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पितृपक्ष के बाद भी कर सकते हैं पितरों को तर्पण, लेकिन कब?

पौराणिक ग्रंथों में पितरों के तर्पण के लिए कुछ समय विशेष को श्रेष्ठ माना गया है. हालांकि गया तीर्थ में तर्पण के लिए समय की कोई बाधा नहीं है. ऐसे में यदि कोई व्यक्ति गया जाने से चूक जाए तो वह वर्जित समय को छोड़ कर बाकी दिनों में तर्पण कर सकता है.

पितृपक्ष के बाद भी कर सकते हैं पितरों को तर्पण, लेकिन कब?
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स्टेट मिरर डेस्क
by: स्टेट मिरर डेस्क

Published on: 19 Sept 2024 6:43 PM

पितरों के तर्पण के लिए गरुड़ पुराण में पितृपक्ष को श्रेष्ठ समय बताया गया है. इस पुराण में कहा गया है कि पितृपक्ष के इन 16 दिनों में पितर धरती पर ही विचरण करते हैं. उन्हें उम्मीद रहती है कि उनके वंशज पिंडदान जरूर करेंगे. इसी प्रकार गया में पिंडदान के लिए सभी 365 दिनों को श्रेष्ठ बताया गया है. कहा गया है कि गया तीर्थ में किसी भी दिन या मुहुर्त में पिंडदान किया जा सकता है. यहां के पिंडदान के लिए कोई काल निषिद्ध नहीं है. हालांकि गया के बाहर पिंडदान के लिए साल के कुछ समय विशेष को वर्जित माना गया है. कहा गया है कि गया के बाहर किसी भी स्थान पर अधिकमास तर्पण या श्राद्ध कार्य नहीं करना चाहिए.

इसी प्रकार पितर या वंजश में किसी का जन्मदिन हो तो भी उस दिन श्राद्धकर्म वर्जित है. उत्तर पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक गुरु-शुक्र के अस्त होने, गुरु के सिंह राशि में होने की दशा में तर्पण नहीं करना चाहिए. इन ग्रंथों में तर्पण के लिए कुछ समय विशेष को श्रेष्ठ भी बताया गया है. इसमें कहा गया है कि गया में तर्पण के लिए कोई समय की बाधा नहीं है, लेकिन गया के बाहर तर्पण के लिए जब तर्पण कार्य तब करना चाहिए जब सूर्य मीन में हो. सूर्य जब मेष, कन्या, धनु, कुंभ या मकर राशि में हों तो भी पिंडदान विशेष फलदायी हो जाता है. गरुड़ पुराण के मुताबिक हर साल भाद्रपद की पूर्णिमा से लेकर आश्विन के अमावस तक सभी 16 दिनों में किया गया पिंडदान भी विशेष फलदायी होता है.

पिंडदान से बनता है शरीर

इन्हीं 16 दिनों को पितृपक्ष का नाम दिया गया है. गरुड़ पुराण के मुताबिक इन 16 दिनों में सभी ज्ञात अज्ञात पितरों को तर्पण किया जा सकता है. लेकिन इन 16 दिनों के अलावा साल के बाकी दिनों में किया गया तर्पण केवल ज्ञात पितरों को ही प्राप्त होता है. गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में पिंडदान के बारे से विस्तार से प्रसंग मिलता है. इन ग्रंथों में कहा गया है कि मृत्यु के अगले दिन से लेकर 9 दिनों तक जो पिंडदान किया जाता है, उस पिंडदान से मृतात्मा के एक नए शरीर का निर्माण होता है. यह शरीर एक हाथ का होता है.

इसलिए जरूरी है पिंडदान

वहीं जो 10वें दिन पिंडदान होता है तो उससे मृतात्मा को ताकत मिलती है. यही ताकत आत्मा को यमलोक के कठिन सफर को तय करने में मदद करती है. इस दसवें दिन के पिंडदान को लेकर उल्लेख मिलता है कि इसका लाभ मृतात्मा को कितना मिलेगा, इसका निर्धारण पूर्व जन्म में किए गए उसके कर्म करेंगे. यदि व्यक्ति के जीवन काल में अच्छे कर्म होंगे तो उसे पूरा पिंड प्राप्त होगा. इससे उसे पर्याप्त ताकत मिलेगी और वह सहज भाव में अपने अगले सफर पर निकल सकेगा. इसी प्रकार यदि व्यक्ति के कर्म बुरे होंगे तो यमदूत उसे पिंड लेने ही नहीं देंगे और घसीटते हुए यमलोक तक ले जाएंगे. गरुड़ पुराण के मुताबिक मृतात्मा को 16 नगरों से होते हुए 86 हजार योजन की दूरी 47 दिनों में तय करनी पड़ती है.

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