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पितृपक्ष: 16 वेदियों पर पिंडदान, पितरों के लिए ऐसे खुल जाते हैं स्वर्ग के द्वार

गया में कुल 16 वेदियों पर पिंडदान की परंपरा है. मान्यता है कि इन वेदियों की स्थापना खुद ब्रह्मा ने की थी. मान्यता है कि देवता और ऋषि मुनियों के नाम से स्थापित इन वेदियों पर पिंडदान से पितरों के लिए स्वर्ग का द्वार खुल जाता है.

पितृपक्ष: 16 वेदियों पर पिंडदान, पितरों के लिए ऐसे खुल जाते हैं स्वर्ग के द्वार
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पिंडदान
स्टेट मिरर डेस्क
By: स्टेट मिरर डेस्क

Published on: 23 Sept 2024 6:24 PM

बिहार के पितर तीर्थ गया में पितृपक्ष के 16 दिनों तक चलने वाला पितर मेला अपने शबाब पर है. यहां कुल 16 वेदियां बनी हैं. इन सभी वेदियों पर पिंडदान का विधान है. मान्यता है कि ऐसा करने पर पितरों के लिए स्वर्ग की राह खुल जाती है और वह जीवन चक्र से मुक्त होकर स्वर्ग में अपना स्थान ग्रहण करते हैं. विष्णु पद मंदिर के इन 16 वेदियो के नाम कार्तिक पद, दक्षिणाग्निपद, गार्हपत्याग्नी पद, आवहनोमग्निपद, संध्याग्नि पद, आवसंध्याग्निपथ, सूर्यपद, चंद्रपद, गणेशपद, उधीचीपद, कण्वपद, मातंगपद, कौचपद, इंद्र पद, अगस्त्य पद और कश्यप पद हैं.

परंपरा के मुताबिक देवताओं और ऋषि मुनियों के नाम वाले इन सभी 16 वेदियों में पिंड चिपकाए जाते हैं.पिंडदानी अपने पितरों के निमित्त पिंड अपिर्त करते हैं. गया के तीर्थ पुरोहित भोला पांडेय के मुताबिक सभी वेदियां स्तंभ के रूप में है और इनका जिक्र कई कई पौराणिक कथाओं में मिलता है. मान्यता है कि त्रेता में भगवान राम यहां चक्रवर्ती महाराज दशरथ का पिंडदान करने आए थे. उन्होंने रुद्र पद पर पिंडदान किया. इसी प्रकार द्वापर में पितामह भीष्म ने भी अपने पिता महाराज शांतनु का श्राद्ध यहां पर किया था. इन्होंने विष्णु पद में अपने पितरों का आह्वान किया और उनके आगमन के बाद विधि विधान से श्राद्ध किया.

भीष्म ने भी यहां किया था पिंडदान

कथा आती है कि पिंडदान ग्रहण करने के लिए शांतनु के हाथ निकले थे, लेकिन भीष्म ने उनके हाथ पर पिंड देने के बजाय विष्णुपद पर पिंड रखा. इससे शांतनु प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिया था. पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक बार ब्रह्मा जी ने गया सुर के शरीर पर यज्ञ किया था. इसके लिए उन्होंने कुल 16 देवताओं का आह्वान किया था. उनके लिए अपने हाथों से स्तंभ रूप में वेदियां बनाई थीं. इन्हीं वेदियों पर बैठकर देवों ने आहुति ग्रहण की थी. उसी समय से इन वेदियों पर पिंडदान की परंपरा शुरू हो गई. कथा प्रसंग के मुताबिक यहां पिंडदान से ना केवल पितर तृप्त होते हैं, बल्कि उन्हें सहज ही स्वर्ग लोक की प्राप्ति हो जाती है. तीर्थ पुरोहितों के मुताबिक पितृपक्ष शुरू होने के बाद रोजाना एक लाख से अधिक पिंडदानी गया पहुंच रहे हैं और अपने पूर्वजों को पिंडदान कर रहे हैं. यहां सर्व पितृ अमावस्या तक पितर मेला चलेगा.

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