क्या आप जानते हैं रक्षाबंधन से पहले होती है एक खास पूजा? जानिए इसका महत्व और कहानी
श्रवण कुमार भारतीय पौराणिक ग्रंथों में भक्ति और मातृ-पितृ सेवा की सर्वोच्च मिसाल माने जाते हैं. उनका नाम आते ही एक ऐसे पुत्र की छवि मन में उभरती है जो अपने अंधे माता-पिता की सेवा में पूरी निष्ठा से जीवन समर्पित कर देता है
रक्षाबंधन का पर्व केवल भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह परिवार, त्याग, और भक्ति जैसे उच्च मूल्यों का भी संदेश देता है. इसी भावना के प्रतीक माने जाते हैं श्रवण कुमार, जिनकी पूजा रक्षाबंधन के दिन विशेष रूप से की जाती है.यह पूजा सुबह घर की बड़ी महिला के द्वारा की जाती है और उसके बाद ही भाई की कलाई पर बहन राखी बांधती है. इस परंपरा को सोन पूजा, सोना पूजा या श्रवण पूजा भी कहा जाता है.
श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को, जब रक्षाबंधन मनाया जाता है, उसी दिन अधिकांश घरों में राखी बांधने से पहले श्रवण कुमार की पूजा की जाती है. यह पूजा विशेष रूप से मध्य भारत के कुछ हिस्सों जैसे मालवा, बुंदेलखंड और राजस्थान में प्रचलित है. इस दिन घरों में मुल्तानी मिट्टी और गेरू से श्रवण कुमार की आकृति बनाई जाती है. इस आकृति में वे अपने कंधों पर टोकरी में माता-पिता को उठाए हुए होते हैं.
श्रवण कुमार की आकृति
श्रवण कुमार की यह छवि किचन के मेन गेट या मुख्य दरवाजे के पास दोनों तरफ बनाई जाती है. उनके पास में "राम, सीता लिखा जाता है. फिर उनकी पूजा की जाती है – फूल, जल, धूप, दीप और आरती से. भोग के लिए विशेष रूप से जवे की खीर और दूध चढ़ाया जाता है. राखी जवे की खीर से चिपकाई जाती है. सबसे पहले मंदिर में भगवान को राखी बांधी जाती है, फिर दरवाजे पर बनी श्रवण कुमार की आकृति को राखी बांधी जाती है. इसके बाद ही घर में भाई-बहन एक-दूसरे को राखी बांधते हैं.
श्रवण कुमार की कथा
श्रवण कुमार को भारतीय संस्कृति में मातृ-पितृ भक्ति का आदर्श माना गया है. वे अपने अंधे माता-पिता को कंधे पर बिठाकर तीर्थ यात्रा पर निकले थे. एक दिन जब वे जल लेने गए, तभी अयोध्या नरेश राजा दशरथ ने शिकार समझकर उन्हें बाण मार दिया. मरते समय श्रवण कुमार ने दशरथ से उनके माता-पिता को पानी पिलाने की विनती की.
जब राजा दशरथ ने वृद्ध माता-पिता को यह दुखद समाचार सुनाया, तो मां पुत्र वियोग में प्राण त्याग देती हैं और पिता शांतनु उन्हें श्राप देते हैं कि 'जैसे आज हम अपने पुत्र वियोग में तड़प रहे हैं, वैसे ही तुम भी अपने पुत्र के वियोग में तड़पोगे.' यही श्राप राम के वनवास और दशरथ की मृत्यु का कारण बना.





