Viral News: शिक्षा के लिए पैरों में घुंघरू और फिर..., पढ़िए सैयद अहमद खान की दिलचस्प कहानी
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने शिक्षा के प्रति अपने समर्पण और दृढ़ संकल्प को दिखाने के लिए एक अनोखा तरीका अपनाया. उन्होंने अंग्रेजों की गुलामी के समय मुस्लिमों में शिक्षा का अलख जगाने की मुहिम चलाई. सर सैयद अहमद खान ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए पैरों में घुंघरू बांधकर चंदा मांगने की अनोखी विधि अपनाई है आइए जानते हैं उनके बारे में...

Viral News: इस दुनिया में हर कोई किसी न किसी तरीके से प्रसिद्ध होना चाहता है, और कई लोग अपनी अच्छाइयों और कार्यों के माध्यम से अपने माता-पिता का नाम रोशन करते हैं. ऐसे ही एक प्रेरणादायक कहानी उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले से जुड़ी हुई है, जिसे जानकर आपको यकीन नहीं होगा कि शिक्षा के लिए कोई व्यक्ति कितना बड़ा बलिदान दे सकता है. आइए जानते हैं इस कहानी के बारे में विस्तार से.
पढ़िए अलीगढ़ के सैयद अहमद खान के बारे में
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने शिक्षा के प्रति अपने समर्पण और दृढ़ संकल्प को दिखाने के लिए एक अनोखा तरीका अपनाया. उन्होंने अंग्रेजों की गुलामी के समय मुस्लिमों में शिक्षा का अलख जगाने की मुहिम चलाई. सर सैयद अहमद खान ने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए पैरों में घुंघरू बांधकर चंदा मांगने की अनोखी विधि अपनाई. यह दिखाता है कि उन्होंने अपनी शिक्षा के मिशन के लिए कितनी मेहनत की और कितनी कठिनाइयाँ झेली.
कौन हैं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक
सर सैयद अहमद खान ने 1857 की क्रांति के बाद की स्थिति को समझा और शिक्षा को राजनीतिक सशक्तिकरण का एक प्रमुख साधन माना. उन्होंने शिक्षा के माध्यम से समाज में उन्नति और स्वतंत्रता की संभावना देखी. उन्होंने इस समय की एक महत्वपूर्ण किताब, "असबाब बगावत-ए-हिंद", लिखी, जो 1857 की क्रांति पर आधारित थी. इस किताब का उर्दू से अंग्रेजी में अनुवाद 1860 में हुआ और यह ब्रिटिश संसद में चर्चा का विषय बनी. इस चर्चा के परिणामस्वरूप, अंग्रेजों ने अपनी कमजोरी को पहचाना और सुधारात्मक कदम उठाए.
राहत अबरार के अनुसार, सर सैयद अहमद खान ने जब आधुनिक शिक्षा का मिशन शुरू किया, तो मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा का कोई कांसेप्ट नहीं था. उस समय केवल धार्मिक शिक्षा पर जोर था. सर सैयद ने अंग्रेजी और विज्ञान की शिक्षा को पेश किया, जिसे उस समय कुफ्र (अविश्वास) माना गया और उन्हें एथिस्ट (नास्तिक) समझा गया। उनके खिलाफ फतवे जारी किए गए और ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी के दौरान भी उन्हें सामाजिक और पारिवारिक दबाव का सामना करना पड़ा.
हालांकि, सर सैयद अहमद खान ने इन सभी कठिनाइयों की परवाह नहीं की और शिक्षा के प्रति अपने मिशन को आगे बढ़ाया. यहां तक कि उन्हें चंदा जुटाने के लिए एक ड्रामा में घुंघरू पहनकर नृत्य करना पड़ा, तब जाकर उन्हें चंदा मिला. यह कहानी हमें यह सिखाती है कि शिक्षा और समाज के उत्थान के लिए कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है और यह कि समर्पण और दृढ़ संकल्प किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं.