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Chhath Puja 2024: क्यों मनाया जाता है छठ पूजा का पर्व, त्रेतायुग और महाभारत काल से जुड़ी हैं मान्यताएं

छठ पूजा का पर्व बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और भारत के अन्य हिस्सों में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है. इस पर्व में छठी मैया और भगवान सूर्यदेव की पूजा की जाती है और भक्तगण 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास रखते हैं.

Chhath Puja 2024: क्यों मनाया जाता है छठ पूजा का पर्व, त्रेतायुग और महाभारत काल से जुड़ी हैं मान्यताएं
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स्टेट मिरर डेस्क
By: स्टेट मिरर डेस्क

Updated on: 5 Nov 2024 9:55 AM IST

Chhath Puja 2024: छठ पूजा का पर्व बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और भारत के अन्य हिस्सों में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है. इस पर्व में छठी मैया और भगवान सूर्यदेव की पूजा की जाती है और भक्तगण 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास रखते हैं. इस साल छठ पूजा का महापर्व 7 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा, जिसमें पर्व की शुरुआत 5 नवंबर को नहाय-खाय के साथ होगी. आइए जानते हैं, इस पर्व की शुरुआत कैसे हुई और इसके पीछे की प्रमुख पौराणिक कथाएं.

माता सीता द्वारा छठ व्रत रखने की कथा

छठ पूजा की एक पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेतायुग में जब भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण 14 वर्षों का वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटे, तो भगवान राम ने रावण वध के पाप से मुक्ति पाने के लिए यज्ञ करने का निश्चय किया. मुग्दल ऋषि के मार्गदर्शन में माता सीता को कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर भगवान सूर्य की उपासना करने को कहा गया. माता सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव की पूजा की और सप्तमी तिथि पर अनुष्ठान संपन्न किया. तभी से छठ पूजा की परंपरा का आरंभ माना जाता है.

महाभारत काल में छठ पूजा और सूर्य पुत्र कर्ण

महाभारत काल में भी छठ पूजा का गहरा संबंध बताया गया है. कर्ण, जो सूर्यदेव के परम भक्त थे, प्रतिदिन घंटों जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते थे. कर्ण के इस सूर्योपासना का महत्व छठ पूजा से जुड़ा माना जाता है. इसके अलावा, पांडवों के राजपाट छिन जाने पर द्रौपदी ने भी छठ का व्रत रखा था. इस व्रत के प्रभाव से पांडवों को अपना राजपाट वापस प्राप्त हुआ. यह कथा बताती है कि छठ पूजा एक ऐसा महाव्रत है जो मनोकामनाओं की पूर्ति और संकटों के निवारण में सहायक है.

छठ पूजा का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व

छठ पूजा की पौराणिक कथाएं दर्शाती हैं कि यह पर्व केवल एक व्रत नहीं बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और दिव्यता की प्रतीक है. भगवान सूर्यदेव की उपासना करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है.

डिस्क्लेमर: यह लेख सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसके सही या गलत होने की पुष्टि नहीं करते.

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