंह लंदन में तब डॉक्टर थे. गौतम सिंह को बिहार की राजनीति में तब नेता बनने की सनक सवार थी. वह उच्च शिक्षित थे. चूंकि उन्हें बिहार की राजनीति में सिक्का जमाने की हुड़क लगी थी सो वह डॉक्टर पिता के साथ लंदन नहीं गए. इसीलिए वह पटना में ही अकेले रहते थे. तब गौतम सिंह राष्ट्रीय जनता दल के युवा संगठन से भी जुड़े हुए थे. बिहार में तब मुख्यमंत्री थीं राबड़ी देवी और सूबे में सरकार थी जनता दल की. गौतम सिंह को उम्मीद थी कि तब के बिहार के दबंग एमएलसी और राबड़ी देवी के मुंहलगे भाई, लालू यादव के साले, तेजस्वी यादव तेज प्रताप यादव भारती और मीसा यादव के मामा साधू यादव, गौतम सिंह को नेता बनवा देंगे. तब तक लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में अपनी एक टांग जेल में और दूसरी टांग कोर्ट कचहरी में पूरी तरह से फंसा चुके थे.

गड़े मुर्दे उखाड़कर भुना रही पॉलिटिकल पार्टी

शिल्पी जैन और गौतम सिंह की दोस्ती बिहार के राजनीतिक गलियारों में तकरीबन सभी को चुभने लगी थी मगर, चूंकि मामला बेहद निजी था सो कोई मुंह पर उन दोनों के खुलकर कभी कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर सका. भले ही यह डबल मर्डर 26-27 साल बाद भी बिहार की उस जमाने की निकम्मी पुलिस से लेकर आज खुद को सबसे काबिल समझने की खुशफहमी पाले बैठी सीबीआई जैसी जांच एजेंसी तक न सुलझा सकी हो मगर, बिहार के नेता जब-तब चुनावी माहौल में मौका मिलने पर शिल्पी जैन गौतम सिंह हत्याकांड को या इस अनसुलझे डबल मर्डर के गड़े मुर्दे उखाड़कर, इसे भुनाने-कैश करने में जरा भी शर्म नहीं खाते हैं. बस बिहार के नेताओं के सामने मौका चुनाव का और लालच-उम्मीद सत्ता के सिंहासन पर जाकर बैठने की होनी चाहिए.

साधू यादव के गैराज से मिली थी लाश

शिल्पी जैन गौतम सिंह की लाशें जब बंद गैराज के भीतर मिलीं तो न केवल बिहार में अपितु पूरे भारत में कोहराम मच गया था. राजनीतिक गलियारों में उन दो लाशों की बरामदगी से कोहराम मचने की वजह थी, शिल्पी और गौतम की लाशों का तब के एमएलसी साधु यादव की गैराज के भीतर खड़ी कार से मिलना. मौके पर पुलिस पहुंची तो बाहर से उस गैराज का दरवाजा बंद था. सवाल यह पैदा हुआ कि जब लाशें अंदर खड़ी कार में पड़ी थीं तब फिर, उस स्थिति में गैराज का गेट बाहर से किसने और क्यों बंद किया होगा? लाशों की बरामदगी की यह बात है 3 जुलाई 1999 को रात करीब नौ बजे की. जगह थी पटना के गांधी मैदान के पास मौजूद विधायकों के कई क्वार्टर्स में से एक क्वार्टर की कार-गैराज. जिस क्वार्टर की गैराज से लाशें मिलीं वह साधू यादव के फ्लैट की थी, जबकि मौके पर साधू यादव पुलिस को नहीं मिले.

