यशोदा के गर्भ से पैदा हुई मां विंध्यवासिनी, श्रीमद भागवत में है कथा
अपने अवतार से पहले भगवान नारायण ने अपनी योगमाया को धरती पर भेजा था. उस समय भगवान उन्हें वरदान दिया था कि कलियुग में उनकी प्रतिष्ठा विंध्यवासिनी के रूप में होगी और वह इसी नाम व पहचान से जगत का कल्याण करेंगी. इस प्रकार युग युगांतर में लोग उनकी पूजाकर अभीष्ठ फलों की प्राप्ति करेंगे.

कलियुग में देवी दुर्गा की पूजा का बहुत महत्व है. श्रीमदभागवत में कथा आती है कि भगवान नारायण ने द्वापर के आखिर में श्रीकृष्ण रूप में अवतार लिया था. वह देवकी के गर्भ के रास्ते धरती पर आए थे. उस समय भगवान ने अपने आगमन से ठीक पहले योगमाया को धरती पर भेज दिया था. भगवान के आदेश पर योगमाया यशोदा के गर्भ के रास्ते आयीं. उस समय भगवान ने उन्हें वरदान दिया था कि वह विंध्यवासिनी के नाम से जानी और पहचानी जाएंगी. युग युगांतर खासतौर पर कलियुग में लोग उनकी पूजाकर अभीष्ठ फलों की प्राप्ति करेंगे. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक माता रानी की पूजा से किसी भी इंसान को भव बाधा से मुक्ति मिल जाती है और माता के भक्तों को देवी के अपने लोक में स्थान मिलता है.
इसी प्रकार देवी की पूजा विधि विधान से करने पर रोग, व्याधि, भूत, पिशाच, माला, डाकिनी, शाकिनी जैसे तमाम कष्टों का भी निवारण सहज हो जाता है. पौराणिक ग्रंथों में देवी भगवती की पूजा को लेकर कई कथाएं हैं. खासतौर पर मार्कंडेय पुराण, देवी भागवत तो माता रानी की कथाओं से ही भरे पड़े हैं. इसी प्रकार शिवपुराण में भी देवी भगवती की पूजा का महत्व बताया गया है. शिवपुराण में कथा आती है कि जब देवी सती ने खुद को योगाग्नि में भस्म कर लिया और भगवान शिव कुपित हो गए. उस समय वह देवी के शरीर को लेकर तांडव करने लगे थे. ऐसे में भगवान नारायण ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए. यह सभी टुकड़े पृथ्वी पर अलग स्थानों पर गिरे.
शक्तिपीठ बन गए 51 स्थान
आज यह सभी 51 स्थान शक्तिपीठ के रूप में जाने जाते हैं. शिवपुराण की मान्यता है कि इन सभी स्थानों पर देवी अपने जीवंत रूप में विद्यमान हैं. कहा जाता है कि इन स्थानों पर देवी मंत्र ना केवल बहुत जल्द सिद्ध हो जाते हैं, बल्कि मनवांछित फलों की प्राप्ति हो जाती है. देवी पूजा के विधान को लेकर श्रीदुर्गा सप्तशती में विस्तार से विवरण मिलता है. खासतौर पर नवरत्रि पूजन के लिए विधि विधान से कलश स्थापना, उसके बाद नियमित तौर पर दुर्गा सप्तशती के सभी 13 अध्यायों को पढ़ने या सुनने की व्यवस्था की गई है. इसके लिए भी प्रावधान है कि नवरात्रि के नौ दिनों में किस दिन कौन सा पाठ किया जाए. आखिर में परायण की विधि बताई गई है.