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यहां का कंकड़-कंकड़ शंकर, जहां ढूंढोगे वहां मिलेगा शिवलिंग, कब तक खोजेंगे?

भारत की भूमि सनातन संस्कृति और धार्मिक धरोहरों से भरी हुई है, और यही कारण है कि हर जगह हमें शिवलिंग जैसे धार्मिक प्रतीक मिल सकते हैं. लेकिन क्या हमें इन प्रतीकों को ढूंढते हुए विवादों को बढ़ावा देना चाहिए?

यहां का कंकड़-कंकड़ शंकर, जहां ढूंढोगे वहां मिलेगा शिवलिंग, कब तक खोजेंगे?
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भारत, जिसे हम ‘सनातन भूमि’ कहते हैं, एक ऐसी भूमि है जहां धर्म, संस्कृति, और इतिहास ने हमेशा से अपनी अलग पहचान बनाई है. ये भूमि न केवल हिंदू धर्म के प्राचीन प्रतीकों और आस्थाओं से भरी हुई है, बल्कि यहां की मिट्टी में लाखों सालों का इतिहास समाया हुआ है. भारतीय सभ्यता की जड़ें इतने गहरे हैं कि कहीं न कहीं हमें इनसे जुड़ी मूर्तियां या शिवलिंग या कुछ और अक्सर मिलती रहती है. हाल ही में, देशभर में शिवलिंग की खोज की घटनाएं चर्चा में आई हैं, ज्ञानवापी मस्जिद से लेकर अजमेर शरीफ, संभल और अन्य स्थानों तक. ये मुद्दा न केवल धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है, बल्कि समाज और राजनीति के बीच एक नई खाई पैदा कर रहा है.

सवाल ये है कि क्या हमें हर जगह शिवलिंग, मंदिर या अन्य हिंदू धार्मिक प्रतीक ढूंढते रहना चाहिए? क्या ये हमारे समाज के लिए सकारात्मक होगा, या हमें इस खोज को एक निश्चित दिशा में सीमित कर देना चाहिए? भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां मुसलमान भी हिंदू धर्म के नागरिकों के समान हैं. क्या हमें इन धार्मिक स्थलों पर विवाद बढ़ाने के बजाय आपसी भाईचारे और शांति की ओर काम करना चाहिए? अगर हम बार-बार इन प्रतीकों की खोज में व्यस्त रहेंगे, तो क्या हम देश में शांति और समरसता को बढ़ावा दे पाएंगे?

भारत की सनातन विरासत और इतिहास

भारत की सभ्यता हमेशा से विविधताओं में बसी रही है. यहां की मिट्टी में हर धर्म और संस्कृति के निशान पाए जाते हैं. हिंदू धर्म की प्राचीनता और इसके साथ जुड़े धार्मिक प्रतीक, जैसे शिवलिंग, हमेशा से भारतीय जीवन के अभिन्न अंग रहे हैं. शिवलिंग की पूजा को लेकर इतिहास में कई घटनाएं और स्थल पाए जाते हैं, जहां इस प्रकार के धार्मिक प्रतीक मिले हैं. भारत का इतिहास गवाह है कि यहां समय-समय पर धार्मिक और सांस्कृतिक लैंडस्केप में बदलाव हुए हैं, जो उस समय के शासकों और उनके विचारधाराओं से इन्फ्लुएंस्ड थे. हालांकि, ये बदलाव सिर्फ राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन का हिस्सा रहे हैं.

उदाहरण के तौर पर, भारत में मुस्लिम शासकों के आगमन से पहले हिंदू धर्म का प्रभुत्व था. लेकिन मुग़ल साम्राज्य के समय में कई हिंदू धार्मिक स्थलों को नष्ट किया गया और उनकी जगह नए धार्मिक स्थल बनाए गए. ये परिवर्तन न केवल सांस्कृतिक बल्कि राजनीतिक भी थे, क्योंकि जब भी एक नया शासक आता है, तो वह अपनी शक्ति का प्रतीक अपने धार्मिक स्थलों में स्थापित करना चाहता है. क्या हम अब इस इतिहास को दोहरा रहे हैं?