जल्द ही फाइलों में बंद हो गया था केस

उन दिनों मीडिया जमकर उछली खबरों के मुताबिक, तब पटना पुलिस ने गौतम सिंह के बदन पर सिर्फ पैंट मौजूद मिलने की कहानी सुनाई थी. शिल्पी के शरीर पर केवल टीशर्ट बताई थी. वह टीशर्ट भी गौतम सिंह की ही होना पता चली थी. ऐसे में सवाल यह पैदा हुआ कि अगर गौतम सिंह और शिल्पी ने कार के अंदर सुसाइड किया होगा तब फिर शिल्पी सिंह के खुद के बदन पर मौजूद कपड़े कहां और कैसे गायब हो गए. उसके बदन पर गौतम सिंह की टीशर्ट क्यों और किसने पहनाई. गजब तब हो गया जब शिल्पी और गौतम की लाशों को पुलिस मौके से हटाने की तैयारियों में जुटी थी. उसी वक्त मौके पर लालू यादव का साला और राबड़ी देवी का भाई और तब उस सनसनीखेज डबल मर्डर में संदिग्ध रहा साधू यादव अपने समर्थकों की भीड़ के साथ, घटनास्थल पर जा धमका. दोनो लाशें मिलने की भनक तब तक पुलिस ने जब किसी को लगने ही नहीं दी तब फिर ऐसे में सवाल पैदा होना लाजिमी था कि, साधू यादव कैसे-क्यों अपने समर्थकों की भीड़ के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचा. उसे किसने बताया कि उसकी गैराज के भीतर खड़ी कार में शिल्पी जैन और गौतम सिंह की अर्धनग्न अवस्था में लाशें पड़ी हैं. तब उस वक्त साधू यादव से इस खबर की मुखबरी करने का शक विरोधी राजनीतिज्ञों को सीधे सीधे पटना पुलिस के ही ऊपर गया था. चूंकि सूबे में साधू यादव की बहन राबड़ी देवी की हुकूमत का कुर्रा या कहिए चाबुक पटना पुलिस के ऊपर चला करता था. सो वह मुद्दा कुछ दिन तक हवा में उड़कर बाद में पांवों तले दब-कुचलकर गायब हो गया.

जल्दीबाजी में मिटा दिए सबूत

इसके बाद से पटना पुलिस ने शिल्पी जैन और गौतम सिंह लोमहर्षक हत्याकांड में जिस तरह से कानून के साथ खेलने का नंगा नाच शुरू किया. वह नंगा नाच बाद में तब बिना रीढ़ की जांच एजेंसी सीबीआई द्वारा की गई लीपापोती वाली पड़ताल तक जारी रहा. जिस कार में लाशें मिलीं पटना पुलिस ने सबसे पहले उस कार से फिंगर प्रिंट लेने के बजाए, उसे अपने ही एक पुलिसिया-ड्राइवर के हाथों गांधी मैदान थाने भिजवा दिया. जिससे कार के अंदर-बाहर मौजूद असली फिंगर प्रिंट गायब हो या बदल गए. हड़बड़ाए और शातिर-दिमाग तब के पटना पुलिस अफसरों ने रात के वक्त ही शिल्पी जैन और गौतम सिंह की लाशों का पोस्टमॉर्टम करवा डाला गया. इतना ही नहीं पुलिस ने रात में ही दोनो लाशों का अंतिम-संस्कार भी करवा डाला. उस वक्त बिहार की सत्ता पर काबिजों की मक्कारी और बिचारी सहमी हुई तब की सत्ता की चाकरी करने वाली पटना पुलिस के इस खतरनाक खेल का नतीजा यह हुआ कि, लंदन से पटना पहुंचे गौतम के पिता को बेटे की लाश तक देखने को नसीब न हो सकी.

बेदाग बचाने के लिए लगा दिए थे सभी तंत्र

पटना पुलिस किस तरह से अपने चाबुक से कानून को खुल्लम-खुल्ला हांक और नचा रही थी इसका एक नमूना तब और सामने आया जब पुलिस ने फॉरेंसिक और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट्स आने से पहले ही, मामले को संदिग्ध दोहरा हत्याकांड बताने के बजाए “आत्महत्या” करार दे डाला. तब, पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए और बेहद हड़बड़ाए हुए से दिखाई दे रहे पटना के एसपी सिटी (तत्कालीन) मनविंदर सिंह भाटिया ने राग अलापा था कि. “शिल्पी जैन और गौतम सिंह की मौत कार्बन मोनॉक्साइड में दम घुटने से उस वक्त हुई जब वे दोनो गैराज के भीतर खड़ी बंद कार में यौन संबंध बना रहे थे.” तब उस एसपी सिटी पर बिहार के विपक्षी राजनीतिक दलों ने खुलेआम आरोप जड़ा था कि वह (तत्कालीन एसपी सिटी पटना मनविंदर सिंह भाटिया), उस समय सूबे की मुख्यमंत्री रही राबड़ी देवी के और मामले में संदिग्ध एमएलसी साधू यादव को किसी भी कीमत पर साम-दाम-दंड-भेद से “बेदाग” बचाने के लिए सरकार की “चाकरी” कर रहा है. हालांकि तब विपक्ष की उस चीख-पुकार का कोई असर पटना पुलिस पर न होना था न ही हुआ. उस वक्त की खबरों से यह भी अपुष्ट रूप से निकल कर सामने आया था कि पटना पुलिस खुद से कुछ नहीं कर रही थी. वह तो वही कर रही थी जो उसे सत्ता के सिंहासन पर काबिज सत्ताधारी पार्टी के मक्कार लोग बता-समझा रहे थे. और फिर जो साधू यादव शिल्पी जैन गौतम सिंह की मौत में “संदिग्ध” तो उन्हीं साधू यादव की सगी बहन राबड़ी देवी ही तो उन दिनों सूबे की चीफ मिनिस्टर थीं. ऐसे में भला बिहार या पटना पुलिस की क्या औकात थी जो वह शिल्पी जैन गौतम सिंह हत्याकांड का सच बयान करके साबित बच पाती.

