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नागांव जिले में 15 लोगों को सरकार ने दिया 24 घंटे में देश छोड़ने का आदेश, Dormant 1950 कानून के तहत हुई कार्रवाई

असम के नागांव जिले में सरकार की एक सख्त कार्रवाई ने अचानक माहौल गर्मा दिया है. अलग-अलग वर्षों में विदेशी घोषित किए जा चुके 15 लोगों को प्रशासन ने महज 24 घंटे के भीतर देश छोड़ने का आदेश दिया है. यह कदम 1950 के उस कानून के तहत उठाया गया है, जो दशकों से लगभग निष्क्रिय पड़ा था,

नागांव जिले में 15 लोगों को सरकार ने दिया 24 घंटे में देश छोड़ने का आदेश, Dormant 1950 कानून के तहत हुई कार्रवाई
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( Image Source:  AI Perplexity )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 19 Dec 2025 12:12 PM IST

असम के नागांव जिले में उस वक्त अफरा-तफरी मच गई, जब अलग-अलग सालों में “विदेशी” घोषित किए गए 15 लोगों को सरकार ने महज 24 घंटे के भीतर भारत छोड़ने का आदेश दे दिया. यह कार्रवाई एक ऐसे कानून के तहत की गई है, जो पिछले कई दशकों से लगभग निष्क्रिय पड़ा था.

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अचानक इसके इस्तेमाल ने न सिर्फ प्रभावित लोगों के सामने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है, बल्कि राज्य में नागरिकता, सुरक्षा और मानवाधिकार जैसे मुद्दों पर एक नई बहस भी छेड़ दी है. चलिए जानते हैं क्या है Dormant 1950 एक्ट

डिटेंशन सेंटर से निर्वासन की तैयारी

नागांव की पुलिस के अनुसार, ये सभी 15 लोग फिलहाल गोलपारा जिले के मटिया डिटेंशन सेंटर में बंद हैं. शुक्रवार को उन्हें भारत से बाहर भेजने की प्रक्रिया शुरू की जानी है. प्रशासन का कहना है कि पूरी कार्रवाई पुलिस की निगरानी में होगी, ताकि किसी तरह की अव्यवस्था न हो.

कैसे और क्यों जारी हुआ आदेश?

17 दिसंबर को नागांव के जिलाधिकारी देवाशीष शर्मा ने इन लोगों के खिलाफ औपचारिक आदेश जारी किए थे. आदेश में साफ कहा गया है कि विदेशी ट्रिब्यूनल के फैसले के आधार पर इन्हें “विदेशी नागरिक” घोषित किया जा चुका है और इनकी मौजूदगी असम व देश की आंतरिक सुरक्षा और आम जनता के हितों के खिलाफ मानी गई है. इसी आधार पर 1950 के इमीग्रेंट्स (एक्सपल्शन फ्रॉम असम) एक्ट को लागू करते हुए इन्हें असम और भारत छोड़ने का निर्देश दिया गया.

1990 से 2021 तक के मामले

इन 15 लोगों को अलग-अलग समय पर विदेशी घोषित किया गया था. कुछ मामलों की तारीख 1990 तक जाती है, जबकि कुछ को हाल के वर्षों यानी 2021 में ट्रिब्यूनल ने विदेशी माना था. ये सभी नगांव जिले के अलग-अलग गांवों और कस्बों के निवासी बताए जा रहे हैं.

हाईकोर्ट से भी नहीं मिली राहत

प्रशासन के मुताबिक, इन लोगों ने पहले हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली. इसके बाद सरकार ने पुराने कानून के तहत सीधे कार्रवाई का रास्ता अपनाया.

क्या है 1950 का कानून?

1950 का यह कानून देश के बंटवारे के बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से हो रहे प्रवासन को रोकने के लिए बनाया गया था. इस कानून के तहत अगर सरकार को लगे कि किसी व्यक्ति की मौजूदगी सार्वजनिक हित या सुरक्षा के लिए खतरा है, तो उसे तय समय और तय रास्ते से देश छोड़ने का आदेश दिया जा सकता है.

डिपोर्टेशन की प्रक्रिया और विवाद

आमतौर पर निर्वासन की प्रक्रिया में दूसरे देश से पुष्टि और कूटनीतिक बातचीत शामिल होती है. लेकिन असम सरकार का दावा है कि इस कानून के जरिए वह राजनयिक प्रक्रियाओं को दरकिनार कर सकती है. यही वजह है कि इस कदम को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं. यह पहली बार नहीं है जब इस कानून को लागू किया गया हो. पिछले महीने सोनितपुर जिले में भी पांच लोगों को इसी तरह का आदेश दिया गया था, हालांकि वे अपने गांव में मिले ही नहीं.

असम न्‍यूज
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