नहीं हम में कोई अनबन नहीं, बस इतना है कि अब वो मन नहीं! धुर्रा उड़ाने के लिए बिहारियों को सलाम नमस्ते
बिहार चुनाव 2025 में जनता ने ‘जंगलराज’ की यादों और असुरक्षा भाव को फिर निर्णायक रूप से खारिज कर दिया. तेजस्वी यादव की कोशिशें असर नहीं छोड़ सकीं, जबकि नीतीश-मोदी की जोड़ी ने विकास, सुरक्षा और स्थिरता के भरोसे पर भारी जनादेश पाया. 14 नवंबर को फिर से नीतीश कुमार बिहार के बिग बॉस बन गए. दूध का जला छाछ भी फूंक फूंककर पीता है. जनता जनार्दन भी शायद इसी अंदाज में नज़र आई. इस बार न तो तेजस्वी का तेज़ काम आया और न ही पीके का प्रताप.
आंखों में नमी थी और आवाज में गुस्सा. नमी बतला रही थी अपनों से दूरी और गुस्सा जतला रहा था जंगलराज के खिलाफ आक्रोश. कोई भी अपना घर-गांव नहीं छोड़ना चाहता. पर छोड़ने को मजबूर हुए. जाति से ब्राह्मण हैं पर दूसरों के यहां चूल्हा चौका करके जिंदगी काट रहे हैं. वहां बिहार में अपनी जमीन-जायदाद छोड़कर किराए के एक कमरे में किसी तरह जीवन जिया जा रहा है. लालू का बेटवा तेजस्वी अपनी छाती फाड़कर भी कह दे न तो तब भी यकीन न होगा कि उनकी सरकार आने के बाद अच्छे दिन आएंगे.
शाम 6 बजे के बाद सन्नाटा. बाहर निकलने के लिए जब 100 बार सोचना पड़े, पेट भरने के लिए एक दूसरे को मारना पड़े तब अपना घर छोड़ना ही पड़ता है. यह धब्बा सिर्फ गीता के मन में नहीं है, जो सुकून और शौकीन जिंदगी की चाह में वर्षों पहले दिल्ली एनसीआर में डेरा जमा चुकी है. बल्कि उन लाखों लोगों के दिलों दिमाग में अब भी जमा है, जो 10वीं बार नीतीश कुमार (अगर सब ठीक रहा तो) को बिहार का मुख्यमंत्री बनता देख रहे हैं. जंगलराज का मुद्दा शायद जीवनपर्यंत ही उठता रहे. ऐसा एक इंटरव्यू में देश के गृहमंत्री अमित शाह भी कह ही चुके हैं.
14 नवंबर को फिर से नीतीश कुमार बिहार के बिग बॉस बन गए. दूध का जला छाछ भी फूंक फूंककर पीता है. जनता जनार्दन भी शायद इसी अंदाज में नज़र आई. इस बार न तो तेजस्वी का तेज़ काम आया और न ही पीके का प्रताप. एक की उम्मीदें हिलोरें मार रही थी तो दूसरे की औरों को छोटा दिखाने की फितरत. एक किसी के साये से निकलने की फ़िराक़ में था तो दूसरा सोशल में ही शामियाना तानने में जुटा था. एक पास्ट की कायली में धंसा जा रहा था तो दूसरा ओवर कॉन्फ़िडेंस में. और तीसरे का क्या ही कहना. वो हमेशा और ही दुनिया में रहते हुए मुंगेरीलाल के सपने ही देखते रहते हैं.
बीस साल बाद नीतीश कुमार फिर इक्कीस बनकर ही 2025 में सामने आएं. कोई लाख कहे पर कहानी में मजा तो आता है पर यदि वो सच्ची हो तो डर भी लगता है. बार-बार सुनाने में यादें ताजा हो उठती हैं. रोंगटे खड़े हो जाते हैं. जिसने वो जंगलराज देखा है, तो वो बस यही कहता है कि भरोसा अब ना हो पाएगा. जिनके राज में यदि IAS और संभ्रांत लोगों के परिजन भी सेफ नहीं हैं तो बाक़ी का क्या ही कहना? बाप नौ नंबरी तो बेटा दस नंबरी. अब चाहे कोई उन्हें दस हजारी कहे या राजनीति की हल्दी. पीएम मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी के स्ट्राइक रेट से विपक्षियों को अब खोजे जमीन नहीं मिल रही. एक की जोड़ी ने गर्दा उड़ा दिया तो दूसरे ने ख़ुद को गर्त में पहुंचा दिया.
आपको क्या लगता है आज के युवा को कट्टा चाहिए? कुशासन चाहिए? या फिर करप्शन? नहीं ना- सुकून चाहिए. समृद्धि चाहिए. शोहरत चाहिए…बदनामी वाली नहीं नामवाली. उसके पास सामर्थ्य है, ये सब हासिल करने का. स्किल है सम्मोहित करने वाली. तभी तो महागठबंधन के MY (मुस्लिम, यादव) समीकरण की मोदी और नीतीश की जुगलबंदी ने धज्जियां उड़ा दीं. M को बदलकर महिला कर दिया और Y को युवा. पहले फेज की वोटिंग के बाद शायद थोड़ा समझ में आ गया था कि जो भी ज़मीन बची है, वो भी अब खिसकने वाली है. तभी तो दूसरे के पहले हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेज ग़ायब था. चेहरा धुआं धुआं था. और आरोपों की झड़ी बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी.
एनडीए की झोली में सब था. रोटी, बिजली और पैसा. साथ में रकम कमाने का ऑप्शन भी. पर महागठबंधन कॉपी कैट वाली भूमिका से बाहर ही नहीं निकल पा रहा था. नौकरी का ऐसा जुमला फेंका कि बड़े-बड़े जुमलेबाज़ फेल साबित हो गए. जनता को लगा कि कहीं गुड़ दिखाकर ईंटा तो नहीं मारा जा रहा है. लालटेन लेकर भरोसा खोजने निकले तो भी मुट्ठी में रेत की माफिक वो खिसकता ही जा रहा था. नया-नया होता तो शायद यकीन हो जाता पर जुमले तो अब बुढ़ा रहे हैं. एक समय था जब वो जवान थे. उनकी तरफ़ देखकर सबका मन बहकता था. पर अब वक्त बीत चुका है. फिसलने और फुसलाने का दौर गया. अब पहले दो फिर लो वाला मोड आ गया है.
तभी तो बिहार की जनता ने इस बार साफा पहन धुर्रा उड़ा दिया और मंगल नसीम की मशहूर ग़ज़ल को गुनगुनाते हुए वोट डाल दिया कि…
नहीं हम में कोई अनबन नहीं है
बस इतना है कि अब वो मन नहीं है
मैं अपने आप को सुलझा रहा हूं