साफ़ बच गए साधू यादव

इस तरह साधू यादव तब उस सनसनीखेज डबल मर्डर में बिहार सहित देश भर में कोहराम मचने के बाद भी ‘साफ’ बच गए या बचा लिए गए, यह पटना पुलिस और सीबीआई बेहतर जानती है. हां, इतना जरूर है कि साधू यादव को संदेह के आधार पर जब-जब सीबीआई ने डीएनए जांच के लिए उनके नमूने मांगे तब तब किसी न किसी बहाने से साधू यादव सैंपल देने के कन्नी काट गए. उस हद तक कन्नी काटते रहे कि आज 26 साल बाद भी बिहार पुलिस से लेकर सीबीआई तक भी, साधू यादव के सैंपल डीएनए जांच के लिए ले पाने की कुव्वत नहीं कर सकी है. इस बारे में स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ने बात की सीबीआई के रिटायर्ड संयुक्त निदेशक और अपने जमाने में गजब के सीबीआई पड़ताली-अफसर रहे शांतनु सेन से. उन्होंने कहा, “सीबीआई को अगर शक था कि साधू यादव संदिग्ध है और उसका सैंपल लेना जरूरी है. मगर वह सैंपल दे नहीं रहा है. तो ऐसे में सीबीआई साधू यादव के ऊपर कानूनन दवाब भले न बना सकती थी. सीबीआई कोर्ट में एप्लीकेशन देती तो कोर्ट सीबीआई की बात को गंभीरता से अमल करके साधू यादव के सैंपल डीएनए टेस्ट के लिए लेने का आदेश पारित कर सकती थी. और तब साधू यादव को डीएनए के लिए ब्लड सैंपल कानूनन देना पड़ता. चूंकि उस मामले में सीबीआई ने कोर्ट में गंभीरतापूर्वक संदिग्ध का ब्लड सैंपल लेने की अनुमति के बावत कोर्ट में दरखास ही नहीं दी. तब फिर कोर्ट सीबीआई से खुद क्यों कहेगा कि आप हमें आवेदन दीजिए हम आपको संदिग्ध का ब्लड सैंपल लेने का आदेश जारी कर देंगे. अगर यह सही है कि सीबीआई ने साधू यादव के ब्लड सैंपल के लिए कोर्ट में एप्लीकेशन नहीं दी थी, तब ऐसे में तो सीबीआई टीम के जांच अधिकारी के ही खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया जाना चाहिए था.”

पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने खोल दी पोल

अब आइए एक नजर डालते हैं कि कैसे शिल्पी जैन और गौतम सिंह हत्याकांड की तफ्तीश पटना पुलिस और सीबीआई सबूतों की कमी का रोना रोकर मिट्टी में मिलाती रही. नतीजा यह रहा कि शिल्पी जैन और गौतम सिंह की उस संदिग्ध मौत का सच आज 26 साल बाद भी कोर्ट, कचहरी, थाने चौकी और सीबीआई की धूल फांकती फाइलों में बंद पड़ा सिसक रहा है. हां, तत्कालीन एसपी सिटी पटना मनविंदर सिंह भाटिया दोनों की मौत की जो वजह फॉरेंसिक जांच-रिपोर्ट आने से पहले ही कार्बन मोनॉक्साइड गैस से दम घुटने के चलते होना बता रहे थे, उनकी उस अंधी-गूंगी-बहरी पुलिसिया दलील की धज्जियां, पटना मेडिकल कॉलेज एंड हास्पिटल की 25 जुलाई 1999 को आई रिपोर्ट ने हवा में उड़ा दी. फॉरेंसिक साइंस की रिपोर्ट में मौत का कारण कार्बन मोनॉक्साइड गैस की जगह दोनों के शरीर में “एल्युमीनियम फॉस्फाइड” यानी सल्फास की मौजूदगी बताया गया. मतलब पटना पुलिस के तत्कालीन एसपी सिटी मनविंदर सिंह भाटिया के “बेसिर पैर” तर्क को फॉरेंसिक साइंस ने सरे-बाजार मय सबूत “नंगा” कर दिया.

