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दुर्घटना में हुई मौत, कब कर सकते हैं पिंडदान?

नियम तो यह है कि जिस तिथि को मौत हुई है, उसी तिथि में पिंडदान हो, लेकिन कई बार ऐसी भी स्थिति बन जाती है कि पितरों के मौत की तिथि याद नहीं रहती. ऐसे पितरों को अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जाता है. इसी प्रकार अकाल मृत्यु की दशा में चर्तुदशी को पिंडदान करने का विधान है.

दुर्घटना में हुई मौत, कब कर सकते हैं पिंडदान?
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स्टेट मिरर डेस्क
By: स्टेट मिरर डेस्क

Published on: 22 Sept 2024 7:53 PM

सनातन धर्म में पितरों के लिए पिंडदान और तर्पण का बहुत महत्व बताया गया है. प्रावधान तो यह किया गया है कि पिंडदान या तर्पण उसी तिथि पर होना चाहिए, जिस तिथि पर उस व्यक्ति की मौत हुई रहती है. लेकिन गई बार समस्या यह आती है कि वंशजों को मौत की तिथि ही याद नहीं रहती. इसके अलावा अकाल मौत की स्थिति में भ्रम की स्थिति बनी रहती है. पौराणिक ग्रंथों में इन सभी समस्याओं का समाधान बताया गया है. इसमें कहा गया है कि किसी भी पितर के मौत की तिथि ज्ञात ना हो तो उसे पितृपक्ष की अमावस्या को पिंडदान किया जा सकता है. इसलिए इस अमावस्या यानी पितृपक्ष की अमावस्या को सर्व पितृ अमावस्या भी कहा जाता है.

वहीं यदि किसी पितृ की अकाल मौत हुई रहती है तो उसके लिए पिंडदान की व्यवस्था चर्तुदशी को है. इसके अलावा सभी पितरों को किसी भी महीने के अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है. हालांकि यह सभी विचार पितर तीर्थ गया से बाहर पिंडदान या तर्पण के लिए हैं. गया में तो किसी भी तिथि या दिन को देखने की जरूरत ही नहीं. यहां तक कि जन्मदिन की तिथि पर पिंडदान किया जा सकता है. उत्तर पौराणिक ग्रंथों में तो यहां तक लिखा है कि गया में किसी भी तिथि को पिंडदान किया जा सकता है. यही नहीं, ज्ञात या अज्ञात पितरों को भी पिंडदान कर उन्हें प्रेतयोनी से मुक्ति दिलाने का विधान है.

गया में चल रहा है पितर मेला

इस समय बिहार के गया में पितर मेला चल रहा है. यहां देश से ही नहीं, विदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग अपने पितरों को पिंडदान करने पहुंचे है. एक अनुमान के मुताबिक प्रतिदिन एक से सवा लाख लोग गया में पिंडदान कर रहे हैं. इसकी वजह से ब्रह्म कुंड में पिंडदान के लिए लंबी कतार लग रही है. वहीं प्रेतशिला की परिक्रमा करने और यहां सत्तू उड़ाने वालों का क्रम टूटने का नाम नहीं ले रहा. यहां के तीर्थ पुरोहित भोला पांडेय के मुताबिक वैसे तो यहां सालों साल भीड़ रहती है, लेकिन हर साल पितृपक्ष में इतने लोग आते हैं, जिनकी गिनती भी मुश्किल है.

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