यहां गिरे थे माता सती के अंग, जानें 51 शक्तिपीठों की कहानी
जब भगवान शिव कुपित होकर माता सती के शरीर को लेकर तांडव करने लगे तो उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान नारायण ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़े कर दिए थे. यह 51 टुकड़े पृथ्वी पर जहां-जहां गिरे, आज उन्हीं स्थानों को शक्ति पीठ कहा जाता है.

देवी दुर्गा के उपासकों के बीच अक्सर शक्तिपीठों की चर्चा होती ही है. हर भक्त अपने जीवन में जरूर प्रयास करता है कि कम से कम एक बार किसी ना किसी शक्तिपीठ पर पहु्ंच कर माता के दरबार में हाजिरी लगाए. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि ये शक्तिपीठ हैं क्या और इनका महत्व क्या है? यदि नहीं तो इस प्रसंग में हम आपको बता रहे हैं. दरअसल शक्तिपीठ वही स्थान हैं, जहां माता सती के अंग गिरे थे. इसे ठीक से समझने के लिए आइए कथा में प्रवेश करते हैं. श्रीमद भागवत महापुराण, शिवपुराण और मार्कंडेय पुराण में कथा आती है कि एक बार भगवान शिव ने अपने ससुर प्रजापति दक्ष को प्रणाम नहीं किया था.
इस बात से नाराज होकर दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया था. इसमें सभी देवताओं को आमंत्रण भेजा, लेकिन शिव को न्योता नहीं भेजा. इधर, माता सती को पता चला कि उनके पिता यज्ञ कर रहे हैं तो उन्होंने भगवान शिव से इस यज्ञ में शामिल होने का आग्रह किया. उस समय शिव ने पार्वती को समझाते हुए कहा था कि पिता के घर तो बिन बुलाए भी जाना चाहिए. उन्हें चलने में कोई आपत्ति भी नहीं है, लेकिन जब जान बूझकर ना बुलाया जाए तो कदापि नहीं जाना चाहिए. उस समय माता सती को लगा कि शिव जाना नहीं चाहते. इसलिए उन्होंने अकेले ही जाने की अनुमति मांगी. शिव ने उन्हें फिर समझाया, लेकिन उनके भावों को देखकर अनुमति दे दी.
योगाग्नि में भस्म हो गई थींं माता सती
उस समय माता सती कुछ गणों को साथ लेकर यज्ञ में शामिल होने पहुंच तो गईं, लेकिन देखा कि उनके पिता उन्हें नजरअंदाज कर रहे हैं. एक बार तो उन्हें लगा कि गलती से वह ऐसा कर रहे हैं, लेकिन इतने में प्रजापति सभी देवताओं के सामने भगवान शिव का उपहास करने लगे. इससे माता सती को क्रोध आ गया और उन्होंने योगाग्नि में खुद को जला डाला. इधर, भगवान शिव को खबर मिली तो वह कुपित हो गए और वहां पहुंच कर माता सती के शरीर को उठाकर तांडव करने लगे. इससे पूरी सृष्टि में हाहाकार मच गया. उस समय भगवान नारायण ने शिव के कोप को शांत करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को कई टुकड़ों में काट दिया. यह सभी टुकड़े भारतीय उपमहाद्वीप में 51 स्थानों पर गिरे. आज यह सभी 51 स्थान शक्तिपीठ के रूप में जाने जाते हैं. हालांकि तंत्र चूड़ामणि ग्रंथ में 52 शक्तिपीठों का उल्लेख मिलता है.