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28 दिसंबर से शाकंभरी देवी नवरात्रि, अकाल से मुक्ति दिलाने वाला शक्ति का पर्व, जानिए इसका महत्व

हर वर्ष पौष मास में मनाई जाने वाली शाकंभरी देवी नवरात्रि इस बार 28 दिसंबर से शुरू हो रही है. यह नवरात्रि मां दुर्गा के उस स्वरूप की आराधना को समर्पित है, जिन्हें शाकंभरी देवी कहा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब पृथ्वी पर भयानक अकाल पड़ा था और अन्न का अभाव हो गया था, तब मां शाकंभरी ने अपने शरीर से शाक और फल उत्पन्न कर सृष्टि का पालन किया था. इसी कारण इस नवरात्रि को अकाल से मुक्ति दिलाने वाला शक्ति पर्व माना जाता है.

28 दिसंबर से शाकंभरी देवी नवरात्रि, अकाल से मुक्ति दिलाने वाला शक्ति का पर्व, जानिए इसका महत्व
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( Image Source:  AI SORA )
State Mirror Astro
By: State Mirror Astro

Updated on: 27 Dec 2025 7:30 AM IST

सनातन धर्म में देवी उपासना का विशेष महत्व है. वर्ष में दो प्रमुख नवरात्रों के अतिरिक्त शाकंभरी देवी नवरात्रि भी श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत पुण्यदायी माने जाते हैं. ये नवरात्रि देवी दुर्गा के शाकंभरी स्वरूप को समर्पित होते हैं, जिन्हें अन्न, शाक और वनस्पतियों की देवी कहा गया है. हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल शाकंभरी नवरात्रि 28 दिसंबर 2025 से शुरू होगी. वहीं, इसका समापन 03 जनवरी 2026 को होगा.

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शाकंभरी देवी नवरात्रि पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से आरंभ होकर पूर्णिमा तिथि तक मनाए जाते हैं. इस प्रकार ये नवरात्रि आठ दिनों तक चलते हैं. कई स्थानों पर इसे शाकंभरी जयंती के साथ भी जोड़ा जाता है. इस अवधि में देवी शाकंभरी की विशेष पूजा, व्रत और पाठ किए जाते हैं.

शाकंभरी देवी की पूजा विधि

शाकंभरी देवी नवरात्रि में श्रद्धालु प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर देवी शाकंभरी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. देवी को हरे वस्त्र, हरी चूड़ियाँ और हरी चुनरी अर्पित करना विशेष फलदायी माना जाता है. पूजा में देवी को हरी सब्जियाँ, फल, अन्न, तिल, गुड़ और नैवेद्य अर्पित किया जाता है. दुर्गा सप्तशती का पाठ, शाकंभरी स्तोत्र और देवी मंत्रों का जप करें. कई श्रद्धालु इस दौरान अन्न दान और भोजन वितरण भी करते हैं, जिसे अत्यंत पुण्यकारी माना गया है.

नवरात्रि का महत्व

शाकंभरी देवी को अन्नपूर्णा का ही स्वरूप माना जाता है. धार्मिक मान्यता है कि इन नवरात्रों में देवी की पूजा करने से अन्न संकट, दरिद्रता और रोगों से मुक्ति मिलती है. किसान वर्ग के लिए यह नवरात्र विशेष रूप से महत्वपूर्ण माने जाते हैं. मान्यता है कि देवी शाकंभरी की कृपा से घर में अन्न, धन और समृद्धि की कभी कमी नहीं होती.

शाकंभरी देवी की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय पृथ्वी पर भयंकर अकाल पड़ा. वर्षा न होने से अन्न, फल और वनस्पतियाँ नष्ट हो गईं. भूख और त्राहि-त्राहि से मनुष्य व देवता दोनों परेशान हो गए. तब देवताओं की प्रार्थना पर माँ दुर्गा ने शाकंभरी देवी के रूप में अवतार लिया.देवी ने अपने शरीर से विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ, फल और अन्न उत्पन्न किए और समस्त सृष्टि का पोषण किया. इसी कारण उन्हें शाकंभरी कहा गया, अर्थात् शाक से जगत का भरण-पोषण करने वाली देवी. देवी ने दैत्य दूषण का भी संहार किया और धरती को पुनः हरा-भरा बनाया.

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