वोटर लिस्ट से उड़ाए गए 65 लाख नाम! SIR रिपोर्ट में जिन 10 सीटों से सबसे ज्यादा नाम कटे, 2020 में वहां किसकी थी सत्ता?
बिहार में चुनाव आयोग की SIR रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं. सबसे ज्यादा कटौती गोपालगंज, किशनगंज, मधुबनी और पटना जैसे जिलों में हुई है. आयोग का दावा है कि मृतक, स्थानांतरित और डुप्लीकेट नाम हटाए गए हैं. विपक्ष ने प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं. 1 सितंबर तक आपत्तियाँ दर्ज की जा सकती हैं.
बिहार में चुनाव आयोग द्वारा जारी विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) रिपोर्ट ने राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मचा दिया है. शुक्रवार को सामने आई ड्राफ्ट मतदाता सूची के मुताबिक, राज्यभर में करीब 65 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं. यह संख्या अपने आप में चौंकाने वाली है और यह किसी साधारण अद्यतन प्रक्रिया से कहीं ज्यादा गंभीर संकेत देती है. आयोग का तर्क है कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची को ‘शुद्ध’ करने के लिए की गई है, लेकिन विपक्ष इसे संभावित 'राजनीतिक गणित' से जोड़कर देख रहा है.
इस प्रक्रिया से गोपालगंज, किशनगंज, मोतिहारी, कुचायकोट जैसे विधानसभा क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. खास बात यह है कि गोपालगंज में अकेले 310,363, पटना में 3,95,500, मधुबनी में 3,52,545 और पूर्वी चंपारण में 3,16,793 नाम हटाए गए हैं. इन जिलों में कई ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां हजारों की संख्या में मतदाता सूची से नाम हटा दिए गए हैं, जिससे उन क्षेत्रों के राजनीतिक समीकरण पर सीधा प्रभाव पड़ने की संभावना है.
आख़िर क्यों हटे इतने नाम?
चुनाव आयोग के मुताबिक, 22 लाख नाम मृत व्यक्तियों के थे, 36 लाख लोग स्थायी रूप से दूसरे राज्यों में जा चुके हैं, और 7 लाख नाम दोहराव (डुप्लीकेट एंट्री) के कारण हटाए गए. आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि 1 सितंबर 2025 तक कोई भी नागरिक नाम हटने पर आपत्ति दर्ज करा सकता है या नया नाम जुड़वाने के लिए आवेदन कर सकता है. हालांकि, इतनी भारी संख्या में नामों की कटौती पर उठ रहे सवाल यह इशारा करते हैं कि प्रक्रिया में पारदर्शिता और सार्वजनिक सहभागिता की कमी रही है.
10 सीटों पर किसे मिली थी जीत?
SIR रिपोर्ट के आंकड़ों पर गौर करें तो 2020 विधानसभा चुनावों में जिन 10 सीटों पर सबसे ज्यादा नाम हटाए गए हैं, उनमें से 7 सीटें सत्तारूढ़ दल और 3 सीटें महागठबंधन के पास थीं. यह सटीक मेल वोट बैंक की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. अगर इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में विशेष वर्ग या समुदाय के मतदाताओं के नाम कटे हैं, तो इसका सीधा असर 2025 विधानसभा और 2029 लोकसभा चुनाव के नतीजों पर पड़ सकता है. यह परिस्थिति दोनों पक्षों के लिए चिंता का विषय बन चुकी है.
प्रतिशत के लिहाज़ से कहां हुआ सबसे अधिक असर?
नामों की संख्या के अलावा, अगर प्रतिशत के हिसाब से देखा जाए तो सबसे अधिक असर गोपालगंज (13.9%), किशनगंज (10.5%), पूर्णिया (9.7%), मधुबनी (8.7%) और भागलपुर (7.8%) में पड़ा है. यह क्षेत्र बिहार की राजनीति में सामाजिक और जातीय संतुलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील माने जाते हैं. इन इलाकों में इतनी बड़ी संख्या में नाम कटना केवल प्रशासनिक गलती नहीं माना जा सकता, बल्कि इससे जुड़े सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों का गहराई से विश्लेषण ज़रूरी हो गया है.
लोकतंत्र में भरोसा बनाम तकनीकी सुधार की जंग
बेशक चुनाव आयोग का लक्ष्य मतदाता सूची को त्रुटिरहित बनाना है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इतने व्यापक स्तर पर नामों की कटौती मतदाताओं के भरोसे को ठेस पहुंचाएगी? क्या यह कदम राजनीतिक प्रभाव से रहित है? साथ ही यह भी जरूरी है कि नाम जोड़ने और आपत्ति दर्ज करने की प्रक्रिया जनसामान्य के लिए सुलभ, पारदर्शी और निष्पक्ष हो. चुनावों की निष्पक्षता और लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि मतदाता न केवल सूची में हों, बल्कि उन्हें सुना भी जाए.