प्रशांत किशोर ने निकाल दिया बोतल का जिन्न

आज 26 साल बाद जिस 26 साल पुराने शिल्पी जैन हत्याकांड का मरा हुआ सांप बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी उर्फ राकेश कुमार के गले में फेंक कर, जनसुराज पार्टी के प्रशांत किशोर तालियां बजाकर जिस तरह से मौज ले रहे हैं. दरअसल उस कांड के दौरान मुकदमे में एक राकेश कुमार का भी नाम आया था. अब प्रशांत किशोर का दावा है कि आज के इन्हीं सम्राट चौधरी का नाम शिल्पी जैन हत्याकांड के वक्त राकेश कुमार था. अब इस सवाल का जवाब तो सम्राट चौधरी को ही देना है कि आज के सम्राट चौधरी क्या वही राकेश कुमार हैं जिनका नाम शिल्पी जैन गौतम सिंह हत्याकांड में खूब उछला था. तब के राकेश कुमार, गौतम सिंह के उन पांच दोस्तों में से एक थे जिनका सीबीआई ने ब्लड सैंपल मनीष, पंकज, एसपी सिंह व अशोक यादव के साथ लेकर जांच के लिए लेकर प्रयोगशाला भेजा था.

यह अलग बात है कि वे ब्लड सैंपल डीएनए जांच में संदिग्धों से मैच ही नहीं हुए. उसी दौरान सीबीआई ने कई बार साधू यादव का भी ब्लड सैंपल मांगा था मगर उसने आज तक सैंपल नहीं दिया. इस तर्क का सहारा लेकर कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20(3) अपराधीकरण के खिलाफ अधिकार की गारंटी देता है. यानी आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए कोई भी भारतीय जांच एजेंसी मजबूर नहीं कर सकती है. और इस तरह तब इस लोमहर्षक मामले में संदिग्ध रहे साधू यादव सैंपल देने से खुद को साफ बचा ले जाने में कामयाब रहे. इस मामले में अगर सीबीआई कोर्ट का दरवाजा खटखटाती तो संभव था कि कोर्ट साधू यादव का ब्लड सैंपल लेने का आदेश दे देती मगर सीबीआई ने तो मुकदमे में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने वाली तारीख तक कभी भी साधू यादव का ब्लड सैंपल लेने की विशेष कानूनन अनुमति के लिए कोर्ट में आवेदन दाखिल ही नहीं किया. इस दोहरे संदिग्ध मौत कांड की तफ्तीश में जांच एजेंसियों को शिल्पी के अंडरगारमेंट्स से दो सेमिनल स्ट्रेन मिले थे. पहला तो गौतम का निकला दूसरा किसका था. यह आज तक नहीं खुल सका और मामले की कथित रूप से ही सही मगर लीपापोती में जुटी रही देश की सबसे काबिल समझी जाने वाली जांच एजेंसी, सीबीआई ने भी सन् 2004 में कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करके अपनी जान छुड़ा ली. लेकिन काबिल सीबीआई की “बेदम क्लोजर रिपोर्ट” शिल्पी जैन और गौतम सिंह जैसे हाई प्रोफाइल संदिग्ध दोहरी मौत के मामले में कई सवाल फाइलों में दफन कर गई....

मसलन.....

