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रोज़ा टूट गया तो क्या होगा? क्या कहता है Islam, क्या Mohammed Shami को करना होगा कफ्फारा?

मोहम्मद शमी विवाद के बाद सवाल उठा- अगर रोज़ा टूट जाए तो इस्लाम में इसका क्या नियम है? कुरआन की सीख, कफ्फारा का प्रावधान और क्या शमी को अल-कफ्फारा करना होगा? जानिए पूरी कहानी

रोज़ा टूट गया तो क्या होगा? क्या कहता है Islam, क्या Mohammed Shami को करना होगा कफ्फारा?
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'भाई, मोहम्मद शमी ने फिर कंट्रोवर्सी कर दी!'

'क्या कर दिया अब?'

'मैच के दौरान एनर्जी ड्रिंक पी रहा था, रोज़े का महीना चल रहा है!'

ट्विटर पर बहस छिड़ चुकी थी. कुछ लोग गुस्से में थे, तो कुछ बचाव कर रहे थे. 'अरे भाई, इस्लाम में सफर के दौरान रोज़ा न रखने की छूट है!' कोई बोला. दूसरी तरफ से आवाज़ आई, 'लेकिन वो एक रोल मॉडल है, लोगों को सही मिसाल देनी चाहिए!'

शमी का यह मामला सामने आते ही सोशल मीडिया पर लोगों के बीच इस्लामी नियमों को लेकर बहस शुरू हो गई. एक तरफ धर्मगुरु थे, जो इसे 'गुनाह' करार दे रहे थे, तो दूसरी ओर वो लोग थे, जो इस्लाम के लचीलेपन की वकालत कर रहे थे. कांग्रेस की शमा मोहम्मद कहती हैं कि कर्म सबसे जरूरी हैं, तो भाजपा नेता मोहसिन रज़ा बोलते हैं, 'यह अल्लाह और बंदे के बीच का मामला है, इसमें दूसरों को बीच में कूदने की जरूरत नहीं.'

पर असली सवाल ये था—क्या रोज़ा टूटने का मतलब बड़ा गुनाह है? और अगर टूट जाए तो क्या करना चाहिए?

रोज़ा: सिर्फ भूखा-प्यासा रहना नहीं

इस्लाम में रोज़ा महज़ एक भूखे-प्यासे रहने का रिवाज़ नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक सफर है. कुरआन में कहा गया है:

'ऐ ईमान वालों! तुम पर रोज़ा अनिवार्य किया गया है जैसा कि तुमसे पहले वालों पर किया गया था, ताकि तुम तक़वा (धर्मपरायणता) हासिल करो.'

(सूरह अल-बक़रा: 183)

मतलब? मतलब यह कि रोज़े का असल मकसद सिर्फ खाना-पीना छोड़ना नहीं, बल्कि आत्म-संयम, इबादत और अपने अंदर की इच्छाओं पर काबू पाना है.

लेकिन अब बड़ा सवाल—अगर गलती से रोज़ा टूट जाए तो?

रोज़ा टूटने वाले कारण और उनका हल

अगर आपने गलती से पानी पी लिया या कुछ खा लिया, तो घबराइए मत. कुरआन में कहा गया है कि भूलवश हुआ तो रोज़ा टूटा नहीं माना जाएगा. लेकिन अगर किसी ने जानबूझकर कुछ खाया-पीया, तो उसका रोज़ा टूट जाता है.

रोज़ा तोड़ने वाली चीजें:

  • जानबूझकर कुछ खा-पी लेना
  • रोज़े में शारीरिक संबंध बनाना
  • खुद को नुकसान पहुंचाना या जानबूझकर उल्टी करना
  • खून निकलवाना (कुछ इस्लामी विद्वानों के अनुसार)

अब अगर रोज़ा टूट ही गया, तो इसका प्रायश्चित (कफ्फारा) क्या होगा?

  • लगातार 60 दिन रोज़ा रखना (हाँ, 60 दिन बैक-टू-बैक!)
  • गरीबों को खाना खिलाना
  • अगर गुलाम का ज़माना होता, तो उसे आज़ाद करना भी एक विकल्प था.

मतलब, इस्लाम आपको गलती सुधारने का पूरा मौका देता है, बस सच्ची नीयत चाहिए.

कब रोज़ा न रखना जायज़ है?

शमी के मामले में लोगों की बहस इस बात पर थी कि सफर के दौरान रोज़ा न रखना सही है या नहीं? तो कुरआन साफ कहता है:

'और जो कोई बीमार हो या यात्रा में हो, तो वह दूसरे दिनों में गिनती पूरी करे.'

(सूरह अल-बक़रा: 185)

यानी अगर आप सफर में हैं, बीमार हैं, गर्भवती हैं, या ऐसे हालात में हैं कि रोज़ा आपकी सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है, तो आप इसे बाद में पूरा कर सकते हैं.

अब सवाल यह उठता है कि क्या शमी ने सही किया या गलत? जवाब आसान है—यह मामला उनके और अल्लाह के बीच है.

रोज़ा: बस एक इबादत नहीं, एक सीख

रोज़ा हमें सिर्फ भूखा रहना नहीं सिखाता, बल्कि धैर्य, करुणा और आत्म-नियंत्रण का पाठ पढ़ाता है. यह हमें बताता है कि गरीबों की तकलीफ क्या होती है, जिससे हम दूसरों के लिए हमदर्दी और दयालुता महसूस करें.

शमी का मामला दो-चार दिन में शांत हो जाएगा, लेकिन यह बहस हमें इस्लाम की असल भावना को समझने का मौका देता है. रोज़ा सिर्फ खाने-पीने से परहेज़ नहीं, बल्कि अपने अंदर के लालच, क्रोध और बुरी आदतों पर नियंत्रण करने का जरिया है.

तो अगली बार जब कोई कहे कि 'अरे, रोज़ा टूट गया तो क्या होगा?'

तो बस मुस्कुराइए और कहिए—'अल्लाह की रहमत बहुत बड़ी है, बस नीयत सच्ची होनी चाहिए!'

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