Begin typing your search...

जगन्नाथ मंदिर में प्रेमी जोड़ों का प्रवेश क्यों है वर्जित? राधारानी के श्राप से जुड़ी है परंपरा

पुरी का जगन्नाथ मंदिर केवल आस्था का केंद्र नहीं, रहस्यों और परंपराओं की जीवित मिसाल है. यहां रथ यात्रा में लाखों श्रद्धालु जुटते हैं, लेकिन अविवाहित प्रेमी जोड़ों का प्रवेश नहीं है. इसके पीछे राधारानी द्वारा दिया गया वह पौराणिक श्राप है, जो आज भी पूरी श्रद्धा से निभाया जाता है. यह मंदिर विज्ञान को भी चुनौती देता है.

जगन्नाथ मंदिर में प्रेमी जोड़ों का प्रवेश क्यों है वर्जित? राधारानी के श्राप से जुड़ी है परंपरा
X
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 17 Jun 2025 12:54 PM

ओडिशा के समुद्र तट पर बसे पवित्र शहर पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर ना केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यह रहस्यों, परंपराओं और सनातन संस्कृति का अद्भुत संगम भी है. हर साल यहां होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा एक ऐसा धार्मिक आयोजन है, जो भारत ही नहीं बल्कि विश्वभर के श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है. इस साल यह यात्रा 27 जून 2025 से आरंभ हो रही है, और अनुमान है कि लाखों श्रद्धालु इस आयोजन का साक्षी बनने पुरी पहुंचेंगे.

रथ यात्रा केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि वह धार्मिक अनुभूति है जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भव्य रथों में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं. यह यात्रा आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से शुरू होती है और भक्तों का जनसैलाब मंदिर की पवित्रता को अनुभव करता है. लेकिन इसी मंदिर से जुड़ी एक अनोखी और कठोर परंपरा है, जो कई बार चर्चा का विषय बनती है. अविवाहित प्रेमी जोड़ों को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता.

अविवाहित जोड़ों की क्यों नहीं है एंट्री?

पुरी के जगन्नाथ मंदिर में अविवाहित प्रेमी जोड़ों का प्रवेश वर्जित है. यह नियम केवल सामाजिक मर्यादा से नहीं, बल्कि एक पौराणिक कथा से जुड़ा है. कहा जाता है कि एक बार राधारानी, भगवान श्रीकृष्ण के जगन्नाथ रूप के दर्शन करने पुरी आईं. लेकिन पुजारियों ने उन्हें मंदिर में प्रवेश से रोक दिया क्योंकि वे श्रीकृष्ण की पत्नी नहीं थीं, केवल प्रेमिका थीं.

राधा रानी इस अपमान से आहत हुईं और क्रोधित होकर श्राप दे दिया कि "जो भी अविवाहित प्रेमी जोड़ा इस मंदिर में प्रवेश करेगा, उसे कभी अपने प्रेम में सफलता नहीं मिलेगी." यह कथा आज भी श्रद्धालुओं के मन में जीवंत है और मंदिर प्रशासन इस परंपरा को कठोरता से निभाता है.

तब से चाली आ रही है यह परंपरा

इस पौराणिक श्राप के बाद से मंदिर में अविवाहित जोड़ों का प्रवेश रोक दिया गया. यहां तक कि वे जोड़े भी, जिनकी शादी तय हो चुकी हो लेकिन अभी विवाह न हुआ हो, मंदिर में नहीं जा सकते. यह नियम प्रेम या भावनाओं के विरुद्ध नहीं है, बल्कि यह मंदिर की दिव्यता और मर्यादा को बनाए रखने के लिए स्थापित धार्मिक अनुशासन का हिस्सा माना जाता है. मंदिर के सेवायत और प्रशासन श्रद्धालुओं से अनुरोध करते हैं कि वे इस परंपरा का सम्मान करें. प्रेम के प्रतीक भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर में यह विरोधाभास प्रतीत हो सकता है, लेकिन यह परंपरा उनकी आध्यात्मिक और वैवाहिक मर्यादाओं से जुड़ी समझी जाती है.

रहस्यों और चमत्कारों से भरा है जगन्नाथ पुरी मंदिर

पुरी का जगन्नाथ मंदिर सिर्फ परंपरा ही नहीं, रहस्यों का गढ़ भी है. उदाहरण के लिए, मंदिर के भीतर प्रवेश करते ही समुद्र की लहरों की आवाज गायब हो जाती है, और बाहर आते ही फिर सुनाई देने लगती है. यह घटना आज तक वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं की जा सकी है. एक और रहस्य यह है कि मंदिर की छाया दिन के किसी भी समय ज़मीन पर नहीं पड़ती. सूर्य की दिशा कोई भी हो, मंदिर की परछाईं नहीं दिखती. ये बातें इस स्थान को केवल धार्मिक नहीं, चमत्कारिक बनाती हैं.

रथ यात्रा: मोक्ष की ओर बढ़ता एक कदम

रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन विशाल रथों में सवार होकर अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाते हैं. सात दिन वहां रुकने के बाद वे पुनः अपने मुख्य मंदिर लौटते हैं. भक्त मानते हैं कि रथ यात्रा में शामिल होने से 100 यज्ञों जितना पुण्य मिलता है. यह यात्रा केवल शारीरिक रूप से नहीं, आध्यात्मिक रूप से भी भक्तों को मोक्ष की ओर अग्रसर करती है. विशेषकर उन लोगों के लिए जो जीवन में कभी चार धाम नहीं जा पाते, उनके लिए यह यात्रा अद्वितीय अनुभव बन जाती है.

सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक धरोहर

जगन्नाथ पुरी मंदिर को चार धामों में एक माना जाता है. यह वैष्णव परंपरा का महान केंद्र है, जहां भगवान को ‘लोकनाथ’ के रूप में पूजा जाता है. ऐसे ईश्वर जो हर भक्त के लिए समान हैं, चाहे वह किसी जाति, पंथ या वर्ग से क्यों न हो. पुरी का यह धाम भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है. यहां की रथ यात्रा और परंपराएं केवल धर्म की नहीं, बल्कि समाज के आचार-विचार और अनुशासन की झलक भी प्रस्तुत करती है.

धर्म
अगला लेख