एक युग का अंत! असम का ऐतिहासिक कृष्णा टाकीज़ हुआ जमींदोज, जनता में फैला आक्रोश
नागांव के दिल में बसा ऐतिहासिक कृष्णा सिनेमा हॉल अब सिर्फ़ यादों में रह गया है. पिछले शुक्रवार को इस प्रतिष्ठित सिंगल-स्क्रीन थिएटर को पूरी तरह जमींदोज़ कर दिया गया. 70-80 साल पुराना यह हॉल असमिया सिनेमा आंदोलन का सबसे बड़ा केंद्र था. यहीं डॉ. भूपेन हजारिका की फिल्में, जतिन बोरुआ और अब्दुल मजीद की क्लासिक असमिया फिल्में पहली बार रिलीज़ हुई थी.
असम के नागांव शहर को अपनी सांस्कृतिक पहचान का एक बहुत बड़ा नुकसान हुआ है. शहर के बीचो-बीच स्थित ऐतिहासिक कृष्णा सिनेमा हॉल को पिछले शुक्रवार को पूरी तरह ढहा दिया गया. यह सिनेमा हॉल सिर्फ एक फिल्म दिखाने की जगह नहीं था, बल्कि असमिया सिनेमा के शुरुआती आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र था. कई पीढ़ियों के लोगों ने यहीं बैठकर असमिया फिल्मों का जादू देखा था. यह हॉल नागांव वालों के दिल में बसा हुआ था. इसके अचानक खत्म हो जाने से पूरा शहर सदमें और दुख में डूब गया है. लोग कह रहे हैं कि जैसे उनके बचपन और जवानी की यादों का एक बड़ा हिस्सा मिट्टी में मिल गया.
दरअसल, कोरोना महामारी आने के बाद से ही कृष्णा सिनेमा हॉल बहुत मुश्किलों में था. दर्शक कम आते थे, कमाई बहुत घट गई थी. हॉल चलाना मुश्किल हो रहा था. ऊपर से इसके मालिक श्री स्वप्न कुमार बिहानी का कुछ समय पहले निधन हो गया. परिवार पर बहुत बोझ था, आखिरकार बिहानी परिवार ने मजबूरी में यह पुराना सिनेमा हॉल एक सामाजिक-धार्मिक संगठन को बेच दिया. अब उसी संगठन ने पूरी इमारत को जमींदोज कर दिया है.
इतिहास का जीता-जागता हिस्सा
लोग बहुत गुस्सा और दुखी हैं उनका कहना है कि यह सिर्फ एक इमारत नहीं थी, बल्कि नागांव की संस्कृति और इतिहास का जीता-जागता हिस्सा थी. अफसोस की बात यह है कि कृष्णा टाकीज़ अकेला नहीं है. नागांव में पहले भी कई पुराने सिनेमा हॉल बंद हो चुके हैं. कुछ को दुकानें बना दिया गया, कुछ को मॉल या दूसरे व्यापारिक भवनों में बदल दिया गया. आज शहर में सिर्फ दिव्यज्योति सिनेमा हॉल जैसे एक-दो हॉल ही बचे हैं जो अभी चल रहे हैं.
कभी लगती थी लंबी लाइनें
कृष्णा सिनेमा हॉल का जाना मानो एक पूरे युग का अंत है. वो दिन याद आते हैं जब टिकट के लिए लंबी-लंबी लाइनें लगती थीं, नई असमिया फिल्म रिलीज होने पर पूरा शहर उत्साह से भर जाता था. लोग शाम को परिवार या दोस्तों के साथ सिनेमा देखने जाते थे और वो शाम उनकी जिंदगी की सबसे खुशी भरी याद बन जाती थी. आज जब वह विशाल स्क्रीन, पुरानी कुर्सियांऔर वो माहौल सब मलबे में बदल गया, तो नागांव के लोगों का दिल टूट गया है. सब यही कह रहे हैं, 'हमारी संस्कृति का एक टुकड़ा हमेशा के लिए खो गया.