मुग़ल काल और धार्मिक स्थल नष्ट करना

मुग़ल सम्राटों के समय में कई मंदिरों और धार्मिक स्थलों को तोड़ा गया, जिनमें विशेष रूप से बाबरी मस्जिद का उदाहरण काफी चर्चित है. हालांकि, इस समय की स्थिति को हमें एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए. जब एक नया शासक आता है, तो वह अपनी सत्ता और आस्था को स्थापित करने के लिए पुराने स्थलों को ध्वस्त कर सकता है. आज भी, जब हम किसी जगह पर शिवलिंग या मंदिर की खुदाई की बात करते हैं, तो ये उसी तरह का घटनाक्रम प्रतीत होता है, जैसे इतिहास में हुआ था. क्या हम इस ऐतिहासिक गलती को फिर से दोहरा रहे हैं, जहां एक समुदाय के धार्मिक प्रतीकों को नष्ट किया जाता है और दूसरे समुदाय के प्रतीकों की खोज की जाती है?

क्या हम आपसी भाईचारे को नुकसान पहुंचा रहे हैं?

देश में हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग रहते हैं, और इन्हें एक-दूसरे के साथ शांति और सद्भाव के साथ रहना चाहिए. लेकिन जब हम हर जगह शिवलिंग या हिंदू धार्मिक प्रतीकों की खोज करते हैं, तो क्या हम दोनों समुदायों के बीच और अधिक तनाव बढ़ा रहे हैं? क्या ये देश की धार्मिक स्थिति को और भी विभाजित करने का काम कर रहा है?

भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता का पक्षधर है, और ये हर धर्म, समुदाय और विश्वास के अधिकारों की रक्षा करता है. लेकिन जब हम बार-बार इन विवादों को बढ़ावा देते हैं, तो हम संविधान के सिद्धांतों का उल्लंघन कर रहे होते हैं. ये देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने के बजाय हमें एकजुटता और भाईचारे की ओर बढ़ने की जरुरत है.

मोहन भागवत का बयान – "हर जगह शिवलिंग मिलेगा"

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में एक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था, "अगर हम खोदते रहेंगे तो हर जगह शिवलिंग मिलेगा" उनका येबयान इस विचार की पुष्टि करता है कि हमें हर जगह धार्मिक प्रतीकों की खोज में ऊर्जा और समय बर्बाद करने के बजाय, समाज में शांति और सद्भाव को बढ़ावा देना चाहिए. भागवत के अनुसार, हमें ये समझना चाहिए कि धार्मिक प्रतीक केवल हमारे आस्थाओं का हिस्सा नहीं होते, बल्कि ये हमारे समाज और संस्कृति का हिस्सा होते हैं. हमें इन्हें एकजुटता और शांति के रूप में देखना चाहिए, न कि केवल राजनीति और उन्माद के रूप में.

क्या हमें शिवलिंग की खोज पर ध्यान देना चाहिए?

अटल जी ने कभी कहा था, हालांकि पंक्तिया रामधारी सिंह दिनकर की है, 'इसका कंकड़-कंकड़ शंकर' ये पंक्ति भारत की सनातन संस्कृति और धर्म के गहरे नाते को दर्शाती है, क्योंकि भारत की भूमि सदियों से धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों से समृद्ध रही है. इसका मतलब ये नहीं है कि हमें हर जगह इस धार्मिक इतिहास को खोदकर निकालने की जरुरत है. जहां भी हम खुदाई करेंगे, वहां हमें प्राचीन धार्मिक प्रतीक जैसे शिवलिंग मिल सकते हैं, क्योंकि ये भूमि सनातन धर्म और उसकी विविधताओं से जुड़ी हुई है. हालांकि, ये सवाल उठता है कि क्या हमें बार-बार इस खोज में विवाद खड़ा करना चाहिए या समाज में शांति, भाईचारे और समरसता को बढ़ावा देने के लिए इन प्रतीकों का सम्मान करते हुए आगे बढ़ना चाहिए?

आज हम फिर से उस मोड़ पर खड़े हैं, जहां हमें अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को एकजुटता और शांति की दिशा में लेकर चलना होगा. शिवलिंग या किसी अन्य धार्मिक प्रतीक को खोजना हमारी पहचान का हिस्सा हो सकता है, लेकिन क्या हम इसे सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करेंगे? क्या हम सच में इस देश में धार्मिक एकता और सद्भाव की ओर बढ़ना चाहते हैं? ये सवाल हमें खुद से पूछने की जरूरत है.

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