Pitru Paksha 2024 : क्यों पितृ पक्ष में करते है गंगा नदी में स्नान?,जनिए धरती पर कैसे आईं थी मां गंगा
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है. अनुष्ठान से पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए परिजन गंगा में स्न्नान करते हैं. लेकिन आप सभी इसके पीछे की असल वजह जानते हैं.

पितृ पक्ष जिसे 'पितृ दोष' या 'पितृ अमावस्या' भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण समय है जब लोग अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. 17 से सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत हो रही है जो 2 अक्टूबर को खत्म होगा. हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बेहद महत्त्व है. हिंदू परंपराओं के अनुसार लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके सम्मान के रूप में विधि विधान से अनुष्ठान करते है. यह आम तौर पर 15 दिनों तक चलता है, जिसके दौरान हिंदुओं का मानना है कि पूर्वजों की आत्माएं अपने वंशजों से प्रसाद और प्रार्थना प्राप्त करने के लिए सांसारिक क्षेत्र में आती हैं. वहीं मान्यता है कि इस अनुष्ठान से पहले पूर्वजों के परिजन पहले गंगा स्नान करते हैं और घाट के किनारे अनुष्ठान करते हैं. क्या आप जानते है की इस अनुष्ठान से पहले गंगा में स्नान करना क्यों जरूरी होता है. अगर नहीं तो आइए जानते क्यों करते है अनुष्ठान से पहले गंगा स्नान.
शुद्ध हो जाती है आत्मा
हिंदू धर्म में गंगा नदी को सबसे पवित्र नदी माना जाता है और कहा जाता है. गंगा में करने से जहां पापों से मुक्ति मिलती है, वहीं गंगा में स्नान करने से आत्मा और शरीर दोनों शुद्ध हो जाते हैं. पूर्वजों के लिए अनुष्ठान करते समय इस शुद्धिकरण को महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह व्यक्ति को किसी भी अशुद्धता से शुद्ध करने और उन्हें अपने पूर्वजों के सम्मान के कार्य के लिए आध्यात्मिक रूप से तैयार करने में मदद करता है. सिर्फ इतना ही नहीं इसका दूसरा पहलू ये भी है कि गंगा में स्नान करने से आपके पुण्य जमा होते है, जो जीवित और मृत दोनों के लिए फायदेमंद है. ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान भक्ति और पवित्रता के ऐसे कार्य पूर्वजों की आत्माओं की मुक्ति में मदद कर सकते हैं और उनके बाद के जीवन में शांतिपूर्ण यात्रा में योगदान कर सकते हैं.
कैसे हुआ गंगा जी का आगमन
गंगा जी का धरती पर आगमन एक महत्वपूर्ण धार्मिक कथा से जुड़ा हुआ है. भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंगा जी का धरती पर आगमन राजा भगीरथ की तपस्या के परिणामस्वरूप हुआ. कहानी के अनुसार, राजा सगर के पुत्र असम्वरण ने एक बार एक यज्ञ आयोजित किया, जिसमें उनके सौ पुत्रों को नारद मुनि ने दंडित किया और उनके साथ यज्ञ की आहुति कर दी. राजा सगर के पुत्रों के पुनर्जन्म के लिए, राजा भगीरथ ने कठिन तपस्या की.उन्होंने ब्रह्मा और शिव की पूजा की ताकि गंगा जी को धरती पर लाया जा सके. गंगा जी का आकाश से धरती पर अवतरण बहुत कठिन था, क्योंकि उनका प्रवाह इतना शक्तिशाली था कि इससे पृथ्वी पर विनाश हो सकता था. इसलिए शिव जी ने गंगा जी के प्रवाह को अपनी जटा में समेट लिया और फिर धरती पर धीरे-धीरे प्रवाहित किया. भगीरथ ने गंगा जी के प्रवाह को अपने पूर्वजों की आत्मा के उद्धार के लिए धरती पर लाया. इस प्रकार गंगा जी धरती पर आईं और भगीरथ की तपस्या सफल हुई.