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सब्जी बेचते-बेचते लिख डाली 18 किताबें, पढ़िए असम के लक्षीराम दूवरा दास की मोटिवेशनल स्टोरी

Assam News: असम के लक्षीराम दूवरा दास 20 सालों से सब्जी बेचने का काम कर रहे हैं. उन्होंने सब्जी बेचते-बेचते 18 किताबें लिख डाली, जिसके लिए उन्हें असम सरकारी की ओर से सम्मानित किया गया. जब वह बीए फाइनल ईयर में थे तब उनके पिता का निधन हो गया. और घर की पूरी जिम्मेदारी उनके कंधे पर आ गई. इसलिए उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी.

सब्जी बेचते-बेचते लिख डाली 18 किताबें, पढ़िए असम के लक्षीराम दूवरा दास की मोटिवेशनल स्टोरी
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निशा श्रीवास्तव
Edited By: निशा श्रीवास्तव

Updated on: 24 March 2025 12:07 PM IST

Assam News: कहते हैं शिक्षा किसी इंसाफ के सफल होने की सबसे बड़ी ताकत होती है. व्यक्ति का ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता परिस्थितियां चाहें जैसी भी हो अपनी मेहनत और लगन से इंसान कुछ भी हासिल कर सकता है. असम के लक्षीराम दूवरा दास ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है. उन्होंने सब्जी बेचते-बेचते 18 किताबें लिख डाली.

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, लक्षीराम दूवरा दास ने मणिकांचन संयोग, श्रीमद्भागवत शब्दार्थ, श्रीकृष्ण गीता शब्दार्थ असमिया में लिखी है. इसके अलावा उन्होंने ऐसी अन्य 18 किताबें भी लिखी हैं. खास बात यह है कि इन किताबों को लिखने के लिए दास ने कोई गहन चिंतन करके और अलग से समय नहीं निकाला बल्कि अपने काम को करते हुए इन्हें लिखा है. आज हम आपको दास की सफलता की कहानी के बारे में बताएंगे.

सरकार ने किया सम्मानित

लक्षीराम दूवरा दास को असम साहित्य सभा ने पुरस्कार से सम्मानित भी किया है. सरकार ने असम भाषा गौरव योजना में सम्मानित किया. साथ ही कोच राजबंशी छात्र संगठन ने भी सम्मानित किया है.

संघर्षों से भरी रहा दास का जीवन

लक्षीराम दूवरा दास एक सब्जी बेचने का काम करते हैं. फुटपाथ पर सब्जी बेचते हुए ही उन्होंने किताबें लिखी हैं. वह देश के सबसे बड़े नदी द्वीप माजुली के कैवर्ते गांव के रहने वाले हैं. वह पिछले 20 साल से सब्जी बेचने का काम कर रहे हैं. जब वह बीए फाइनल ईयर में थे तब उनके पिता का निधन हो गया. और घर की पूरी जिम्मेदारी उनके कंधे पर आ गई. इसलिए उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी और

दूवरा दास ने परिवार का खर्च उठाने के लिए सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया. लेकिन दास के मन में पढ़ने की ललक और कुछ कर दिखाने का जज्बा कम नहीं हुआ. सुबह से शाम तक वह सब्जी बेचते और शाम को घर आकर पढ़ने बैठ जाते थे. उन्होंने किताब लिखना शुरू किया और पहली किताब हरी भक्ति अमृत वाणी लिखी, जिसे कोई भी छापने को तैयार नहीं था.

कितने में बिकी पहली बुक?

दूवरा दास की पहली किताब हरी भक्ति अमृत वाणी को जब सबने छापने से मना कर दिया तो घर बेच दिया और 50 हजार मिले. उसी से फिर किताब छपी और लोग उन्हें सम्मान देने लगे. असम पुलिस में काम करने वाले सुंदर बुढ़ागोहाई ने दास की सारी किताबें पढ़ी हैं. उन्होंने बताया कि उनकी किताबें खुद के मूल्यांकन के लिए मजबूर करती हैं. उन्होंने बृजावली भाषा में लिखे आध्यात्मिक ग्रंथों को सरल असमिया में अनुवाद किया है.

अध्यात्म के रास्ते पर कब आए?

लक्षीराम ने बताया कि किसी ने मेरे घर पर हमला कर दिया था. घर का सारा सामान तोड़ दिया, ऐसा क्यों किया गया हमें पता नहीं चल पाया. लेकिन मैं खुद सोचने लगा, मुझे लगा कहीं न कहीं मुझसे कुछ गलत हुआ है, तभी ये सब हुआ. इसके बाद मैं धार्मिक ग्रंथ और आध्यात्मिक किताबें पढ़ने लगा, जिसमें हर दिन में रुचि बढ़ने लगी.

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