  • कोई लड़की या लड़का नंगे होकर आत्महत्या क्यों करेंगे
  • गैराज के भीतर खड़ी जिस कार में शिल्पी और गौतम की लाश मिली, उसका गैराज का दरवाजा मरने से पहले किसी तीसरे शख्स ने बाहर से बंद नहीं किया, तब फिर कैसे संभव है कि शिल्पी और गौतम बाहर से गैराज का खुद ही दरवाजा बंद करके अंदर कार में बंद होकर खुद ही जहर खाकर मर भी खुद ही गए
  • वो शख्स आज तक गायब क्यों है जिसने पुलिस को बताया कि साधू यादव की गैराज में कार में दो लाशें पड़ी हैं
  • कार को क्रेन से टो करवा कर थाने ले जाने के बजाए गांधी नगर थाना पुलिस का सिपाही खुद क्यों चलाकर ले गया. जिससे फिंगर प्रिंट साफ हो चुके थे.
  • लंदन से गौतम के पिता के पटना पहुंचने से पहले ही रात में ही पोस्टमॉर्टम करवा कर शवों का दाह संस्कार करने की पटना पुलिस को क्यों और क्या जल्दी थी?
  • साधू यादव ने जब ब्लड सैंपल देने से मना किया तब सीबीआई ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाने में क्यों अपनी तौहीन समझी?
  • अगर शिल्पी जैन कांड में हाईप्रोफाइल हस्तियां शामिल नहीं थीं तब फिर, उनके भाई ने जब पटना हाईकोर्ट में सीबीआई जांच के खिलाफ जैसे ही रिट डाली, क्यों 5 जनवरी 2005 को उसका अपहरण कर लिया गया और क्यों उसे 5 दिन बाद ही छोड़ दिया गया...? क्यों किसकी दहशत से उसने उस रिट को आगे फालो नहीं किया?

शिल्पी जैन और गौतम सिंह की संदिग्ध मौत की तहतक में पहुंचने की कोशिश की जाए तो पता चलता है कि, घटना वाले दिन शिल्पी रोज की तरह रिक्शे से पटना में ही स्थित कंप्यूटर कोचिंग सेंटर जा रही थी. रास्ते में राकेश नाम का गौतम सिंह का एक दोस्त उसे मिला, जो कार में शिल्पी जैन को बैठाकर यह कहकर साथ ले गया कि वह उसे कोचिंग सेंटर पर छोड़ देगा....क्योंकि गौतम सिंह के साथ शिल्पी उस दोस्त से पहले मिल चुकी थी इसलिए उसके ऊपर शक किए बिना वह उसकी कार में बैठकर चली गई...

शिल्पी जैन के साथ क्या हुआ था?

उस दोस्त ने कार जब शिल्पी जैन के कंप्यूटर सेंटर की ओर ले जाने के बजाए फुलवारीशरीफ स्थित वाल्मी गेस्ट हाउस पर ले जाकर खड़ी की तो शिल्पी ने उसका विरोध किया मगर वह अकेली थी और तब तक हालातों के हाथों बेबस हो चुकी थी. उसका अपहरण करके अपनी कार से गेस्ट हाउस ले जा रहे राकेश कुमार ने बताया था कि उसका दोस्त गौतम सिंह भी गेस्ट हाउस में ही है. उस जमाने में वह गेस्ट हाउस सूनसान इलाके में था. वहां अमूमन तब बिगड़े हुए लोग ही कुकर्म करने के लिए ज्यादातर आया-जाया करते थे. उस गेस्ट हाउस के अंदर शिल्पी जैन के साथ क्या हुआ. पुष्ट रूप से 26 साल बाद भी किसी ने किसी को नहीं बताया. हां, जब गौतम सिंह को पता चला कि उसकी गर्लफ्रेंड शिल्पी जैन के साथ गेस्ट हाउस में उसके पहुंचने से पहले ही बहुत बुरा हो चुका है तो वह आपा खो बैठा. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो शिल्पी के साथ, उसके दोस्त गौतम के सामने भी काफी कुछ भयानक हुआ था मगर गिद्धों से घिरे शिल्पी जैन और गौतम सिंह दोनो ही बेबस, अकेले और लाचार थे वहां. वे दोनो रो-तफड़ तो रहे थे मगर उनके आंसू पोंछने वाला और उनकी चीखें सुनने वाला उस गेस्ट हाउस में कोई नहीं था.

कुल जमा बेशक गौतम सिंह और शिल्पी जैन आज दुनिया में जिंदा न हों मगर उनकी संदिग्ध मौत पर पटना पुलिस और सीबीआई की खतरनाक खामोशी के पीछे तमाम सवाल तो आज 26 साल बाद भी चीख-चिल्ला तो रहे ही हैं न. शायद इसीलिए अब जनसुराज पार्टी वाले प्रशांत किशोर ने भी सोचा हो कि चलो चुनाव की बहती गंगा में अगर गड़े मुर्दे उखाड़ कर राजनीति के सिंहासन तक पहुंने की मंशा में कुछ बड़ा कर डाला जाए तो इसमें बुराई ही क्या है. जब देश की कोई एजेंसी, नेता मंत्री-सरकारें, शिल्पी जैन और गौतम सिंह के कातिलों का कुछ नहीं बिगाड़ सके, तो फिर मेरा यानी प्रशांत किशोर का कोई क्या बिगाड़ लेगा.

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